भिलाई। पराक्रम दिवस की पूर्व संध्या पर एमजे कालेज में आज विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस विचारगोष्ठी की अध्यक्षता प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे ने की। डॉ श्रीलेखा विरुलकर ने कहा कि नेताजी के जन्म दिवस को पराक्रम दिवस के रुप में मनाए जाने से राष्ट्र में नई ऊर्जा का संचार होगा।
प्राचार्य डॉ चौबे ने कहा कि देश 23 जनवरी को नेताजी का 125वां जन्मदिवस मना रहा होगा। इस महान स्वतंत्रता संग्राम सेनानी की प्रतिमा ठीक वहीं स्थापित होगी जहां कभी जार्ज पंचम की मूर्ति हुआ करती थी। इसके साथ ही दिल्ली के लालकिला एवं कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हाल में नेताजी और आजाद हिन्द फौज से जुड़े दस्तावेजों, चित्रों एवं अन्य सामग्रियों की प्रदर्शनी चल रही है जिसे अब तक लाखों देशवासी देख चुके हैं। यह नेताजी के प्रति राष्ट्र की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
आईक्यूएसी प्रभारी अर्चना त्रिपाठी ने इस अवसर पर कहा कि नेताजी पर प्रत्येक भारतवासी को गर्व है। जिस अंग्रेजी हुकूमत के बारे में यह कहा जाता था कि उनके राज्य में कभी सूर्यास्त नहीं होता, उसी अंग्रेजी सेना के खिलाफ नेताजी ने आजाद हिन्द फौज को खड़ा किया और अनेक मोर्चों पर उसे शिकस्त भी दी। 14 अप्रैल 1944 को मणिपुर के मोइरांग में आजाद हिन्द फौज ने अंग्रेजों को पहली बार शिकस्त दी थी।
शिक्षा संकाय की अध्यक्ष डॉ श्वेता भाटिया ने इस अवसर पर कहा कि नेताजी को देश ने हमेशा अपने दिल में सुरक्षित रखा है। अविभाजित मध्यप्रदेश में स्थापित नेताजी सुभाष चन्द्र बोस मेडिकाल कालेज जबलपुर आजाद हिन्दुस्तान का पहला मेडिकल कालेज था। इसके बाद 1973 में पटियाला में नेताजी के नाम पर ही नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ स्पोर्ट्स की स्थापना की गई। पिछले कुछ वर्षों में नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी नई दिल्ली, नेताजी सुभाष यूनिवर्सिटी जमशेदपुर की स्थापना की गई। नेताजी हमेशा से भारतीय जनजीवन का हिस्सा रहे हैं।
राष्ट्रीय सेवा योजना (एनएसएस) के कार्यक्रम अधिकारी डॉ ज्योति प्रकाश कन्नौजे ने कहा कि नेताजी भारत ही नहीं दुनिया भर के युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत रहे हैं। उनके जीवन पर विश्व के विभन्न हिस्सों में शोध हुए हैं। अंग्रेज अधिकारी एन्टली ने स्वयं स्वीकार किया था कि नेताजी के प्रयासों को अंग्रेजी हुकूमत ने गंभीरता से लिया था। उन्हें डर था कि कहीं अंग्रेजी को अपदस्थ होकर भारत न छोड़ना पड़े। इसलिए उन्होंने अपने ससम्मान विदाई का रास्ता अख्तियार किया।
इस अवसर पर शिखा संकाय की सहा. प्राध्यापक ममता एस राहुल, नेहा महाजन, शकुन्तला जलकारे, परविन्दर कौर, दीपक रंजन दास आदि ने भी अपने विचार रखे। आयोजन में 60 से अधिक विद्यार्थी ऑनलाइन शामिल हुए। सारंश वाचन अर्चना त्रिपाठी ने किया। अंत में धन्यवाद ज्ञापन एनएसएस अधिकारी डॉ कन्नौजे ने धन्यवाद ज्ञापन किया।