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भिलाई में बढ़ रहे बांझपन के मरीज

Dec 17, 2014

dr sangeeta sinha, Apollo BSR, Infertilityभिलाई। स्टील सिटी में बांझपन की समस्या तेजी से बढ़ रही है। एक तरफ जहां औद्योगिक शहर होने के कारण पुरुषों को गर्म वातावरण में काम करना पड़ रहा है वहीं चुस्त कपड़े तथा लैपटॉप पर काम करने की आदत भी समस्या को बढ़ा रही है।
अपोलो बीएसआर की इन्फर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ संगीता सिन्हा बताती हैं कि वैसे तो विश्व के सभी विकसित देशों में यह समस्या बढ़ रही है किन्तु यहां जलवायु गर्म होने के कारण समस्या कुछ ज्यादा ही है। आज 30-40 साल आयुवर्ग के युवा दंपति बड़ी संख्या में फर्टिलिटी स्पेशलिस्टों की सेवाएं लेने के लिए बाध्य हो रहे हैं। >>> उन्होंने बताया कि भौगोलिक रूप से देश के मध्य में स्थित छत्तीसगढ़ में खनिज उत्खनन, वनों की कटाई एवं उद्योगों की स्थापना के कारण वातावरण गर्म हो रहा है और इसके साथ ही बढ़ रही है बांझपन की समस्या। वे बताती हैं कि बांझपन मूलरूप से गर्भधारण करने में असमर्थता है। पुरुष और महिला दोनों में समस्या हो सकती है। बांझपन के लगभग 40 फीसदी मामलों में जहां महिलाओं में कोई कमी होती है वहीं लगभग इतनी ही संख्या में कमी पुरुषों में भी पाई जाती है। शेष मामलों में दोनों की कमियों का मिलाजुला रूप होती हैं।
उन्होंने आंकड़ों का हवाला देते हुए बताया कि औद्योगिक विकास के साथ जैसे-जैसे वातावरण गर्म होता गया, वैसे-वैसे शुक्राणुओं की संख्या कम होती चली गई। मुंबई स्थित इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज के मुताबिक 1981 से 2010 के बीच पुरुष बांझपन की समस्या में 50 फीसदी की वृद्धि हुई है।
लैपटॉप और टाइट जीन्स से बढ़ रही समस्या
infertility on the rise, dr sangeeta sinha, apollo bsrडॉ सिन्हा ने बताया कि वातावरण के गर्म होने के अलावा स्पर्म काउंट कम होने की प्रमुख वजह लाइफ स्टाइल में आने वाला बदलाव है। शराब से शुक्राणु बनना कम हो जाता है, स्मोकिंग से इनका आकार गड़बड़ा जाता है, एस्पिरिन की ज्यादा खुराक वीर्य में अहम रसायनों से छेड़छाड़ कर देती है और चीनी की अधिक मात्रा मोटापा, तनाव, यौन संक्रमित रोग, भारी वर्जिश, अनिद्रा और उम्र का बढऩा सब मिलकर इनफर्टिलिटी को बढ़ावा देते हैं। रोजाना काम आने वाले उत्पादों के रूप में हर साल तकरीबन 2,000 नए केमिकल्स दुनिया भर के बाजारों में उतारे जाते हैं। इनमें से कई केमिकल्स के अपनी सेहत पर असर के बारे में हम कुछ नहीं जानते। प्राकृतिक रूप से अंडकोष शरीर से बाहर होते हैं ताकि वे जरूरत के मुताबिक फैल या सिकुड़कर अपना तापमान नियंत्रित कर सकें। किन्तु दिन के अधिकांश घंटों में जींस और जॉकी जैसे चुस्त वस्त्र एवं अंत:वस्त्रों के चलते उनके लिए ऐसा करना संभव नहीं हो पाता। शोध बताते हैं कि अंडकोषों का तापमान एक डिग्री बढऩे पर भी शुक्राणुओं की संख्या में 40 फीसदी तक की गिरावट आ जाती है। इसी तरह लैपटाप का उपयोग करने वाले पुरुषों को भी इससे उत्पन्न होने वाली ऊष्मा का खामियाजा भुगतना पड़ता है।
डॉ सिन्हा ने बताया कि पुरुष बांझपान को दूर करने में खानपान का विशेष योगदान होता है। ओट्स, सम्पूर्ण अनाज, तैलीय मछली, लहसुन, शहद, पालक आदि का सेवन शुक्राणुओं की संख्या बढ़ाने में कारगर पाए गए हैं।
महिलाओं में बांझपन : महिलाओं में बांझपन की समस्या आम तौर पर मोटापा तथा सेडेन्टरी लाइफ स्टाइल से जुड़ी होती है। ज्यादा मसालेदार या तला भुना खाना, वजन अधिक होना, मासिक धर्म ठीक न होना, वर्जिश की कमी का गर्भधारण पर विपरीत असर पड़ता है। इसके अलावा कुछ आनुवांशिक कारण तथा अधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त भोजन भी समस्या उत्पन्न कर सकता है। इसके अलावा पालिसिस्टिक ओवरी सिन्ड्रोम (पीसीओएस) भी बांझपन की एक वजह है।
दंपतियों में जागरूकता का अभाव : डॉ सिन्हा कहती हैं कि संतानोत्पत्ति के लिए यौन संसर्ग को लेकर भी जागरूकता की कमी है। इसे काउंसलिंग से दूर किया जा सकता है। इसमें हम दंपति को बताते हैं कि स्त्री में गर्भधारण करने की संभावना सबसे अधिक किन दिनों में होती है। अकसर जननांगों का संक्रमण भी गर्भधारण करने में रुकावट पैदा करता है। इसका तत्काल इलाज किया जाना जरूरी होता है।

पुरुष बांझपन के कारक
1. शराब, सिगरेट तथा तंबाकू का सेवन
2. जींस जैसे तंग वस्त्र, लैपटाप का प्रयोग
3. पुरुष जननांगों में चोट लगने से
4. गर्म स्थानों पर काम करने से

महिला बांझपन के कारक
1. अत्यधिक वजन, वर्जिश की कमी
2. वसायुक्त भोजन, फास्ट फूड
3. वंशानुगत कारण
4. जननांगों में संक्रमण, अम्लीयता
5. पॉलिसिस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)

कैसे होता है इलाज
इनफर्टिलिटी एक्सपर्ट डॉ सिन्हा बताती हैं कि महिलाओं में अम्लीयता, डिम्बवाहिनियों में विकार आदि की समस्या हो सकती है। पुरुषों में शुक्राणुओं की संख्या कम हो सकती है, शुक्राणु कमजोर हो सकते हैं। ऐसे स्त्री-पुरुषों में निषेचन के लिए अलग-अलग पद्धतियां इस्तेमाल में लाई जाती हैं। अपोलो बीएसआर के इनफर्टिलिटी क्लिनिक में ये सभी सुविधाएं उपलब्ध हैं। इनमें आईयूआई, आईवीएफ तथा इक्सी जैसी पद्धतियां शामिल हैं। आईयूआई में शुक्राणुओं को सीधे गर्भाशय में प्रविष्ट करा दिया जाता है। आईवीएफ में निषेचन की क्रिया शरीर से बाहर कराई जाती है और फिर भ्रूण को गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है। विशेष परिस्थितियों में आईसीएसआई (इक्सी) पद्धति अपनाई जा सकती है जिसमें एक शुक्राणु को डिम्ब में कृत्रिम तरीके से प्रविष्ट करा दिया जाता है और फिर भ्रूण को गर्भाशय में स्थापित कर दिया जाता है। इस अत्याधुनिक तरीके के अच्छे नतीजे मिलते हैं।

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