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हर्बल प्लांट्स में अपनाएं साउथ का मॉडल

Jan 29, 2015

GDRCST, RCET, Sonal Rungta,भिलाई। डॉ एमपी ठाकुर डीन, संत कबीर कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, कवर्धा ने मेडिसनल प्लांट्स की उपयोगिता को बढ़ाने के लिये इस क्षेत्र में और अधिक प्रयासों को किये जाने पर बल दिया। उन्होंने कहा कि भारत में कर्नाटक, तमिलनाडु तथा केरल में वर्ष 1995 में संबंधित विषय पर कार्य प्रारंभ हुआ वहीं महाराष्टं तथा आंध्रप्रदेश में वर्ष 1998 से मेडिसनल प्लांट्स पर कार्य चल रहा है। छत्तीसगढ़ में हर्बल प्लांट्स की बहुतायत है। आज राज्य में आवश्यकता इस बात की है कि यहां इस पर किये जा रहे कार्य का साऊथ इंडिया मॉडल लागू किया जाये ताकि इस क्षेत्र में तेजी से कार्य किया जा सके। डॉ ठाकुर यहां संतोष रूंगटा ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशन्स द्वारा भिलाई के कोहका में संचालित जी.डी.रूंगटा कॉलेज ऑफ साइंस एण्ड टेक्नोलॉजी (जीडीआरसीएसटी), भिलाई में बायोटेक्नोलॉजी विभाग द्वारा बायोडायवर्सिटी ऑफ मेडिसनल एण्ड एरोमेटिक प्लांट वीथ रिस्पेक्ट टू इट्स कलेक्शन, कंजर्वेशन एण्ड कैरेक्टराईजेशन विषय पर दो दिवसीय सेमिनार के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे।  आगे पढ़ें
gdrcst, rcet, sonal rungtaउन्होंने इस हेतु साइंटिफिक सर्वे कर हर्बल दवाओं के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण कमर्शियल मेडिकल प्लांट्स की सूची तैयार करने तथा इनके संरक्षण तथा इन प्रजातियों को विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में अनेक एजेंसियां कार्य कर रही हैं परन्तु यह अत्यंत ही चिंता का विषय है कि अबतक इन प्लांट्स की चेकलिस्ट बनाने की ओर कोई कदम नहीं उठाये गये हैं।
डॉ.एमपी ठाकुर ने आगे कहा कि मेडिसनल प्लांट्स आज आयुर्वेद तथा यूनानी दवाओं के निर्माण में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। वैश्विक स्तर पर इन दवाओं के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले रॉ मटेरियल का 42 प्रतिशत चीन द्वारा सप्लाई किया जाता है वहीं 12 प्रतिशत एक्सपोर्ट के साथ भारत विश्व का दूसरा सबसे बड़ा सप्लायर है। 8500 करोड़ रूपये की विदेशी मुद्रा इस एक्सपोर्ट से प्राप्त होती है। पौधों का मानव जीवन में महत्व इस बात से रेखांकित किया जा सकता है कि यह पूरी तरह पौधों पर निर्भर होता है। बढ़ती हुई आबादी से अन्न की खपत भी बढ़ी है इस समस्या से निपटने तथा कृषि पैदावार बढ़ाने हेतु प्रयासों के तहत बायो- टेक्नालॉजी पर ध्यान देना आवश्यक है। भारत विश्व की सूची में 10वां मेगा डायवर्सिफाइड देश है। विशिष्ट अतिथि डॉ. सुरेखा कालकर ने सेमीनार हेतु चुने गये विषय की प्रशंसा करते हुए इसे आज की ज्वलंत समस्या बताया।
डायरेक्टर आरसीईटी डॉ. एस.एम. प्रसन्नकुमार ने अपने उद्बोधन में सेमीनार हेतु इंटरडिसिप्लिनरी सब्जेक्ट्स को आज की आवश्यकता बताया। इससे पहले कार्यक्रम की कार्यकारिणी सचिव श्रीमती प्रगति शुक्ला ने इस सेमीनार के उद्देश्य पर प्रकाश डालते हुए बताया कि प्राचीन काल में जड़ी-बूटियों की महत्ता तथा वर्तमान में हर्बल मेडिसीन की बढ़ती हुई डिमांड ने इस क्षेत्र नये शोध कार्यों को प्रोत्साहित करना अत्यंत आवश्यक है, जिस पर विचार मंथन हेतु इस सेमीनार का आयोजन किया गया है। आभार प्रदर्शन डॉ. अरूनिमा कारकुन ने किया।
प्रथम दिवस पर हुए टेक्निकल सेशन्स के दूसरे सेशन में डॉ. सुरेखा कालकर एसोसिएट प्रोफेसर एंड हेड ऑफ द डिपार्टमेंट बॉटनी, इंस्टीट्यूट ऑॅॅफ साइंस, नागपुर ने एरोमेटिक एण्ड मेडिसनल प्लांट्स पर प्रकाश डाला। सेमीनार में शोधार्थियों, विभिन्न शिक्षण संस्थानों के स्टूडेंट्स तथा उद्योगों से जुड़े प्रतिनिधियों ने शिरकत की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि डॉ.एमपी ठाकुर डीन, संत कबीर कॉलेज ऑफ एग्रीकल्चर एंड रिसर्च स्टेशन, कवर्धा तथा विशिष्ट अतिथि डॉ. केएल तिवारी रजिस्ट्रार, आयुष एण्ड हेल्थ साइंसेस यूनिवर्सिटी, तथा डॉ. सुरेखा कालकर एसोसिएट प्रोफेसर एंड हेड ऑफ द डिपार्टमेंट बॉटनी, इंस्टीट्यूट ऑॅॅफ साइंस, नागपुर तथा डॉ. एस.के. जाधव, प्रोफेसर बायोटेक्नालॉजी, पं. रविवि, रायपुर थीं। मौके पर संतोष रूंगटा समूह के डायरेक्टर एफएण्डए सोनल रूंगटा, डॉ. एस.एम. प्रसन्नकुमार, डॉ. डी.के. त्रिपाठी, डॉ. अजय तिवारी, महेन्द्र श्रीवास्तव, संजीव शुक्ला, प्रो. जे.पी. शर्मा, डॉ. वाय.एम. गुप्ता, प्रबंधक जनसंपर्क सुशांत पंडित सहित समस्त विभागों के विभागाध्यक्ष तथा फैकल्टीज उपस्थित थे।

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