भिलाई। राजनांदगांव की एक अनाम सी लड़की रेणुका आज भारतीय हॉकी टीम की महत्वपूर्ण खिलाड़ी है। उसकी कहानी बहुत कुछ अंतरराष्ट्रीय बाक्सर मैरी कॉम से मिलती जुलती है। परिवार साथ नहीं था पर कोच ने हौसला बढ़ाया। स्वयं दिलचस्पी लेकर उसे सिखाया और आज वह न केवल भारत का प्रतिनिधित्व कर रही है बल्कि रेलवे की नौकरी से इतना कमा लेती है कि पूरा परिवार मजे से रहता है. रेणुका प्रतिदिन साइकिल पर दूध बेचने निकलती। रास्ते में ही राजनांदगांव म्यूनिसिपल ग्राउंड पड़ता था। वहां काफी देर तक रुककर वह पुरुषों को हॉकी खेलते देखती। वहां लड़कियां भी हॉकी खेलती थीं। फिर एक दिन वह कोच भूषण साव से मिली और हॉकी खेलने की इच्छा जताई। कोच ने सहर्ष उसे सिखाना स्वीकार कर लिया। वह प्रतिदिन सुबह शाम हॉकी सीखने लगी। आठवीं कक्षा में पहुंचने तक वह चार नेशनल खेल चुकी थी। read more
आज 20 साल की रेणुका बताती है कि काफी दिनों तक उसने हाकी सीखने की बात अपने परिवार वालों से छिपा कर रखी। फिर एक दिन उसने घर वालों के सामने अपने हाकी खेलने की बात रखी और स्टिक दिलाने की मांग की। घरवालों ने साफ मना कर दिया। इसपर उसके कोच ने ही उसे हाकी स्टिक दिलाई। रेणुका मिड हॉफ फील्ड पोजिशन पर खेलती हैं। तीन साल से सीनियर इंडिया हॉकी कैंप में हैं। सेंट्रल रेलवे में टिकट चेकर हैं। ड्यूटी मुंबई जोन में है। घर में छोटा भाई कोमल, मां कांति और पिता मोतीलाल हैं। बड़ी बहन की शादी हो गई है।