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तार-तार हो रही छात्रसंघ चुनाव की अस्मिता

Aug 21, 2016

dr-hansa-shuklaडॉ. हंसा शुक्ला
वर्ष 2014-15 के पूर्व महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में कक्षा प्रतिनिधि एवं प्रदाधिकारी प्रावीण्य सूची के आधार पर नामांकित किए जाते थे। जिस कारण विद्यार्थियों में स्वस्थ प्रतिस्पर्धा की भावना का विकास होता था। जो विद्यार्थी कक्षा प्रतिनिधि अथवा किसी पद पर आना चाहते थे, वे मन लगाकर पढ़ाई करते थे, जिससे वह विभिन्न पदों हेतु नामांकित हो सके। वर्ष 2014-15 से छात्रसंघ का गठन नामांकन के स्थान पर चुनाव द्वारा होना निश्चित हुआ, जिसका उद्येश्य मुख्यत: छात्रों में लोकतांत्रिक मुल्य एवं सिद्धांतों को बढ़ावा देना था जिससे विद्यार्थी अपने अधिकार और कर्तव्यों के प्रति सजग रहे। अन्य उद्देश्यों में मुख्य था:- छात्रों में मूल्यनीत नेतृत्व क्षमता का विकास करना, अनुशासन व भाईचारे की भावना जागरूक करना। विद्यार्थियों को मानवाधिकारों के प्रति सजग करना, शांत एवं गंभीर आचरण करना तथा रैगिंग जैसी कुप्रथा को समाप्त करना।  महाविद्यालय में सामाजिक सांकृतिक एवं बौद्धिक गतिविधियों को बढ़ावा देना। विद्यार्थियों की नेतृत्व एवं रचनात्मक प्रतिभा को निखारनेे के लिए उनको साहित्यिक, सांस्कृतिक, कलात्मक, अनुसंधानात्मक एवं खेल संबंधी गतिविधि में भाग लेने हेतु प्रेरित करना।  राष्ट्रीय एवं अंर्तराष्ट्रीय महत्व के वैज्ञानिक गतिविधि एवं जागरूकता को बढ़ावा देना। समाज के सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक मुद्दों के प्रति सामाजिक सहभागिता के अंतर्गत विद्यार्थियों को सचेत करना। ज्ञानवर्धक समाज के निर्माण को मुख्य उद्देश्य मानकर समान रूचि, समान व्यवहार भाव के प्रति शिक्षण:अधिगम को पोषित करना।
इन मुख्य उद्येश्यों को ध्यान में रखकर छात्रसंघ चुनाव की घोषणा की गई जो निश्चित रूप से Óसशक्त युवा सशक्त भारतÓ के समपाश्र्विक है। नियमावली में उद्देश्य के अलावा आचारसंहिता की सूची भी दी गई है जो छात्रसंघ के सदस्यों को नहीं करना है।
जैसे:-
1. अभ्यर्थियों द्वारा प्राध्यापक/ कर्मचारी/ विद्यार्थी को व्यक्तिगत रूप से इंगित नहीं किया जा सकता।
2. कोई भी एसा कार्य नहीं करना जो महाविद्यालय या विश्वविद्यालय के अकादमिक कैलेंडर को प्रभावित करे।
3. किसी भी ऐसे कार्य में संलग्न नहीं होना जिससे महाविद्यालय/विश्वविद्यालय शिक्षण विभाग की शांति या गुणवत्ता पर प्रभाव पड़े।
4. महाविद्यालय/विश्वविद्यालय की सामान्य गतिविधियों के विरूद्ध व्यवहार नहीं होना चाहिए।
5. छात्रसंघ की किसी राजनीतिक दल के साथ साझेदारी या सहभागिता नहीं होगी, न ही उन्हें चिन्हांकित करेगें।
6. कोई भी ऐसा मुद्दा नहीं लेंगे जो महाविद्यालय/विश्वविद्यालय के वैधानिक निकाय के अतिरिक्त अन्य न्यायाधिकार की सीमा में जाए।
निश्चित रूप से छात्रसंघ चुनाव के नियमावली से ये स्पष्ट होता है, कि उसका उद्देश्य शैक्षणिक संस्था के गुणात्मक विकास में विद्यार्थियों का सकारात्मक सहयोग प्राप्त करना साथ ही विद्यार्थियों का मूल्यपरक विकास कर उनकी रचनात्मक क्षमता को बढ़ावा देना है, जिससे उनके व्यक्तिव का सर्वांगिण विकास हो सके।
अफसोस इस बात का है कि वर्ष 2014-15 से जो छात्रसंघ चुनाव संपन्न हो रहे हैं उनमें राजनीतिक दलों का दबदबा बना हुआ है। विद्यार्थी लोकतांत्रिक आधार पर चुनाव लड़ ही नहीं पाते। उनके ऊपर छोटे नेताओं का दबदबा होता है। महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में चुनाव घोषणा से चुनाव परिणाम तक की अवधि में शैक्षणिक गतिविधियों में विद्यार्थियों की संख्या ना के बराबर होती है। महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय में प्रवेश प्राप्त विद्यार्थियों के अलावा अन्य राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों एवं कार्यकर्ताओं का जमावाड़ा होता है कुछ छोटे नेता महाविद्यालय के प्रशासन से मिलकर यह बात भी करते हैं कि हमारे कुछ व्यक्तियों को परिसर में आने की अनुमति दे दीजिए। ऐसे में कहीं न कहीं यह अनुभव होता है कि आचारसंहिता व नियमावली एक दिखावा मात्र है विद्यार्थियों में चुनाव द्वारा नेतृत्व क्षमता का विकास तो कम होता है बल्कि वह अपरिपक्वता के कारण कुछ लोगों के मोहरे अवश्य बन जाते है।
चुनाव घोषणा के बाद प्रत्येक महाविद्यालय और विश्वविद्यालय के बाहर विभिन्न दलों के प्रतिनिधि उपस्थित होकर विद्यार्थियों से संपर्क बना अपने उम्मीदवार को वोट देने की अपील करते हैं, कभी-कभी विद्यार्थियों को यह स्पष्ट नहीं हो पाता कि चुनाव महाविद्यालयीन अभियर्थियों हेतु है या राजनीतिक दलों का! ये सब बातें तो फिर भी बर्दाश्त हो जाती है, लेकिन कुछ पार्टी के कद्दावर नेता प्राचार्य एवं शिक्षक से सम्पर्क कर कहते हैं, कि अमुक विद्यार्थी हमारी पार्टी से खड़ा हो रहा है, उसका ध्यान रखिएगा, ऐसे में शिक्षक की स्थिति इस लोकतांत्रिक चुनाव में उस मोहरे के जैसी होती है, जो अनुशासन का पालन करे तो कुछ कद्दावार लोगों के आंखों की किरकिरी बन सकते है, और पालन ना करें तो स्वयं के मुल्यों का आत्महनन।
सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि अभ्यार्थियों द्वारा चुनाव एजेण्डे में अकादमिक गतिविधि से संबंधित वायदे होते ही नहीं है और अगर होते भी है तो न के बराबर इनके मुद्दे होते है, महाविद्यालय परिसर में फ्री वाय-फाय सुविधा, सर्वसुविधा युक्त कैण्टीन, वार्षिक उत्सव की जगह कम से कम 3 दिन का भव्य फेस्ट आदि- आदि। इन सबसे हम अंदाजा लगा सकते हैं कि छात्रसंघ चुनाव से किस प्रकार मूल्य परक भाव विद्यार्थियों में विकसित होते है तथा इन चुनाव के द्वारा कैसी नेतृत्व क्षमता का विकास।
इन 15 से 20 दिनों में महाविद्यालयों एवं विश्वविद्यालयों परिसर में पूर्णत: राजनीतिक सरगर्मी का माहौल होता है। नियमित कक्षाएं लगभग ना के बराबर हो पाती है एसे में जो विद्यार्थी राजनीति से दूर पढऩे के लिए कॉलेज आते है उनके मन में भी शायद एक ही बात होती है, यदि यह चुनाव लोकतांत्रिक मूल्यों का सवंहन कर अच्छी नेतृत्वशैली के विकास हेतु कराये जाते है, तो बेहतर है एसे चुनाव न हो अन्यथा लोकतंत्र से हमारा विश्वास उठ जाएगा।
सारत: हम कह सकते है कि जिन उद्देश्यों का वर्णन छात्रसंघ चुनाव हेतु किया गया है, वह चुनाव के दौरान तार-तार होते दिखाई देते है। अनुशासन एवं भाई चारे के भाव तो परिसर में दूर-दूर तक दखिाई नही देते क्योंकि दलों से जुडऩे के कारण अभ्यार्थियों में सिर्फ एक ही भाव का संवहन होता है- Óचुनाव जीतने काÓ फिर वह जीत किसी भी स्तर से मिलें। छात्रसंघ चुनाव की जगह नामांकन प्रक्रिया ही लागु हो या चुनाव में दलों का प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष दखलअंदाजी पूर्णत: वर्जित हो अन्यथा इस चुनाव के माध्यम से विद्यार्थी राजनीति के एसे दांव-पेंच सीखेगें कि लोकतांत्रिक मूल्यों का इससे ज्यादा हनन कहीं नहीं होगा।
डॉ. (श्रीमती)हंसा शुक्ला

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