मुम्बई। बदसूरत और दिव्यांग लड़कियां अपने माता पिता पर बोझ बन जाती हैं। इनकी शादी कराने के लिए माता पिता को ज्यादा दहेज जुटाना पड़ता है क्योंकि कोई इनसे विवाह नहीं करना चाहता। उधर सरकार बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ के नारे लगा रही है। यह सोच है भाजपा शासित महाराष्ट्र के स्कूल शिक्षा विभाग की। कक्षा 11वीं की समाजशास्त्र की किताब में यह बातें लिखी गई हैं। किताब के तीसरे अध्याय में लिखा गया है कि अपंग और बदसूरत लड़कियों की शादी के लिए घर वालों को काफी परेशानियां झेलनी पड़ती हैं। ऐसी लड़की से शादी करने के लिए दूल्हा या उसका परिवार अधिक दहेज की मांग करते हैं। किताब के मुताबिक दहेज की मांग बढ़ाने वाले दूसरे फैक्टर्स में धर्म, जाति और सामाजिक स्तर भी अहम हैं। साथ ही यह भी लिखा है कि अपनी बेटी के लिए अच्छा दूल्हा तलाश रहे माता-पिता ज्यादा पैसा खर्च करने को तैयार रहते हैं, इस वजह से भी दूल्हे ज्यादा से ज्यादा दहेज मांगते हैं। 2013 में प्रकाशित होने से लेकर अब तक यह किताब हजारों बच्चे पढ़ चुके हैं। कई शिक्षकों ने किताब के इस हिस्से पर आपत्ति जताते हुए कहा कि किताब पढ़ाने के दौरान वे इस हिस्से को छोड़ देते हैं ताकि बच्चों पर इसका बुरा असर न पड़े।
इस बाबत जब स्टेट एजुकेशन बोर्ड से पूछा गया तो बोर्ड चेयरमैन ने पीटीआई को बताया कि मामले की जांच की जाएगी। उन्होंने कहा कि मैं इस मामले की चर्चा बोर्ड ऑफ स्टडीज के साथ करने के बाद ही इस पर कोई टिप्पणी करूंगा।
बढ़ रहे दहेज हत्या के मामले
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के मुताबिक साल दर साल दहेज हत्या के मामले बढ़ रहे हैं। औसतन हर घंटे एक औरत दहेज हत्या का शिकार बन रही है। इन आंकड़ों पर गौर करते हुए ही सरकार और सामाजिक संस्थाएं इस बात पर जोर दे रही हैं कि नई पीढ़ी को यह सिखाया जाए कि किसी के चेहरे और बाहरी सुंदरता से ज्यादा महत्वपूर्ण उसका स्वभाव है। ऐसे में स्कूल की किताब में ऐसी बातें इन प्रयासों के लिए किसी धक्के से कम नहीं हैं।
This is not true. I know dozens of girls who are not model types but are otherwise pleasing. They have been married into decent families. There are love marriages, arranged marriages. Dowry comes in only when family name, gotra, caste, etc. gets the upper hand.