भिलाई। प्रखर चिंतक एवं लेखक मयंक चतुर्वेदी ने आज एमजे कालेज के विद्यार्थियों से कहा कि यदि वे सही सोच के साथ समय का सदुपयोग करते हुए आगे बढ़ें तो सफलता निश्चित तौर पर मिलेगी। आशातीत सफलता के लिए अपने व्यवहार को भी नियंत्रण में रखने की कला सीखने होगी। श्री चतुर्वेदी यहां स्वामी विवेकानंद की 156वीं जयंती के अवसर पर राष्ट्रीय सेवा योजना द्वारा आयोजित समारोह को संबोधित कर रहे थे। श्री चतुर्वेदी ने उदाहरण देकर समझाया कि हममें से वे लोग जो सोशल मीडिया पर अपना वक्त बर्बाद करते हैं उनके पास कभी वक्त होता ही नहीं है। उन्होंने कहा कि जिनके पास वक्त नहीं होता उनकी कोई सोच नहीं होती। होती भी है तो वह पुष्ट होने से पहले ही खो जाती है। दिन भर बिजी रहने वाले ऐसे लोग कभी तरक्की नहीं करते। तरक्की केवल वही करते हैं जो अपने समय का सदुपयोग करते हैं। उन्होंने कहा कि विवेकानंद के पास भी 24 ही घंटे थे, अनिल अंबानी के पास भी 24 घंटे ही हैं। वे इतने ही समय में सबकुछ कर जाते हैं और कुछ लोग सिर्फ समय नहीं होने का बहाना बनाते रह जाते हैं।
व्यवहार की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि व्यवहार से ही लोगों की सकारात्मक या नकारात्मक छवि बनती है। जिन लोगों से हम कभी मिले नहीं, जिनसे कभी फोन पर बात तक नहीं की, जिन्हें कभी चिट्ठी तक नहीं लिखी हम उनके भी मुरीद हो जाते हैं। व्यवहार में बॉडी लैंग्वेज, स्वर और भाषा, सभी का सम्मिश्रण होता है। हमें इसपर नियंत्रण पाने की कोशिश करनी चाहिए।
चुनौतियों और आड़े वक्त की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि कोई भी चुनौती ऐसी नहीं जो हमेशा आपके समक्ष बनी रहे, कोई भी बुरा वक्त ऐसा नहीं जो आकर चला न जाए। जो चीजें कभी हमें बहुत परेशान करती थीं आज उनका कहीं अस्तित्व नहीं है। इसलिए परिस्थितियां चाहे जितनी भी विपरीत हों, परेशान होने की जरूरत नहीं है। इसी तरह यदि किसी ने कुछ कह या कर दिया है तो तुरन्त प्रतिक्रिया देना भी जरूरी नहीं है। थोड़ी देर ठहर जाएं तो अकसर प्रतिक्रिया जरूरी भी नहीं रह जाती।
इससे पहले एमजे कालेज की डायरेक्टर श्रीमती श्रीलेखा विरुलकर ने एक कहानी सुनाते हुए जीवन में आने वाली समस्याओं का सामना करने की सीख दी। उन्होंने युवा विवेकानन्द के जीवन का एक प्रसंग उद्धृत करते हुए कहा कि एक बार स्वामी जी कुछ अन्य साधुओं के साथ कहीं जा रहे थे। एकाएक उन्हें बंदरों ने घेर लिया। कुछ बंदर संन्यासियों की तरफ भी लपके। इससे दो युवा संन्यासी भागने लगे। स्वामी विवेकानंद ने उन्हें रोक लिया और चुपचाप खड़े रहने के लिए कहा। जब वे स्वामी जी की आज्ञा का पालन करने लगे तो उन्होंने देखा कि वानर भी उनके पास आकर खड़े हो गए हैं। थोड़ी देर बाद वे लौट भी गए। स्वामी जी ने कहा कि बन्दरों का आना कोई समस्या थी ही नहीं। आप खामख्वाह डरे जा रहे थे। यदि आप भाग गए होते तो बन्दर जीवन पर्यन्त आपको डराते रहते। आपने एक बार सामना कर लिया तो बन्दरों का भय हमेशा के लिए खत्म हो गया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच ने कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कहा कि उनके जीवन पर स्वामीजी का गहरा प्रभाव पड़ा है। वे फुर्सत के पलों में रायपुर स्थित विवेकानंद आश्रम जाया करते थे। वहां बहुत कम मूल्य पर विवेकानंद का लघु साहित्य मिलता है। वे अपने साथ हमेशा विवेकानंद साहित्य रखा करते और यात्रा के दौरान उसे पढ़ा करते। उन्होंने बच्चों से विवेकानन्द जी की शिक्षा को आत्मसात करने का आह्वान किया।
इस अवसर पर शिक्षा विभाग की प्रभारी डॉ श्वेता भाटिया व वाणिज्य संकाय के छात्र विशाल कुमार सोनी ने भी अपने विचार व्यक्त किये। इस अवसर पर आयोजित पोस्टर प्रतियोगिता का प्रथम पुरस्कार प्राची सोम, द्वितीय पुरस्कार विशाल सोनी एवं तृतीय पुरस्कार प्रीति गुप्ता को प्रदान किया गया। इस अवसर पर निबंध प्रतियोगिता भी आयोजित की गई जिसमें मुक्ता रक्षित, भारती यादव और हेमलता को प्रथम, मुस्कान जांगड़े को द्वितीय तथा कीर्तिलता सिन्हा को तृतीय पुरस्कार प्रदान किया गया।
मुख्य अतिथि श्री चतुर्वेदी ने इस अवसर पर वाणिज्य एवं प्रबंधन विभाग के न्यूजलेटर का विमोचन भी किया। नर्सिंग कालेज की छात्राओं ने स्वामी विवेकानंद के जीवन के प्रसंगों पर दो लघु नाटकों का मंचन भी किया। कार्यक्रम का संचालन राष्ट्रीय सेवा योजना के प्रभारी डॉ जेपी कन्नौजे ने किया। मंच पर महाविद्यालय के सीओओ वीके चौबे भी मौजूद थे।