भिलाई। अंग्रेजी सहित अन्य भाषाओं के शब्दों को स्वीकार कर हिन्दी समृद्ध हो रही है। वह दिन दूर नहीं जब तकनीकी शब्दों को भी जस का तस स्वीकार कर तकनीकी विषयों की पुस्तकों को हिन्दी में प्रकाशित किया जा सकेगा। इससे तकनीकी शिक्षा जगत में क्रांति आ सकती है। उक्त विचार एमजे कालेज में हिन्दी दिवस के अवसर पर आयोजित संगोष्ठिी को संबोधित करते हुए प्रभारी प्राचार्य डॉ अनिल चौबे ने व्यक्त किये।संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि हिन्दी स्वयं अनेक बोलियों एवं भाषाओं के मेल से बनी है जो भारत के एक बड़े भूभाग में बोली जाती है। अधिकांश शासकीय स्कूलों के बच्चों को हिन्दी माध्यम से शिक्षा मिलती है। ऐसे बच्चों के लिए तकनीकी शिक्षा की राह कठिन होती है।
महाविद्यालय की निदेशक श्रीलेखा विरुलकर के निर्देश पर आयोजित इस संगोष्ठी में कालेज के शिक्षा संकाय की अध्यक्ष श्वेता भाटिया ने कहा कि राजभाषा हिन्दी का विकास तीव्र गति से हो रहा है और यह लोकप्रिय भी हो रहा है। सहा. प्रा. डॉ गायत्री गौतम ने बताया कि 14 सितम्बर 1950 को हिन्दी देश की राजभाषा के रूप में स्वीकृत हुई। यह विश्व में तीसरी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है। उन्होंने भाषा में आ रहे विकार पर चिंता व्यक्त की।
संगोष्ठी में आईक्यूएसी प्रभारी अर्चना त्रिपाठी, हिन्दी की सहा. प्रा. रंजीता सिंह, डॉ जेपी कन्नौजे, नेहा महाजन, शकुन्तला जलकारे, उर्मिला यादव, ममता एस राहुल, मंजू साहू, रजनी कुमारी, शाहीन अंजुम, आशीष सोनी, विकास सेजपाल, दीपक रंजन दास, अवंतिका ने भी हिस्सा लिया। इस बात पर व्यापक सहमति बनी कि अन्य भाषाओं के ऐसे प्रचलित शब्दों को हिन्दी में शामिल कर लिया जाना चाहिए जो व्यवहार में हैं और सभी के द्वारा बोला, समझा व लिखा जाता है।