भिलाई। जिलादण्डाधिकारी गरिमा शर्मा ने कहा कि ‘माइलस्टोन’ अपने नाम को पूरी तरह सार्थक करता है। माइलस्टोन शब्द का एक अर्थ पड़ाव भी होता है। शालेय जीवन एक महत्वपूर्ण पड़ाव है जहां बच्चे विषय ज्ञान के साथ-साथ सामाजिक व्यवहार भी सीखते हैं। श्रीमती शर्मा माइलस्टोन अकादमी के वार्षिकोत्सव को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि बच्चों का पालन पोषण स्वयं पालकों को भी बहुत कुछ सिखा देता है। माइलस्टोन अकादमी के चार दिवसीय वार्षिकोत्सव समारोह का आज दूसरा दिन था। इसमें यूकेजी और पहली-दूसरी कक्षा के बच्चे भाग ले रहे थे। गरिमा ने कहा कि बतौर मजिस्ट्रेट उन्होंने अपने करियर के 16 वर्षों में से 14 वर्ष बाल न्यायालय (जूवेनाइल कोर्ट) को दिए हैं। इस दौरान उन्होंने बच्चों पर परवरिश के प्रभाव को करीब से देखा। पर इससे भी ज्यादा उन्हें उन 11 वर्षों में सीखने को मिला जब उन्होंने अपने बच्चे की परवरिश शुरू की।
उन्होंने कहा कि बच्चों की परवरिश एक 24 इनटू 7 जॉब है जिसमें आप प्रतिदिन प्रतिपल कुछ न कुछ सीखते हैं। उन्होंने बताया कि बच्चों को स्वतंत्र रूप से अनुभव करने और समस्याओं का समाधान करने दें। इससे उनकी जूझने की क्षमता विकसित होगी जो आगे के जीवन के लिए अत्यंत आवश्यक है। उन्होंने कहा कि माइलस्टोन अकादमी का परिवेश इस कसौटी पर 100 फीसदी खरा उतरता है।
गरिमा शर्मा ने बच्चों में सकारात्मक सोच को विकसित करने की आवश्यकता पर बल देते हुए कहा कि बच्चे को उसका स्पेस दें। बच्चे सबसे पहले अपने परिवार से सीखते हैं और फिर अपने स्कूल से। घर पर माता-पिता तथा स्कूल में टीचर्स का आचरण उनका आदर्श होता है। पैरेन्ट्स को स्कूल के साथ चलना चाहिए और स्कूल को भी पेरेन्ट्स को विश्वास में लेकर चलना चाहिए।
उन्होंने कहा कि बच्चे के साथ संवाद कई प्रकार के हो सकते हैं। कभी जहां चुप्पी काफी होती है वहीं कभी कभी केवल एक मुस्कान बच्चे का हौसला बढ़ा देती है। पर यह हमेशा काम नहीं आता। पर यह हर जगह काम नहीं आता। कहीं कहीं वार्तालाप अपरिहार्य होता है। हमें बच्चों को उसके लिए तैयार करना होता है।
उन्होंने कहा कि बच्चों को प्रत्येक परिस्थिति में खुश रहना सिखाना होगा ताकि वे आगे चलकर तनाव पूर्ण परिस्थितियों का हंस कर सामना कर सकें।
इससे पूर्व समारोह को संबोधित करते हुए माइलस्टोन की डायरेक्टर डॉ ममता शुक्ला ने कहा कि बच्चों के विकास में कहानियों की बड़ी भूमिका होता है। उन्हें कहानियां पढ़ने दें। इससे एक तरफ जहां उनकी पढ़ने में रुचि जागृत होगी वहीं वह उसे स्वयं ही समझने का भी प्रयत्न करेगा। यही नहीं कुछ और पढ़ने की ललक पैदा होगी। स्वयं पढ़ने और समझने की यह प्रवृत्ति आगे चलकर उसके बहुत काम आएगी।
उन्होंने पालकों को सावधान करते हुए कहा कि बच्चों की उपस्थिति में वे अपने शब्दों तथा व्यवहार को मर्यादित रखें। बच्चे घर में अपने माता-पिता तथा स्कूल में अपने शिक्षकों के आचरण से शिक्षा प्राप्त करते हैं। नेहरू नगर पार्क के एक आयोजन का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि प्रवेश शुल्क से बचने के लिए एक व्यक्ति अपने बच्चों को चोरी-चोरी वहां प्रवेश कराने का प्रयास कर रहा था। आगे चलकर बच्चा भी ऐसी भी कोशिशें करेगा। बच्चों की उपस्थिति में लड़ना झगड़ना, असंयमित शब्दों का प्रयोग करना, उन्हें भी इसी तरह के आचरण के लिए प्रेरित करता है।