श्रीशंकराचार्य महाविद्यालय में मशरूम उत्पादन पर राष्ट्रीय कार्यशाला
भिलाई। श्री शंकराचार्य महाविद्यालय जुनवानी में सूक्ष्म जीवविज्ञान एवं जंतुविज्ञान विभाग द्वारा आयोजित सात दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला ‘सामाजिक कूड़ा प्रबंधन एवं जीवविज्ञान की प्रवृत्ति : एक निर्मल दुनिया का प्रस्ताव’ (3 से 9 दिसंबर) पर चल रहे तकनीकी सत्र में पांचवे दिन मशरूम उत्पादन पर कार्य किया गया। मशरूम उत्पादन पर प्रशिक्षण दे रहे मशरूम विशेषज्ञ दिनेश सिंह ने कहा, मशरूम एक उत्पाद है, जिसे एक कमरे में भी उगाया जा सकता है। इससे किसान अपनी आय दोगुनी ही नहीं चार गुनी कर सकते हैं।पिछले कुछ वर्षों में भारतीय बाजार में मशरूम की मांग तेजी से बढ़ी है। जिस हिसाब से बाजार में इसकी मांग है, उस हिसाब से अभी इसका उत्पादन नहीं हो रहा है, ऐसे में किसान मशरूम की खेती कर अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। तीन तरह के मशरूम का उत्पादन होता है, अभी सितम्बर महीने से 15 नवंबर तक ढ़िगरी मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, इसके बाद आप बटन मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं, फरवरी-मार्च तक ये फसल चलती है, इसके बाद मिल्की मशरूम का उत्पादन कर सकते हैं जो जून जुलाई चलता है। आॅयस्टर मशरूम की खेती बड़ी आसान और सस्ती है। इसमें दूसरे मशरूम की तुलना में औषधीय गुण भी अधिक होते हैं।
उन्होंने बताया कि दिल्ली, कलकत्ता, मुम्बई एवं चेन्नई जैसे महानगरों में मशरूम की बड़ी माँग है। पिछले कुछ समय में छत्तीसगढ़ राज्य में भी इसकी मांग बढ़ रही है एवं तेजी से इसका उत्पादन भी बढ़ रहा है विगत तीन वर्षों में इसके उत्पादन में 10 गुना वृद्धि हुई है। आॅयस्टर की खेती के बारे में कहते हैं, स्पॉन (बीज) के जरिए मशरूम की खेती की जाती है, इसके लिए सात दिन पहले ही मशरूम के स्पॉन (बीज) लें, ये नहीं की एक महीने मशरूम का स्पान लेकर रख लें, इससे बीज खराब होने लगते हैं। इसके उत्पादन के लिए भूसा, पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन और स्पॉन (बीज) की जरूरत होती है। दस किलो भूसे के लिए एक किलो स्पॉन की जरूरत होती है, इसके लिए पॉलीबैग, कार्बेंडाजिम, फॉर्मेलिन, की जरूरत होती है।
इसी प्रकार बटन मशरूम एवं मिल्की मशरूम का उत्पादन भी बहुत ही आसान है छत्तीसगढ़ में विभिन्न कार्यक्रमों के तहत गांव की औरतों को इसका प्रशिक्षण दिया जा रहा है जिससे वह अपनी जीविका कमा सुचारू रूप से जीवन यापन कर सकती हैं। मशरूम की खेती बड़े वैज्ञानिक तरीके से की जाती है, इसलिए तकनीकी पहलुओं को समझना विद्याथिर्यों के लिए अति आवश्यक है। कायर्शाला में बताया गया कि सरकार कृषि से संबंधित इस क्षेत्र को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक योजनाएं चला रही है। मशरूम उत्पादन को स्वरोजगार के रूप में अपनाने वाले उम्मीदवारों को भारत सरकार के कृषि मंत्रालय द्वारा पांच लाख रुपए तक की आर्थिक सहायता की व्यवस्था की जाती है। विद्याथिर्यों ने मशरूम उत्पादन की तकनीक को समझा व सीखा एवं उससे संबंधित प्रश्न उत्तर किये।
महाविद्यालय की निदेशक एवं प्राचार्य डॉ रक्षा सिंह ने कार्यशाला में विद्याथिर्यों एवं शिक्षकों की सहभागिता की सराहना की तथा उन्हें कैरियर संबंधित विषयों में रूचि लेने के लिए प्रेरणा वचन कहे।
महाविद्यालय के अतिरिक्त निदेशक डॉ जे दुर्गा प्रसाद राव ने कायर्शाला की भूरि-भूरि प्रशंसा की तथा विद्याथिर्यों को अपने आशीष वचन दिए।
आयोजन सचिव डॉ रचना चौधरी एवं संयोजक डॉक्टर सोनिया बजाज है। सहायक प्राध्यापक श्रीमती अर्चना सोनी, आफरीन खानम, श्रद्धा विश्वकर्मा, विकास चंद्र शर्मा, वर्षा यादव एवं श्रीमती अंजना मिश्रा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।