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शिक्षण की क्षमता ही अच्छे शिक्षक की पहचान : डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी

Feb 23, 2020

Teacher Training workshop at Science College Durgदुर्ग। अच्छे शिक्षक की पहचान उसकी अच्छी शिक्षण क्षमता होती है। प्रत्येक शिक्षक को पूर्ण तैयारी के साथ कक्षाओं में जाना चाहिए। जब तक विद्यार्थियों के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं हो जाता तब तक विद्यार्थी को कक्षा में लाभ नहीं मिल पाता। ये उद्गार उच्चशिक्षा विभाग के अपर संचालक, दुर्ग संभाग डॉ. सुशीलचन्द्र तिवारी ने व्यक्त किये। डॉ. तिवारी शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय में आयोजित नवनियुक्त सहायक प्राध्यापकों, जनभागीदारी मद से मानदेय पर नियुक्त सहायक प्राध्यापकों तथा छत्तीसगढ़ शासन द्वारा नियुक्त अतिथि प्राध्यापकों हेतु नई शिक्षण पद्धति पर केन्द्रित दो दिवसीय कार्यशाला को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे।Teacher-Training-Programme Teachers Training at VYT Science college Durgडॉ. तिवारी ने कहा कि हमें विषय को रूचिकर बनाकर विद्यार्थियों को कक्षा में आने हेतु प्रेरित करना चाहिए। आज का विद्यार्थी मोबाइल एवं आईसीटी तकनीकों के कारण काफी अपडेट रहता है। अत: शिक्षकों को भी स्वयं को विषय के नवीनतम ज्ञान से अपडेट रहना चाहिए। अच्छे शिक्षक को विद्यार्थी वर्षों तक याद रखता है।
सरस्वती पूजा के साथ आरंभ हुए कार्यक्रम में अतिथियों को पौधे भेंटकर स्वागत प्राचार्य डॉ. आर.एन.सिंह, संयोजक डॉ. एम.ए. सिद्दीकी तथा डॉ. अनीता शुक्ला ने किया। अपने स्वागत भाषण में कार्यशाला के संयोजक डॉ. एम.ए. सिद्दीकी ने कार्यशाला की महत्ता एवं उसकी आवश्यकता पर विचार व्यक्त करते हुए कहा कि विषय का सही एवं गहराई युक्त ज्ञान ही किसी शिक्षक को अच्छे शिक्षक के रूप में परिवर्तित कर सकता है। डॉ. सिद्दीकी के अनुसार यदि कोई शिक्षक 50 प्रतिशत से ज्यादा अपनी बात को विद्यार्थियों तक संप्रेषित कर सके तो भी वह उत्कृष्ट शिक्षकों में गिना जायेगा।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. आर.एन. सिंह ने अपने संबोधन में उपस्थित प्रतिभागी शिक्षकों से आव्हान किया कि वे कक्षाओं में जाने के पूर्व स्वयं को मानसिक रूप से तैयार कर लें। डॉ. सिंह ने शिक्षकों को सलाह दी कि कक्षा का वातावरण इस प्रकार होना चाहिए कि विद्यार्थी उसमें अपने आप तथा शिक्षक के मध्य सामंजस्य स्थापित कर सके। डॉ. सिंह ने एकतरफा व्याख्यान वाले शिक्षण पद्धति के स्थान पर दो तरफा शिक्षण पद्धति की वकालत करते हुए कहा कि शिक्षक एवं विद्यार्थी दोनों तरफ से विषय का आदान-प्रदान होना चाहिए।
कार्यशाला का संचालन करते हुए डॉ. तरलोचन कौर संधू ने शिक्षकों की महत्ता प्रतिपादित करते हुए कहा कि शिक्षक एक ऐसी मोमबत्ती के समान हैं,जो स्वयं जलकर दूसरों को प्रकाश देता है। आज आयोजित तीन सत्रों में प्रथम सत्र में स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय, हुडको, भिलाई की एजुकेशन विभाग की डॉ. सुनीता शर्मा ने शिक्षण की नई पध्दतियोंं पर रोचक व्याख्यान दिया। डॉ. शर्मा ने शिक्षण हेतु चॉक, डस्टर तथा समय को सबसे महत्वपूर्ण घटक करार दिया। डॉ. शर्मा ने प्रतिभागी शिक्षकों को सलाह दी कि सदैव विद्याथिर्यों से आंख से आंख मिलाकर शिक्षण कार्य संपादित करें। विद्यार्थी को विश्वास में लेकर हम उनसे कड़ी मेहनत करवा सकते हैं। द्वितीय सत्र में साईंस कालेज, दुर्ग के डॉ. व्ही.एस.गीते ने छात्रों के मनोविज्ञान के विषय पर प्रकाश डालते हुए बताया कि छात्रों के मनोविज्ञान एवं मस्तिष्क को पढ़ने की क्षमता युक्त शिक्षक ही अच्छा अध्यापक हो सकता है। इस व्यवसाय में आने से पूर्व छात्र मानसिकता का अध्ययन करके ही अध्यापन कार्य सफलतापूर्वक किया जा सकता है। अध्यापक को अपनी बॉडी लैंग्वेज इस प्रकार से रखनी चाहिए कि छात्र प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से आहत न हो। शिक्षक को हमेशा पूर्ण तैयारी के साथ कक्षा में जाना चाहिए।
दोपहर के तृतीय सत्र में पंडित सुन्दरलाल शर्मा ओपन विश्वविद्यालय के रीजनल डायरेक्टर डॉ. डी.एन. शर्मा ने अपने संबोधन में पावर प्वाइंट प्रस्तुतिकरण के माध्यम से शिक्षको को शिक्षण के दौरान ध्यान में रखी जाने वाली बातों पर ध्यान केन्द्रित किया। डॉ. शर्मा ने गु्रप डिस्कशन के माध्यम से प्रतिभागी शिक्षकों से उनके विचार जाने डॉ. डी.एन. शर्मा ने अपने लंबे अनुभव के आधार पर शैक्षणिक कार्यों को संपादित करने के विभिन्न घटकों की जानकारी विस्तार से दी। डॉ. शर्मा के व्याख्यान के दौरान प्रतिभागियों ने अनेक प्रश्न पूछकर उनकी जिज्ञासाओं का समाधान किया। कार्यक्रम के दौरान आयोजन समिति के सदस्य डॉ. अनीता शुक्ला, डॉ. तरलोचन कौर संधू, डॉ. अभिषेक मिश्रा, डॉ. सीतेश्वरी चन्द्राकर, डॉ. प्रशांत श्रीवास्तव आदि मौजूद थे।

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