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रक्तदान करके देखो, अच्छा लगता है – डॉ नेरल

Jun 11, 2021
Meet the doctor at Hemchan Yadav University

दुर्ग। पं. जवाहर लाल नेहरू मेमोरियल मेडिकल कालेज, रायपुर के प्रो. डॉ अरविन्द नेरल ने आज युवाओं का रक्तदान के लिए आगे आने का आह्वान करते हुए कहा – रक्तदान करके देखो – अच्छा लगता है। उन्होंने कहा कि जितने लोग आज रक्तदान करते हैं, यदि वह संख्या सिर्फ दुगनी हो जाए तो देश की रक्त की जरूरत पूरी हो सकती है। डॉ नेरल हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला “मीट द डॉक्टर” को संबोधित कर रहे थे।अब तक 115 बार रक्तदान कर चुके रक्तवीर डॉ नेरल ने कहा कि 18 से 65 साल के बीच का कोई भी निरोग व्यक्ति रक्तदान कर सकता है। अपने जीवनकाल में वह अधिकतम 188 बार रक्तदान कर सकता है। यह लगभग 65 लिटर रक्त होता है जिससे 564 लोगों की जान बचाई जा सकती है। रक्तदान करने के बाद प्लाज्मा की पूर्ति 24 घंटे में हो जाती है और दो सप्ताह में रक्त पूरी तरह से रिप्लेस हो जाता है। दुर्घटना का शिकार होने, रक्तस्राव होने या सर्जरी के दौरान ही अधिकांश लोगों को रक्त की जरूरत होती है। इसके अलावा सिकल सेल एनीमिया या थैलेसीमिया जैसे रोग से ग्रस्त लोगों को नियमित रूप से रक्त की आवश्यकता होती है।
डॉ बिधान चंद्र राय अवार्ड से सम्मानित डॉ नेरल ने महिलाओं से रक्तदान के लिए आगे आने का आग्रह करते हुए कहा कि पुरुषों की तुलना में केवल 2 फीसद महिलाएं ही रक्तदान करती हैं। पुरुष जहां प्रतिवर्ष 4 बार रक्तदान कर सकते हैं वहीं स्त्रियों को केवल 3 बार ही रक्तदान करना चाहिए। इसकी केवल एक शर्त होती है कि व्यक्ति निरोग हो तथा उसका हीमोग्लोबिन 12.5 से अधिक हो। प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में प्रतिकिलोग्राम 76 एमएल रक्त होता है जबिक आवश्यकता केवल 50 एमएल की होती है। इस अतिरिक्त 26 एमएल रक्त का सहज दान किया जा सकता है। इससे किसी प्रकार की कमजोरी नहीं आती। वैसे भी एक बार में 350 से 450 एमएल रक्त ही लिया जाता है जो अतिरिक्त रक्त का केवल एक तिहाई होता है।
रक्तदान से होने वाले लाभों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि इससे कोलेस्ट्रॉल घटता है, रक्त का घनत्व कम होता है, अस्थिमज्जा नया रक्त बनाने के लिए प्रेरित होता है। इसके अलावा रक्तदान करने पर लौह तत्व का ओवरलोड कम होता है, 650 कैलोरी खर्च होते हैं और सबसे बड़ी बात मुफ्त में मिनी हेल्थ चेकअप हो जाता है। सबसे बड़ा लाभ यह होता है कि सामाजिक जिम्मेदारी निभाने का आत्मसंतोष होता है।
उन्होंने कहा कि समकामी पुरुष, सेक्स वर्कर्स, बहुगामी एवं ड्रग्स लेने वालों को रक्तदान नहीं करना चाहिए। तबीयत ठीक नहीं लगने पर, शराब पिया होने पर, माहवारी या गर्भावस्था के दौरान, स्तन पान कराने वाली माताओं को भी रक्तदान नहीं करना चाहिए। ऐसे व्यक्ति जिनकी हाल ही में सर्जरी हुई है या रक्त चढ़ा है, उन्हें भी रक्तदान नहीं करना चाहिए।
ऑटोलोगस ब्लड के बारे में उन्होंने बताया कि प्लान्ड सर्जरी के मामले में व्यक्ति स्वयं अपने लिये भी रक्तदान कर सकता है। दो या तीन यूनिट रक्तदान कर वह उसे स्टोर करवा सकता है जिसका उपयोग उसकी सर्जरी के समय किया जा सकता है।
प्रतिभागियों के सवालो का जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि कोविड वैक्सीन के डोज लेने के 28 दिन बाद रक्तदान किया जा सकता है। ऐसे माइल्ड सिकल सेल मरीज भी रक्तदान कर सकते हैं जिनका एचबी काउन्ट 12.5 से अधिक हो। एक अन्य सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि रेयर ब्लड ग्रुप के लोग स्वैच्छिक रक्तदान न करें। क्योंकि अगर 35 दिन में इस रक्त का उपयोग नहीं हो पाया तो यह बेकार चला जाता है। ऐसे लोग ब्लड बैंक के सम्पर्क में रहें तथा आवश्यकता पड़ने पर ही रक्तदान करें। बाम्बे ब्लड ग्रुप संबंधित एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह बहुत रेयर ग्रुप है जो लाखों किसी एक का होता है। ऐसे लोगों के लिए रक्त का इंतजाम करना थोड़ा कठिन होता है।
आरंभ में हेमचंद विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण ने डॉ नेरल का परिचय देते हुए कहा कि उनका पूरा परिवार प्रत्येक विशेष अवसर पर रक्तदान करता है। सिकल सेल, एचआईवी तथा स्वैच्छिक रक्तदान के क्षेत्र में उनके कार्य को देशभर में सराहा जा चुका है। डॉ नेरल पिछले 20 वर्षों से आश्रय के नाम से एक वृद्धाश्रम का भी संचालन करते हैं।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए विश्वविद्यालय की कुलपित डॉ अरुणा पल्टा ने कहा कि दूसरों को प्रेरित करने के लिए डॉ नेरल ने स्वयं जो काम किया है और कर रहे हैं, वह प्रेरणा का एक जीवंत स्रोत है। उन्होंने रक्तदान एवं वृद्धजनों की सेवा को अपनी सामाजिक जिम्मेदारी माना। आशा करते हैं कि विश्वविद्यालय परिवार के युवा साथी एवं छात्र समुदाय उनसे प्रेरणा लेकर रक्तदान के लिए आगे आएंगे ताकि भविष्य मे रक्त के अभाव में किसीकी मृत्यु न हो।

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