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वैश्विक स्वास्थ्य संरक्षण में भारतीय ज्ञान की प्रासंगिकता पर व्याख्यान

Jun 14, 2021
Science College Phule Jayanti

दुर्ग। वैश्विक स्वास्थ्य संरक्षण में भारतीय ज्ञान की प्रासंगिकता विषय पर आयोजित एक दिवसीय राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन साइंस कॉलेज दुर्ग के संस्कृत विभाग एवं आइक्यूएसी की ओर से किया गया जिसमें विभिन्न प्रांतों के शिक्षक एवं छात्रों ने भाग लिया। कार्यक्रम का शुभारंभ वेद मंत्रों के उच्चारण से प्रारंभ किया गया जिसमें नई दिल्ली के गुरु विरजानंद संस्कृत कुलम के ब्रह्मचारिओं द्वारा वेद मंत्रों का उच्चारण स्वस्तिवाचन के रूप में किया गया। कार्यक्रम का शुभारंभ महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ आर एन सिंह की प्रेरणा एवं मार्गदर्शन में किया गया, जिसमें हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ अभिनेष सुराना ने प्राचार्य महोदय का संदेश पढ़ते हुए अपने उद्बोधन में कहा की आज का समय भारतीय ज्ञान परंपरा के लिए सबसे उपयुक्त एवं प्रासंगिक है। आज योग आयुर्वेद प्राणायाम का महत्व संपूर्ण विश्व स्वीकार रहा है।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉक्टर नौनिहाल गौतम ने विश्व स्वास्थ्य जागरूकता में भारतीय वांग्मय की भूमिका पर अपनी बात रखी। भारतीय वैदिक वांग्मय से प्रारंभ कर श्रीमद्भागवत गीता के विभिन्न उदाहरणों के माध्यम से यह बताया कि स्वास्थ्य संरक्षण हेतु हमारे शास्त्रों में हर प्रकार के उपाय बताए गए हैं। उन्होंने रोगों के निदान के लिए विभिन्न उपाय बताएं एवं चरक संहिता सुश्रुत संहिता व हठयोग प्रदीपिका के अष्टांग योग पर विस्तृत चर्चा की तथा भारतीय नैतिक परंपरा पर भी जोर डालते हुए यह बताया हमें मानसिक रूप से शुद्ध आचरण करने चाहिए जिस से रोग हो ही नहीं। आधुनिक चिकित्सा पद्धति बीमार होने पर फिर चिकित्सा पर जोर देती है जबकि भारतीय योग एवं आयुर्वेद की चिकित्सा पद्धति हम बीमार ही ना हो इस पर केंद्रित है इसके लिए अपनी दिनचर्या तथा अपने विचार पवित्र रखने पर उन्होंने जोर दिया दिया इसी प्रकार द्वितीय वक्ता के रूप में आमंत्रित डॉ बी एस पटेल ने शास्त्रो के प्रमाण देते हुए बहुत से उदाहरण दिए तथा स्वास्थ्य संरक्षण का आधार आहार, निद्रा और ब्रह्मचर्य पालन को बताया। इसी प्रकार उन्होंने गीता के श्लोक का पाठ करते हुए बताया कि उचित आहार ,युक्त विहार और उपयुक्त चेष्टा और उपयुक्त कर्म से ही व्यक्ति स्वस्थ रहकर कार्य में सफल हो सकता है। आचार्य धनंजय शास्त्री ने अपने उद्बोधन में कहा की वैदिक वांग्मय में संपूर्ण समस्याओं का समाधान है। आज कोविड-19 से जो पूरा विश्व जूझ रहा है, उसके केंद्र में भौतिकवादी अतिवादी सोच है जो केवल अपने भोग के विषय में सोचता है ना प्रकृति की चिंता करता है और ना ही पर्यावरण की। आदरणीय आचार्य धनंजय शास्त्री ने अपने धाराप्रवाह संस्कृत में वैदिक शास्त्र धर्म ग्रंथों से प्रमाण एवं उदाहरण दिए। विद्वानों के व्याख्यान के बाद प्रश्नोत्तरी सूत्र रखा गया जिसमें शोधार्थी श्री निलेश कुमार तिवारी ने भारतीय ज्ञान परंपरा पर बहुत से प्रश्न किए जिनका विद्वानों ने संतुष्टि प्रदान करने वाला उत्तर दिया। कार्यक्रम का संचालन संस्कृत विभाग अध्यक्ष प्रोफेसर जैनेंद्र कुमार दीवान ने किया।
कार्यक्रम के आयोजन में महाविद्यालय के सभी विभाग के प्राध्यापकों, आइक्यूएसी संयोजक डॉक्टर जगजीत कौर सलूजा, वरिष्ठ प्राध्यापक एम.ए. सिद्दीकी, डॉ. राजेंद्र चौबे, डॉ. सपना शर्मा सहित सभी विभागाध्यक्षों ने सहयोग किया। कार्यक्रम के सफल आयोजन में सहसंयोजक डॉ सतीश कुमार सेन, प्रोफेसर दिलीप कुमार साहू एवं अमित कुमार मिश्रा का महत्वपूर्ण योगदान रहा।

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