भिलाई। नेवई थाना क्षेत्र के लक्ष्मी ग्रीन सिटी फेस 2 में एक छात्र ने इमारत की छत से कूदकर अपनी जान दे दी। वह श्री शंकरा विद्यालय, सेक्टर-10 में 12वीं कक्षा का छात्र था। छात्र ने अपनी मानसिक स्थिति का जिक्र सुसाइड नोट में किया है। छात्र की कुछ दिन पहले स्कूल में काउंसलिंग भी की गई थी। घटना के दिन भी वह स्कूल नहीं गया था। शाम को वह बैग लेकर निकला तो ट्यूशन के लिए था पर छत पर जाकर उसने वहां से छलांग लगा दी।
लोकेश्वर सिंह ठाकुर पिछले कुछ दिनों से गुमसुम था। क्लास टीचर विद्या सतीश उसे वाइस प्रिंसिपल के पास भी लेकर गई थी। छात्र ने अपनी समस्या को साझा किया था। उसने बताया था कि काफी कोशिश करने के बाद भी वह अच्छा नहीं कर पा रहा है। पिछला टेस्ट भी उसने अच्छा नहीं किया है और इस बात का भी तनाव है। काउंसलिंग के बाद भी उसे कोई तसल्ली नहीं मिली थी। बजाय उसे किसी पेशेवर काउंसलर के पास भेजने के उसे उसके हाल पर छोड़ दिया गया। उसने घर वालों को भी बताया कि उसका स्कूल जाने या पढ़ने का मन नहीं कर रहा। उससे नहीं हो पा रहा। पर किसी ने उसकी बातों पर ध्यान नहीं दिया।
लोकेश्वर को अपनी हालत का पूरा-पूरा अंदाजा था। उसने इन बातों का जिक्र सुसाइड नोट में भी किया है। जिस समय उसने आत्महत्या की मां अपने फ्लैट में छोटी बहन के साथ थी और पिता बालोद से लौट रहे थे। वे बालोद में पटवारी हैं।
क्या लिखा है सुसाइड नोट में
“मुझे स्कूल और पढ़ाई बिल्कुल पसंद नहींं जीवन में और भी तरीके हैं सीखने के। मुझे अंदर ही अंदर कुछ खाए जा रहा है, लगता है भूत है। लोगों को लगता हैं मैं खुद से बात करता हूं। मैं भगवान में विश्वास नहीं करता। मुझे नहीं पता मैं क्यो लिख रहा हूं। अंग्रेजी के कई शब्दों का मैं सही उच्चारण नहीं कर पाता, बहुत प्रयास किया। अब भी कर रहा हूं। साल 2022 मेरे लिए शुरू से ही अच्छा नहीं था। मैं कोई जीनियस या एक्सट्रा ऑर्डनरी नहीं हूं। फीलिंग एक्सप्रेस नहीं कर पाता। मैं दोहरी जिंदगी नहीं जी सकता। मैं थक गया हूं। बस अब मैं सोना चाहता हूं। मेरे मोबाइल का परसवार्ड, लैपटॉप का पासवर्ड ये है।”
दरअसल 11वीं-12वीं के वो विद्यार्थी जो मेडिकल और इंजीनियरिंग की तैयारी कर रहे हैं, असामान्य दबाव से गुजर रहे हैं। स्कूल और कोचिंग मिलाकर दिन के 12 से 14 घंटे वो क्लास में होते हैं। इसके बाद घर पर पढ़ाई और होमवर्क पूरा करने में 2 से 3 घंटे और लग जाते हैं। अधिकांश पेरेन्ट्स इस स्ट्रेस को समझ नहीं पाते। स्कूलों में भी प्रशिक्षित काउंसलर नहीं रखे जाते। लोग अपने अपने हिसाब से काउंसलिंग करते हैं जिनका मनोविज्ञान से दूर-दूर तक कोई नाता नहीं होता। ऊपर से मोटिवेटर रोज लेक्चर झाड़ जाते हैं कि यदि कोई और कर सकता है तो आप भी कर सकते हो। घर वाले भी तमाम रिश्तेदारों और जान पहचान वालों के होनहार बच्चों का उदाहरण देकर प्रेशर बनाते हैं। दिन रात पीसीएम, पीसीबी करते करते एक समय बच्चे का मस्तिष्क शून्य हो जाता है। यद्यपि यह स्थिति खतरनाक है पर इससे बचा जा सकता है। सही समय पर स्ट्रेस की पहचान कर उसे दूर करने के प्रयास किये जा सकते हैं। प्रफेशनल काउंसलर्स की मदद ली जा सकती है। इसे स्टूडेन्ट्स बर्नआउट सिंड्रोम भी कहते हैं। बच्चा अच्छा करना चाहता है, अत्यधिक मेहनत करता है, मस्तिष्क साथ नहीं देता और परफारमेंस गिरता चला जाता है। इसके बाद आता है फ्रस्ट्रेशन और फिर बच्चा विद्रोह कर देता है। यही आत्महत्या का कारण भी बनता है। इसे समझने की जरूरत है।
Diplay pic courtesy : The Hint Today