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विश्व आदिवासी दिवस पर एमजे कॉलेज में हुआ विमर्श

Aug 9, 2022
Talk on Adiwasi Diwas in MJ College

भिलाई। विश्व आदिवासी दिवस पर आज एमजे कॉलेज में विमर्श का आयोजन किया गया। इसमें शिक्षकों के साथ ही आदिवासी छात्राओं ने भी भाग लिया। छात्राओं ने कहा कि यह आजादी के बाद से सरकारों के विशेष प्रयासों का ही नतीजा है कि आज आदिवासी छात्राएं बड़ी संख्या में उच्च शिक्षा हासिल कर रही हैं। देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर भी एक आदिवासी महिला का आरूढ़ होना संभव हो पाया है। देश की संसद में बड़ी संख्या में आदिवासी हैं। यहां तक कि छत्तीसगढ़ की विधानसभा में भी एक तिहाई विधायक आदिवासी हैं।
महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर के निर्देश और प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे के मार्गदर्शन में आयोजित इस विमर्श को संबोधित करते हुए कम्प्यूटर साइंस विभाग की प्रभारी पीएम अवंतिका ने कहा कि विकास की दौड़ में मनुष्य ने प्रकृति को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया है। इससे आदिवासियों की स्वाभाविक दिनचर्या भी बाधित हुई है। जंगलों के नष्ट होने से पशु-मानव संघर्ष बढ़ा है। जहां से वे आती हैं वहां हर साल जंगलों से निकलकर हाथी गांवों में आ जाते हैं और जान-माल को हानि पहुंचाते हैं।
गणित विभाग की प्रभारी रजनी कुमारी ने नष्ट होते जंगलों पर चिंता व्यक्त करते हुए आदिवासियों को मुख्य धारा में लाने के लिए किए जा रहे प्रयासों को तेज करने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि आज भी बहुसंख्य आदिवासी जंगलों पर ही आश्रित हैं।
बायोटेक विभाग की प्रभारी सलोनी बासु ने कहा कि समाज ने आदिवासियों को उनके हाल पर छोड़ दिया है। ऐसा लगता है जैसे जल-जंगल-जमीन की सुरक्षा करना अकेले उनकी जिम्मेदारी है। यह उचित नहीं है। सांस हम भी लेते हैं और विभिन्न वनोपजों पर हमारा भी जीवन निर्भर है।
गणित विभाग की कृतिका गीते ने कहा कि कोयला और खनिज के अंधाधुंध दोहन के कारण पारिस्थितिकी गड़बड़ा रही है। इस क्षेत्र में युक्तियुक्त करण की आवश्यकता है। हमें खनिज का निर्यात करने के बजाय “मेक इन इंडिया” कार्यक्रम को गति देकर वैल्यू एडिशन करना चाहिए।
वाणिज्य एवं प्रबंधन संकाय के दीपक रंजन दास ने कहा कि आज अकेले छत्तीसगढ़ में तीन मोर्चों पर आदिवासी डटे हुए हैं। हसदेव अरण्य कोयला क्षेत्र में जहां वे जैव विविधता वाले सैकड़ों हेक्टेयर जंगलों को बचाने के लिए जूझ रहे हैं वहीं सिलगेर में आदिवासी खदानों तक पहुंचने वाली सड़क को रोके बैठे हैं। जामड़ी पाट में वे आदिवासी परम्पराओं और आस्था पर चोट का विरोध कर रहे हैं। प्रदेश की बहुसंख्यक आबादी बेफिक्र है। हमें पर्यावरण और आदिवासी जीवन के प्रति और गंभीरता लानी होगी।

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