दंतेवाड़ा. आदिवासी वैसे तो बेहद सादा जीवन जीते हैं पर इनकी आस्था और परम्पराएं कौतूहल जगाती हैं. एक ऐसी ही परम्परा है महुआ से महुआ की शादी की. बस्तर के आदिवासियों का मानना है कि महुआ के पेड़ों का विवाह होगा तभी तो अच्छी फसल आएगी. वनोपज आदिवासियों की जीवनरेखा है जिसमें महुआ, सल्फी आदि का प्रमुख स्थान है. जिसके घर में महुआ और सल्फी का एक-दो पेड़ हो, उसे वनग्रामों में सम्पन्न माना जाता है.
दंतेवाड़ा जिले के बारसूर में देवगुड़ी स्थल के पास ग्रामीणों ने महुआ पेड़ की शादी का आयोजन किया. सिरहा, गुनिया, बैगा समेत ग्राम प्रमुखों के साथ ग्रामीण बड़ी संख्या में इकट्ठा हुए. महुआ पेड़ की शाख और तने पर हल्दी तेल का लेप किया गया. पेड़ों की परिक्रमा की गई. गाजे-बाजे के साथ बारात निकाली गई और फिर धूमधाम से विवाह की रस्म अदा की गई. भोज का भी आयोजन हुआ. इसके बाद माता दंतेश्वरी के दर्शन कर अच्छी फसल की कामना की गई.
दरअसल, बस्तर के ग्रामीण यहां के वनोपज पर ही निर्भर हैं. महुआ, टोरा, आम, इमली, समेत कई वनोपज उनकी आय का प्रमुख साधन है. इनमें महुआ का सबसे ज्यादा महत्व है. शादी समारोह से लेकर शोक कार्यक्रमों में भी महुआ से बनी शारब का उपयोग करते हैं. महुआ का फूल बेचकर अच्छी आमदनी भी करते हैं. अब छत्तीसगढ़ सरकार ग्रामीणों से महुआ फूल खरीदकर उससे कुकीज समेत अन्य खाद्य सामग्री भी बना रही है.
ये भी हैं परम्पराएं
दंतेवाड़ा जिले में अच्छी बारिश के लिए इंद्रदेव को मनाने उदेला की पहाड़ी पर स्थित भीमसेन पत्थर को हिलाया जाता है. भीमसेन के पत्थर को हिलाने के लिए लगभग 100 गांव के पुजारी और ग्रामीण पहुंचते हैं. छत्तीसगढ़ के अनेक अंचलों में अच्छी बारिश के लिए मेंढक-मेंढकी की शादी कराई जाती है.