हिन्दी फिल्म ‘दलाल’ का एक गीत काफी मशहूर हुआ था. इसमें अटरिया पर “लोटन” कबूतरों की जिक्र किया गया था. फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ का गीत ‘कबूतर जा जा जा..’, फिल्म ‘दिल्ली-6’ का गीत ‘मसकली मसकली’ भी काफी मशहूर हुआ. कबूतरों को हिन्दी फिल्मों ने काफी शोहरत दी है. पर क्या आप जानते हैं कि कबूतरों की एक से बढ़कर एक प्रजातियां होती हैं और सभी की अपनी-अपनी विशेषताएं भी होती हैं. बिहार के सीतामढ़ी में कबूतर की इतनी प्रजातियां पाई जाती हैं, जिनकी खासियत जानकर कोई भी दंग रह जाएगा. कबूतर की ये दुर्लभ प्रजातियां कभी नवाबों के महलों की शान बढ़ाया करती थीं. लखनऊ और हैदराबाद के नवाब यहां से कबूतर मंगवाते थे. सीतामढ़ी के पसौनी प्रखंड के धीरज कुमार रंग-बिरंगे विदेशी कबूतर पालते हैं जिन्हें बेचकर उन्हें लाखों की आमदनी होती है. विदेशों में भी इनकी अच्छी खासी मांग है. धीरज के पास मसकली, लक्का, गल्ला फुला, लोटन, सूर्यमुखी, जागविन और इटालियन सहित वर्तमान में करीब चालीस प्रजाति के कबूतर उपलब्ध है. इन कबूतरों की कीमत 35 सौ रुपये से लेकर 9 हजार रुपये तक है. धीरज कुमार का परिवार चार पीढ़ियों से कबूतरों का व्यवसाय कर रहा है.
लक्का कबूतर के 52 पंख होते हैं. इसके पंख काफी सुंदर होते हैं. मान्यता है कि लक्का कबूतर के पंखों की हवा से लकवा ग्रसित व्यक्ति को फायदा होता है. वहीं लोटन कबूतर डांसिंग कबूतर होता है. गल्ला फुला कबूतर की विशेषता है की उसमें एयर ब्लैडर होता है. वह अपने शरीर में हवा भर कर अपने शरीर को फुटबॉल की तरह फुला लेता है. सूर्यमुखी, जागबिन और इटालियन कबूतर शो प्लांट कबूतर है, जिसमें सूर्यमुखी कबूतर के माथे पर उजाला रंग के सूर्य की तरह आकार होता है. वहीं इटालियन कबूतर राजा महाराजाओं से लेकर प्रेमियों की चिट्ठियां पहुंचाने का काम करता था.