ज्योतिष पीठ के प्रमुख शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा गौ-संरक्षण को लेकर किए जा रहे काम की सराहना की है. पर उन्हें इस बात का भी दुःख है कि जब उन्होंने इस अनुकरणीय पहल की जानकारी अन्य राज्यों में गौभक्तों को दी तो उन्होंने कहा कि इसे दोहराएंगे तो यह छत्तीसगढ़ की नकल कहलाएगी. कितने महान हैं वो लोग, जो अच्छा काम केवल इसलिए नहीं करना चाहते कि उसे नकल समझा जा सकता है. यह सभी जानते हैं कि दो चार लोगों को पकड़ कर पीटने, जान से मार देने या ट्रक जला देने से गौहत्या पर अंकुश नहीं लगाया जा सकता. गौवंश की सुरक्षा करनी है तो उसे इंसानों के लिए फायदेमंद बनाए रखना जरूरी है. वरना यहां तो लोग अपने ही बूढ़े अनुत्पादक माता-पिता को बोझ मानने लगते हैं. पर गाय-गोरू गोधन से शहरियों का क्या लेना देना? इसे लेकर सोशल मीडिया पर कौन पोस्ट डालेगा भला? इसलिए गाय की सेवा का मामला ठंडे बस्ते में ही ठीक है. इससे तो अच्छा है कि कुछ लोगों को पकड़ कर पीटो, खुद ही उसका वीडियो बनाओ और सोशल मीडिया पर छा जाओ. मीडिया में छा जाने की इस प्रवृत्ति से कोई भी नहीं बचा है. संभवतः इसीलिए शंकराचार्य ने एक बार फिर साईं बाबा पर टिप्पणी कर दी. उन्होंने दोहराया कि साईं बाबा न तो भगवान हैं और न ही संत. वो गुरू नहीं हो सकते. यह फैसला कवर्धा में आयोजित धर्म संसद में हुआ था जिसपर बाद में प्रयागराज की धर्मसंसद में मुहर लगाई गई थी. वैसे इस टिप्पणी की कोई जरूरत नहीं थी. हालांकि, शंकराचार्य ने यह भी स्वीकार किया है कि कुछ लोग अगर साईं बाबा को भगवान या गुरू मानते हैं तो यह उनकी व्यक्तिगत श्रद्धा का मामला है. काश! कवर्धा जैसी कोई धर्म संसद इस दिशा में भी मंथन करती कि धर्म किस तरह समाज के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकता है. क्या विशाल हिन्दू समाज भी ईसाइयों की तरह गरीबों और वंचितों की सेवा करने को तैयार है? शंकराचार्य भूल रहे हैं कि दूसरों की लकीर छोटी करके अपनी लकीर बड़ी नहीं की जा सकती. लकीर अपनी बड़ी करनी चाहिए. जो स्वयं परिवारों से कटे हुए हों, उन्हें क्या पता कि एक परिवार को चलाने के लिए लोगों को कैसे-कैसे हालातों से गुजरना पड़ता है. जरूरतें हैं तो मुसीबतें भी हैं. इनमें से प्रत्येक समस्या का हल लोगों के पास नहीं होता. तब जिसकी जिसमें आस्था वह वहां पहुंच ही जाता है. साईं बाबा के खिलाफ टिप्पणी करना, देश के हिन्दू नेताओं का खास शगल हो गया है. आखिर वो चाहते क्या हैं? अगर साईं बाबा को मानने वालों ने भी हिन्दुत्व या सनातन की खिलाफत शुरू कर दी तो क्या होगा? उन्हें उन परिवारों से भी सबक लेना चाहिए, जहां माता-पिता अपने बच्चों के प्रेम को स्वीकार नहीं कर पाते, ताना मारते हैं, सख्ती करते हैं. ऐसे घरों में अंततः रोना-पीटना मच ही जाता है.