शराब को लेकर देश की संवेदनशीलता कुछ अजीब सी है. शराब बड़ी पार्टियों की शान है. वहां महंगी से महंगी विदेशी शराब परोसी जाती है. नेता, अभिनेता, बिजनेसमैन, डाक्टर, इंजीनियर, प्रोफेसर भी शराब पीते हैं. जिसकी जितनी कमाई, उसकी उतनी महंगी दारू. यह इनकम टैक्स जैसा है जिसमें लोग अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार सरकार के खजाने में अंशदान करते हैं. शराब बंदी की बात करते समय अकसर हम यही कहते हैं कि शराब परिवारों को बर्बाद कर रही है. इससे घरेलू हिंसा को बढ़ावा मिलता है, शारीरिक-मानसिक सेहत बिगड़ती है. पर ऐसा बहुत कम परिवारों में होता है. छत्तीसगढ़ में सरकार को शराब बंदी को लेकर घेरने की कोशिश काफी समय से की जा रही है. कांग्रेस ने चुनावी घोषणा पत्र में शराब बंदी की घोषणा की थी. पहली बात तो यह कि चुनावी घोषणा पत्र पार्टी जारी करती है न कि सरकार. पार्टी माहौल बनाने के लिए कुछ भी कह सकती है. पर वह सरकार नहीं है. सरकार याने राज्य का पिता जिसपर घर चलाने की जिम्मेदारी होती है. पिता को यहां कमाऊ अभिभावक मानना चाहिए. यह पुरुष भी हो सकता है और महिला भी. चुनाव के दौरान पार्टियां कुछ भी कह सकती हैं पर यह सरकार पर बाध्यकारी नहीं हो सकता. देश को हिन्दू राष्ट्र घोषित करने की बातें भी पार्टी करती है जो सरकार पर बाध्यकारी नहीं है. सरकार में सत्ता और विपक्ष दोनों शामिल होते हैं. दोनों ही दलों के विधायक होते हैं. इन सबकी अपनी-अपनी भूमिका भी होती है जिसका निर्धारण संविधान करता है. कुछ ऐसा ही बवाल देश में वेज और नॉन-वेज को लेकर भी है. एक बार शराब बंदी हो जाए तो नॉन-वेज बंदी को लेकर भी आंदोलन शुरू हो सकते हैं. पर ऐसा कोई भी सरकार नहीं कर सकती. तब-तक नहीं कर सकती जब-तक देश के संविधान को बदल नहीं दिया जाता. शारीरिक-मानसिक-आर्थिक स्थिति पर असर डालने वाले और भी कारक दुनिया में हैं. क्या उन सभी के खिलाफ आंदोलन खड़े किये जा सकते हैं? भीड़तंत्र को चलाने के लिए पार्टी स्तर पर तो किये ही जा सकते हैं. कल को जींस और टॉप को लेकर भी कहा जा सकता है कि इससे संस्कृति नष्ट हो रही है. कुछ राज्यों में इसे लेकर बवाल हो भी चुका है. जींस-टॉप पर भी वोटों का ध्रुवीकरण हुआ है. पूछा जा सकता है कि छत्तीसगढ़ में विपक्ष का पूरा फोकस शराब पर क्यों है. विपक्ष परोक्ष रूप से यह स्वीकार कर रही है कि उनके पास इसके अलावा कोई मुद्दा ही नहीं है. भ्रष्टाचार का मामला केन्द्र सरकार स्वयं देख रही है. अब तो नक्सलवाद को भी केन्द्र ने अपना मुद्दा बना लिया है. केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने नक्सल समस्या के सफाए की एक तरह से घोषणा कर ही दी है. फिर प्रदेश में पार्टी करे तो क्या करे – शराब बंदी और प्रवचन पंडालों के अलावा उसके पास करने को बचा ही क्या है?