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किशोरावस्था का ध्यान रखा तो स्वस्थ होगा इंडिया – डॉ सावंत

Mar 9, 2024
Focus on adolescent health for a fit India - Dr AP Sawant

भिलाई। अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के उपलक्ष्य में एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग में महिला स्वास्थ्य पर सेमीनार का आयोजन किया गया. मुख्य वक्ता स्पर्श मल्टीस्पेशालिटी हॉस्पिटल के मेडिकल डायरेक्टर डॉ एपी सावंत ने इस अवसर पर कहा कि यदि हमने किशोरावस्था को संभाल लिया तो देश स्वस्थ और मजबूत होगा. उन्होंने इसलिए कुछ सूत्र भी दिये जिसमें स्क्रीन टाइम को कम करना एवं खानपान को संतुलित रखने के साथ ही शारीरिक रूप से सक्रिय रहने की बात कही.


डॉ सावंत ने कहा कि किशोरियों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर ज्यादा ध्यान दिये जाने की जरूरत है. स्वस्थ किशोरियां ही आगे चलकर स्वस्थ युवतियां और स्वस्थ माताएं बनेंगी. यदि माताएं स्वस्थ हुईं तो उसके आगे आने वाली पीढ़ियां भी स्वस्थ होंगी. उन्होंने छात्राओं को जंक फूड से दूर रहने की सलाह देते हुए कहा कि भोजन अपनी जरूरत के हिसाब से करना चाहिए जिसमें प्रोटीन, वसा और कार्बोहाइड्रेट का सही संतुलन होना चाहिए. उन्होंने छात्राओं को स्क्रीन टाइम कम करने की सलाह देते हुए 20-20 का फार्मूला दिया. उन्होंने कहा कि स्मार्टफोन, टैबलेट, आईपैड, लैपटॉप पर काम करते हुए प्रत्येक 20 मिनट में 20 सेकण्ड का पॉज लेना चाहिए. पॉज के दौरान अपने से कम से कम 20 मीटर की दूरी पर स्थित वस्तुओं को देखना चाहिए. इससे आंखें, कंधे और गर्दन तनाव ग्रस्त होने से बच जाएंगे.
सेमीनार की दूसरी वक्ता स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ मोनीदीपा साहा ने बताया कि मोबाइल और लैपटॉप स्क्रीन से निकलने वाली रोशनी का भी चेहरे की त्वचा पर वही प्रभाव होता है जो बिना सनस्क्रीन के धूप में निकलने पर होता है. इसलिए भी स्क्रीन टाइम कम करना चाहिए. उन्होंने कहा कि जंक फूड और सेडेन्टरी लाइफ स्टाइल के कारण आज किशोरवय की दस फीसदी लड़कियां पीसीओडी का शिकार हो रही हैं. पहले जहां 12-13 साल की उम्र में लड़कियां रजस्वला होती थीं वहीं अब 9-10 साल की उम्र में ही माहवारी प्रारंभ हो रही है. इसके बारे में छात्राओं, पालकों एवं टीचर्स को भी खुल कर बातें करनी चाहिए ताकि इसे लेकर हिचकिचाहट कम हो. उन्होंने नर्सिंग एवं फार्मेसी की छात्राओं को हैण्ड हाईजीन का विशेष ध्यान रखने को कहा.
डॉ मोनीदीपा साहा ने बताया कि लड़का और लड़की में भेदभाव अब खत्म होनी चाहिए. आज भी द्वितीय संतान के प्रसव के दौरान महिलाएं तनाव में रहती हैं कि न जाने लड़का होगा या लड़की. इसलिए उनका रक्तचाप बढ़ा रहता है. कई बार तो स्थिति इतनी गंभीर होती है कि कन्या के जन्म की खबर माता को तत्काल देने से बचा जाता है कि कहीं उसकी तबियत ज्यादा न बिगड़ जाए. हमें उस सोच के खिलाफ काम करना होगा जिसमें लड़के का जन्म परिवार में अनिवार्य माना जाता है.
आरंभ में एमजे समूह की डायरेक्टर डॉ श्रीलेखा विरुलकर, एमजे कालेज के प्राचार्य डॉ अनिल कुमार चौबे, एमजे कालेज ऑफ नर्सिंग के प्राचार्य प्रो. डैनियल तमिल सेलवन, उप प्राचार्य डॉ सिजी थॉमस ने अतिथियों का पॉटेड प्लांट देकर स्वागत किया. सहायक प्राध्यापक दीपक रंजन दास ने अतिथियों का परिचय दिया. धन्यवाद ज्ञापन नर्सिंग की सहायक प्राध्यापक ममता सिन्हा ने किया. कार्यक्रम का संचालन व्याख्याता मुक्ता रक्षित ने किया.

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