भिलाई। हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल में एक 61 वर्षीय मरीज की रीनल एंजियोप्लास्टी की गई। दरअसल, उनका बीपी कभी भी एकाएक बढ़ जाता था जो किसी भी दवा से नियंत्रण में नहीं आता था। हाइटेक पहुंचने पर उनका सीटी एओर्टोग्राम कराया गया। दरअसल नसों के सिकुड़ने के कारण उनके गुर्दों में रक्त नहीं जा रहा था। रीनल एंजियोप्लास्टी करने के तुरंत बाद उनका बीपी स्वयमेव नियंत्रित हो गया।हाइटेक के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट डॉ आकाश बख्शी ने बताया कि मरीज को उच्च रक्तचाप, अवसाद एवं बेचैनी की शिकायत थी। एकाएक बीपी काफी बढ़ जाने पर उन्होंने कई चिकित्सकों को दिखाया। किसी ने बेचैनी (एंक्जाइटी) की दवा दी तो किसी ने बीपी कम करने की दवा दी। पर कोई स्थायी समाधान नहीं निकला।
डॉ बख्शी ने बताया कि बीपी का पैटर्न बता रहा था कि यह कहीं न कहीं ब्लाकेज से जुड़ा है। दरअसल किडनी दो बड़े काम करती है। पहला तो वह रक्त से विषैले तत्वों को अलग कर उसका शोधन करती है। दूसरे वह रक्त के परिमाण को नियंत्रित करती है। रक्तप्रवाह में कमी होने पर वह रेनिन नाम के हारमोन पैदा करती है जो रक्तचाप को बढ़ा देती है। स्थित संभलते ही ऐसा रक्तचाप स्वतः कम हो जाता है। पर ऐसी स्थिति कभी भी स्वयं को दोहरा सकती है।
संदेह होने पर मरीज का सीटी एओर्टोग्राम करवाया गया तो उनके गुर्दों को रक्त पहुंचाने वाली धमनी में 90 फीसद अवरोध पाया गया। जब भी अवरोध इससे अधिक होता किडनी रोगी का बीपी बढ़ा देती। इस अवरोध को हटाना जरूरी था। यह प्रक्रिया बिल्कुल वैसी ही है जिससे हृदय की धमनियों के ब्लाकेज हटाए जाते हैं। हमने मरीज को पूरी स्थिति से अवगत कराते हुए उनकी रीनल एंजियोप्लास्टी कर दी। इसके साथ ही बीपी कंट्रोल करने के लिए चल रही सभी दवाइयां बंद कर दी गईं। इसके तुरन्त बाद उनका बीपी 160/100 से उतर कर 130/90 हो गया। प्रोसीजर को 15 दिन से अधिक हो चुके हैं और अब तक मरीज को एक बार भी बीपी बढ़ने की शिकायत नहीं हुई है।
डॉ बख्शी ने बताया कि जांच और इलाज की सभी सुविधाएं एक छत के नीचे होने के कारण मरीज की सही स्थिति पकड़ने में मदद मिली और उसका तत्काल इलाज भी संभव हो पाया। केवल पांच दिन अस्पताल में रखने के बाद उनकी छुट्टी कर दी गई। अब वे पूरी तरह स्वस्थ हैं।