भिलाई। देवसंस्कृति कॉलेज ऑफ एजुकेशन एंड टेक्नोलॉजी के विद्यार्थियों ने द्वापर युग में स्थापित बानबरद विष्णु मंदिर एवं पापमोचन कुण्ड का भ्रमण किया। इस मंदिर का जीर्णोद्धार 16वीं-17वीं शताब्दी में हुआ। उत्खनन में यहां से प्राचीन सिक्के मिले हैं। पुजारी की पत्नी श्रीमती जनकदुलारी ने विद्यार्थियों को इस मंदिर से जुड़ी किंवदंती के बारे में बताया। इस भ्रमण का उद्देश्य अपने आसपास की सांस्कृतिक एवं धार्मिक विरासत से परिचित होना था।
महाविद्यालय की निदेशक ज्योति शर्मा के निर्देश एवं प्राचार्य डॉ कुबेर सिंह गुरुपंच में यह कार्यक्रम आयोजित हुआ। वाणिज्य एवं शिक्षा संकाय के विद्यार्थियों के इस भ्रमण दल ने इस प्राचीन मंदिर तथा इसके आसपास बने अन्य मंदिरों का दर्शन किया। इन मंदिरों से सटा हुआ है पाप मोचन कुण्ड। मान्यता है कि इसमें स्नान कर श्रीविष्णु की पूजा करने से जाने-अनजाने हुई गौहत्या के पाप से मुक्ति मिल जाती है। कुण्ड को सीढ़ीदार बावड़ी के रूप में सुरक्षित किया गया है। सीमेन्ट से बनी इन सीढ़ियों से नीचे पानी तक पहुंचा जा सकती है। कुण्ड के बीच में एक स्तंभ है जिसपर गाय-बछड़े की प्रतिमा लगी है।
श्रीमती जनकदुलारी ने बताया कि द्वापर युग में श्रीकृष्ण एवं असुर बाणासुर के बीच भीषण युद्ध हुआ था। क्रोध में बाणासुर ने बड़ी संख्या में गौमाता का वध किया था। जब उन्हें अपने पाप का बोध हुआ तो उन्होंने श्रीकृष्ण से मुक्ति का मार्ग पूछा। श्रीकृष्ण ने इस कुण्ड के बारे में बताया और कहा कि यहां श्रीविष्णु की एक अष्टभुजा प्रतिमा मिलेगी। श्रीकृष्ण ने ही प्रतिमा की स्थापना करने, कुण्ड में स्नान करने और फिर पूजा पाठ करने का विधान बताया। बाणासुर ने ऐसा ही किया और गौहत्या के पाप से मुक्त होकर बैकुण्ठ चले गए।
शिक्षक प्रभारी वाणिज्य संकाय की सहायक प्राध्यापक आफरीन एवं टूर गाइड दीपक रंजन दास के मार्गदर्शन में विद्यार्थी दीपिका मंडावी, स्वाति शुक्ला, खुशबू साहू, ज्योति साहू, दीक्षा यादव, इस्मिता पटले एवं कुलेश्वरी सोरी इस भ्रमण कार्यक्रम में शामिल हुए।