दुर्ग। पंचभूतों से बने इस शरीर को निरोगी बनाए रखने में रंग चिकित्सा का भी महत्वपूर्ण योगदान है। संतुलित भोजन के बाद भी यदि स्वास्थ्य बिगड़ता है तो कलर थेरेपी कारगर सिद्ध हो सकती है। उक्त बातें शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कर स्नातकोत्तर स्वशासी महाविद्यालय के गणित विभाग की डॉ. प्राची सिंह ने प्राकृतिक चिकित्सा एवं रंगों से चिकित्सा विषय पत्र एक व्याख्यान में कहीं। डॉ प्राची ने नियमित जीवन, संतुलित खानपान और व्यवस्थित आचरण पर प्रकाश डाला। उनके अनुसार हमारी बीमारी के मुख्य दोकारण होते हैं पहला रोग प्रतिरोधक क्षमता की कमी के कारण वायरस या बैक्टीरिया जनित रोग जिसे हम अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाकर काफी हद तक दूर कर सकते हैं और रोग प्रतिरोधक क्षमता को नियमित व्यायाम और आसनों से बढ़ाया जा सकता है। दूसरे प्रकार के रोग शरीर के अंगों की दुर्बलता जनित होते हैं जैसे पेट, लीवर या आंतों की कमजोरी से अपच, कब्ज, डायबिटीज आदि रोग। इनको दूर करने के लिए संयमित, संतुलित और समयानुकूल भोजन की आवश्यकता है। भोजन में कार्बोहाइड्रेट के अलावा प्रोटीन, विटामिन और वसा का संतुलन सही होना चाहिए। भोजन में हरी पत्तेदार सब्जियों, सलाद, मिश्रित दालों, दूध-दही आदि का होना आवश्यक है। फिर भी किसी कारणवश यदि शरीर निरोगी हो जाता है तो उसके लिए कुछ घरेलू उपायों के साथ-साथ रंग चिकित्सा भी उपयोगी साबित हो सकती है।
कार्यक्रम की मुख्यवक्ता के रूप में डॉ. अर्पणा रावल, प्राध्यापक, कम्प्यूटर साईंस विभाग बी.आई.टी दुर्ग उपस्थित रहीं। रावल मैडम ने बताया कि पांच भौतिक तत्वों, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी के अतिरिक्त पांच पराभौतिक तत्व काल, दिशा, मन, तम और आत्मा भी हमारे स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। हमारे हर अंग में इन दस तत्वों का सम्मिश्रण होता है। इन तत्वों के असंतुलन से शरीर रोगी हो जाता है। यदि इन्हेें सुई, चुम्बक, मेथीदाना या रंग से संतुलित कर दिया जाए तो शरीर के रोग दूर हो जाते है। मैडम ने रंगों के द्वारा चिकित्सा पर विशेष बल दिया क्योंकि इसे कोई भी व्यक्ति आसानी से कहीं भी स्वयं के द्वारा कर सकता है। उन्होंने किसी अंग की विभिन्न उर्जाओं को बढ़ाने और आवश्यकतानुसार कम करने के लिए आवश्यक रंगों के विषय में विस्तार से चर्चा की। कार्यक्रम के अंत में कुछ सामान्य बिमारियों के ईलाज के लिए निदान बताया गया साथ ही विद्यार्थियों के स्वास्थ्य संबंधी प्रश्नों का उत्तर भी दिया गया।
विद्यार्थियों ने अपने विचार प्रस्तुत किए और इस तरह के कार्यक्रम बार-बार कराए जाने की इच्छा प्रकट की। उनका मानना था कि इस तरह की थेरेपी का ज्ञान हर इंसान को होना ही चाहिए जिससे वह स्वस्थ रह सके और छोटी-मोटी समस्याओं का निदान स्वयं करके मुंह से खाने वाली दवाईयों के प्रतिप्रभाव से बचा रह सके।