किसके लिए लड़ें – कोई साथ नहीं देता।
एक बार लड़े भी थे – हार गए थे।
अब क्या लड़ेंगे – थक गए हैं।
यही सब सोचकर – हम चुप बैठ जाते हैं।
अपना मुंह सी लेते हैं -ताकि कुछ बोल ना सकें।
कानों को ढांक लेते हैं – कुछ सुन ना सकें।
आंखें बंद कर लेते हैं – कुछ देख ना सकें।
क्योंकि हम कायर हैं, बुजदिल हैं, शिखंडी हैं।
और- फिर भी अपने को मनुष्य कहते हैं।
– ‘अतृप्त’ आनंद