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उठाओ झाडू, नहीं तो देश बीमार हो जाएगा

Nov 25, 2014

darpan kala kendra, anand atripta, swacchata abiyanएक तेज सीटी की आवाज के साथ सभी कलाकार दर्शकों के ही बीच में से निकलकर मंच के एक सिरे से दूसरी ओर जाते हुए इधर-उधर कचरा फैलाते हुए गीत गाते हें
जहां गली-गली में कूड़ा-करकट, करता अपना बसेरा, वो भारत देश है मेरा,
वो भारत देश है मेरा।
जहां झिल्ली, पन्नी ओर प्लास्टिक का, लगता रहता ढेरा, वो भारत देश है मेरा,
वो भारत देश है मेरा जय कचरार्थी, जय झिल्लार्थी, जय कचरार्थी, जय झिल्लार्थी [Read More]
गीत गाते- कचरा फेंकते हुए सभी वापिस भीड़ में शामिल हो जाते हैं।
एक महिला का हाथों में कचरे का डिब्बा लिए इधर-उधर देखते हुए प्रवेश-
महिला एक जगह निर्धारित कर वहां कचरा फैंक देती है, उसे कचरा फेंकता देखकर दूसरी
महिला : ए महारानी, ये अपना कचरा यहां से उठाओ।
पहली : क्यों उठाऊं ?
दूसरी : क्योंकि इसे तुमने मेरे घर के सामने फेंका है।
पहली : तो क्या हुआ, कल तुमने भी तो अपना कचरा मेरे घर के सामने फेंका था।
दूसरी : वो मैंने नहीं, उस चुडै़ल विमला ने फैंका था।
पहली : तो तुम अपना कचरा विमला के घर के सामने फेंक दो, कोरम पूरा हो जाएगा। दोनों जाती हैं।
विदेशियों का गाइड के साथ प्रवेश, विदेशी फैला हुआ कचरा देखकर ,……..
naya suraj, darpan kala kendra, anand atriptaपहला विदेशी : व्हॉट इज दिस?
गाइड : दिस इज इण्डिया सर
दूसरा विदेशी : व्हॉट इज दिस?
गाइड : दिस इज इण्डिया सर
तीसरा विदेशी : व्हॉट इज दिस?
गाइड : दिस इज इण्डिया सर
तीनों विदेशी : ओह, आई सी, दिस इज इण्डिया, दिस इज इण्डिया
सूत्रधार का प्रवेश : नो, नो, नो। ये हमारे कल के भारत की पुरानी तस्वीर है, जिसमें कूड़ा है, कचरा है, करकट है। लेकिन अब हमें इस पुरानी तस्वीर को बदलना है। तो आओ दोस्तो, हम इस पुराने भारत की इस पुरानी तस्वीर को इसी कचरे में डाल दें और उठाएं वो कलम, वो कूची, वो हथियार जो हमारे नए भारत की नई तस्वीर बनाकर दुनिया के सामने रख दे। इस कूड़े-कचरे के भारत को एक स्वच्छ भारत में बदल दे।
दो पात्र अपने दोनों हाथों में झाडू लेकर आते हुए
पहला पात्र : कूड़े-कचरे के विरुद्ध रामबाण दवाई के रुप में
दूसरा पात्र : एक कारगर हथियार।
कहते हुए दोनों अपना एक-एक झाडू सूत्रधार के हाथों में दे देते हैं।
सूत्रधार : दर्शकों से- देख क्या रहे हैं, आइए आप भी स्वच्छ भारत के अभियान में हमारे साथ शमिल हो जाइए। क्या कहा? आप लोग हमारा पूरा खेला देखने के बाद ही फैसला करेंगे, तो साथियों मैं इस एक झाडू को यहां रख देता हूं, जो जब समझे, तभी इसे उठा ले ।
कहता हुआ एक झाडू रख देता है।
एक पात्र का प्रवेश……..
पात्र : अरे ये क्या शर्मा जी, ये क्या कर रहे हैं?
सूत्रधार : देख तो रहे हो।
पात्र : देख तो रहा हूं, पर ये क्या पागलपन है?
सूत्रधार : क्यों, अपनी गन्दगी साफ करना क्या पागलपन है?
पात्र : नहीं, वो बात नहीं।
सूत्रधार : तो फिर बात क्या है?
पात्र : शर्मा जी, कुछ तो समझा करो।
सूत्रधार : अरे भाई। साफ-साफ कहो, क्या समझूं?
पात्र : यही कि इस तरह झाडू उठाकर गन्दगी साफ करना हमारे-आपके जैसे पढ़े-लिखे आदमी का काम नहीं है।
कहते हुए जेब से गुटखा का पैकेट निकाल कर गुटखा खाकर खाली पैकेट वहीं फेंक देता है।
उसे देखते हुए….
सूत्रधार : और हम जैसे पढ़े-लिखे लोगों का काम इस तरह कचरा फैलाना है, क्यों?
पात्र : अब आपसे कौन बहस करे।
कहता हुआ चल देता है। वहीं से एक युवक मंच पर आकर सिगरेट के पैकेट से एक सिगरेट निकालकर खाली पैकेट व खाली माचिस वहीं फेंकता है। उसे देखकर…..
पहला पात्र : ए मिस्टर ये पैकेट और ये माचिस यहां उठाकर डस्टबिन में डालो।
युवक : यहां तो पूरा देश ही डस्टबिन है, जहां जी चाहे, वहीं पर डालो।
दूसरा पात्र : तो जनाब आप उस डस्टबिन में क्या कर रहे हैं ?
पहला पात्र : ये उस डस्टबिन में कचरे को सूंघकर अपनी सेहत बना रहे हैं।
युवक : तमीज से बात करो।
पहला पात्र : अगर आप तमीज वाले काम करोगे तो हम भी तमीज से बात करेंगे।
दूसरा पात्र : और पहले ये कचरा उठाओ।
युवक : अगर न उठाऊं तो?
नेपथ्य से : स्वच्छ भारत अभियान। न्यायालय की ओर से सड़कों गलियों और नालियों में कूड़ा-कचरा फेंकने वाले को 500 रुपये जुर्माना अथवा एक दिन का कारावास।
ये सुनते ही युवक दोनों चीजें उठाकर बड़बड़ाता हुआ भाग जाता है। म्ंाच पर तीनों झाडू लगाने लगते हैं। उन्हें देखते हुए…..
अजनबी : अरे ये क्या, क्या यहां कुछ तमाशा होने वाला है क्या ?
सूत्रधार : हम लोग यहां फैलाया हुआ कचरा साफ कर रहे हैं।
अजनबी : पर ये काम तो सरकार का है।
पहला पात्र : तो क्या हमारे घर का कचरा भी सरकार साफ करेगी।
दूसरा पात्र : अगर आप चाहें तो सुबह शौच के बाद आपकी सफाई के लिए भी सरकार को भेज दूं।
अजनबी : क्या बकवास करते हो।
सूत्रधार : क्यों सच्ची बात कड़वी लग गई।
अजनबी : सवाल कड़वी या मीठी का नहीं है दोस्त। जिस काम को आप लोग कर रहे हैं उसके लिए हमारी सरकार मतलब हमारी नगर निगम जगह-जगह डस्टबिन मतलब कूड़ेदान लगवाए ताकि लोग अपना कूड़ा-कचरा उसमें डालें और आप जैसे सभ्य लोगों को इस तरह कचरा ना उठाना पड़े।
सूत्रधार : कह तो आप भी ठीक रहे हैं पर लोग डस्टबिन को रखने दें तब न
अजनबी : लोग क्यों मना करेंगे?
दूसरा पात्र : अब आप खुद देख लीजिए। आइए चलतेे हैं वहां-जहां निगम कर्मचारी डस्टबिन रखना चाहते हैं और तीनों जाते हैं। निगम कर्मचारी इधर- उधर देखते हुए डस्टबिन लगाना चाहते हैं किन्तु कोई लगाने नहीं दे रहा है।
पहला कर्मचारी : अब इसे कहां रखें यार?
दूसरा कर्मचारी : यहां तो कोई भी अपने घर के सामने रखने नहीं दे रहा है। दोनों इधर-उधर देखते हुए एक जगह देखकर डस्टबिन रखते हैं।
वहां से निकलते हुए
अजनबी : ऐ श्रीमान यहां डस्टबिन मत रखिये
दूसरा कर्मचारी : क्यों क्या बात है?
अजनबी : लोग यहां कचरा फैंकेंगे।
पहला कर्मचारी : इसलिए तो यहां डस्टबिन लगा रहे हैं।
दूसरा कर्मचारी : ताकि लोग कचरा डस्टबिन में डालें।
अजनबी : भाई साहब, यहां लोग कचरे को डस्टबिन के अन्दर नहीं उसके बाहर डालते हैं, और वो कचरा फैलते-फैलते मेरे दरवाजे तक आ जाएगा। समझे।
दूसरा कर्मचारी : ऐसा कैसे होगा?
अजनबी : बाबू ये हिन्दुस्तान है, यहॉं लोग वहीं पर सिंचाई करते हैं जहां पर लिखा होता है ‘देखो कुत्ता दीवार खराब कर रहा है।Ó
पहला कर्मचारी : ठीक कहते हो दोस्त मेरी भी जेब वहीं कटी थी, जहां लिखा था ‘जेबकतरों से सावधानÓ।
अजनबी : इसलिए कहता हूं, ये कचरापेटी यहां से उठाओ।
दोनों एक साथ : समझ गए। कहते हुए अपना डस्टबिन उठाकर दूसरी जगह चल देते हैं।
दूसरा अजनबी : ए..ए..ए… इसे यहां मत रखो।
पहला कर्मचारी : क्यों? अब तुम्हें क्या तकलीफ है?
दूसरा अजनबी : तकलीफ मुझे नहीं, तकलीफ तुम्हें होगी।
दूसरा कर्मचारी : हमें क्यों तकलीफ होगी?
दूसरा अजनबी : इसलिए कि मैं इस कचरापेटी के साथ तुम्हें भी उठाकर फेंक दूंगा।
पहला कर्मचारी : ऐसे कैसे फेंकोगे, हम सरकारी कर्मचारी हैं।
दूसरा अजनबी : और सरकार मेरी जेब में रहती है।
कहते हुए जेब से एक चाकू निकाल लेता है। दोनों कर्मचारी डर कर अपना डस्टबिन उठाकर जाते हैं।
सूत्रधार : देखा आपने, डस्टबिन की दुर्दशा। इसलिए उठाइए झाडू और सफाई अभियान में शामिल हो जाईए।
दूसरा अजनबी : लगता है इनको भी मोदीमैनिया हो गया है।
कहता हुआ जाता है। एक महिला का प्रवेश, साफ-सफाई देखकर…….
महिला : गुड-वैरीगुड, नाईस-वैरी नाईस।
पात्र 1 : कचरे को फैंकने के लिए जाता है, उसे देखकर
महिला : इसे लेकर कहां जा रहे हो?
पात्र 1 : कूड़ेदान यानि कि डस्टबिन में डालने।
महिला : तो इतनी दूर क्यों जाना, यहीं सड़क के बगल वाली नाली में फेंक दो।
सूत्रधार : और नाली जाम हो जाए, क्यों?
महिला : ऐसे-कैसे जाम हो जाएगी, नाली का पानी कचरे को अपने साथ बहाकर ले जाएगा।
पात्र 2 : या फिर ये कचरा ही पानी को बहने से रोक देगा।
सूत्रधार : और नाली में पानी जमा हो जाएगा।
पात्र 2 : फिर उसमें मक्खियां-मच्छर पैदा होंगे।
सूत्रधार : और वो चारों ओर बीमारियां फैलाएंगे।
पात्र 2 : डेंगू, पीलिया, हैजा, मलेरिया।
महिला डरती है, उसे डरता देखकर…
सूत्रधार : और मैडम अगर इनमें से कोई बिमारी आपको हो गई तो?
महिला और डरती है, उसे डरता देखकर…
पात्र 2 : चलो आपको नहीं, अगर आपके किसी बच्चे को हो गई तो
महिला : क्या बकवास करते हो?
सूत्रधार : बकवास नहीं करते, आपको सही और सच्ची तस्वीर दिखा रहे हैं।
पात्र 2 : अगर आपके कचरे की वजह से नाली जाम हो गई तो
सूत्रधार : उस नाली मैं मक्खियां मच्छर पैदा होंगे।
पात्र 2 : जो आपको बोनस के रुप में बिमारियां देंगे।
पात्र 1 : और अगर आपने अपने घर का कचरा बाहर सड़क पर या खुले मैदानों में फैंका…..
सूत्रधार : तो उसे खाकर हमारी गौ माताएं मर जाएंगी और फिर उनकी हत्या का पाप भी आपको लगेगा।
महिला : न बाबा न, न तो मुझे गौ हत्या का पाप कमाना है और न ही अपने बच्चों को बीमार बनाना है। अगर वो ही बिमार हो गए तो मेरा पूरा घर ही बीमार हो जाएगा।
सूत्रधार : और इस तरह पूरा देश ही बीमार हो जाएगा। समझी आप?
महिला : अब तो पूरी तरह समझ गई। कहां है झाडू वहां पड़े झाडू को उठाकर ये एक झाडू न केवल मेरे घर को साफ रखेगा बल्कि मेरे पूरे मोहल्ले को साफ रखेगा।
महिला जाती है। तीनों फिर से झाडू लगाने लगते हैं। उन्हें देखते हुए एक पात्र….
पात्र : क्यों शर्मा जी, ये निगम की नौकरी कब से करनी शुरु कर दी।
सूत्रधार : नगर निगम का नहीं अपना-अपने समाज का काम कर रहा हूं।
पात्र : पर इसके लिए तो हम निगम को टैक्स देते हैं। यानि कि सफाई कर।
पात्र 1 : तो इसका मतलब ये कि हम जहां चाहें वहीं पर कचरा फेंकें।
पात्र : तो इसके लिए निगम हर जगह डस्टबिन रखवाए।
सूत्रधार : और सफाई नगर निगम करवाए।
पात्र 2 : क्योंकि हम निगम को कर देते हैं।
सूत्रधार : इसलिए इधर-उधर जहां जी चाहे, वहीं पर गन्दगी फैलाना हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है।
पात्र 1 : इस अधिकार का हम, पिछले 67 सालों से, भरपूर उपयोग कर रहे हैं।
पात्र 2 : और आगे तब तक करते रहेंगे,
सूत्रधार : जब तक हम पूरे देश को बीमार न बना दें।
सभी गीत गाते हुए इधर-उधर कचरा फैलाते हैं। …
यहां भी फेंको, वहां भी फेंको,
जहां जी चाहे, वहीं पे फेंको।
जहां जी चाहे, वहीं पे फेंको।
कूड़ा-करकट, मैला-कचरा,
कूड़ा-करकट, मैला-कचरा।
कूड़ा-करकट, मैला-कचरा।
गंदा करना काम हमारा,
जन्मसिद्ध अधिकार हमारा।
जन्मसिद्ध अधिकार हमारा।
नगर निगम सफाई कराए,
अपना कत्र्तव्य, वो निभाए
अपना कत्र्तव्य, वो निभाए
यहां भी फेंको, वहां भी फेंको,
जहां जी चाहे, वहीं पे फेंको
कूड़ा-करकट, मैला-कचरा,
कूड़ा-करकट, मैला-कचरा।
सूत्रधार : बंद करो ये बकवास। एक तो चोरी और उपर से सीना जोरी। ये सब अब नहीं चलेगा।
पत्र 1 : अब या तो झाडू उठाकर अपने आस-पास की इस गंदगी की सफाई करो
पात्र 2 : या फिर इसी झाडू से अपनी सफाई करवाओ।
सभी पात्र उन्हें मारने के लिए झाडू उठा लेते हैं।
सूत्रधार : अरे भाई, इतने अधिक जोश में मत आओ, गांधी जी के नाम से चले इस अभियान में हिंसा को मत लाओ, क्योंकि..
सभी : क्योंकि
‘हिंसा भी सामाजिक गन्दगी है।
‘हिंसा भी सामाजिक गन्दगी है।
‘हिंसा भी सामाजिक गन्दगी है।
सूत्रधार : तो साथियों सोचते क्या हो?
पात्र 1 : उठाओ एक-एक झाडू
पात्र 2 : और शुरु हो जाओ
सूत्रधार : 67 सालों से जमी गंदगी को हटाने के लिए
1 व 2 : स्वच्छता का, सफाई का
सूत्रधार : नया सूरज उगाने के लिए। पर पहले ये शपथ।
सभी शपथ पढ़ते हैं।
गीत
स्वच्छ भारत, साफ भारत,
इसका भारत, उसका भारत,
मेरा भारत, तेरा भारत,
हम सबका ये प्यारा भारत।
हम सबका ये प्यारा भारत।

(नगर पालिक निगम भिलाई के जनसम्पर्क विभाग से अशोक पहाडिय़ा की प्रेरणा एवं अजय शुक्ला की सोच पर …..)
नाटक-नया सूरज, लेखक/निर्देशक : ‘अतृप्त आनंद। फोन : 88788-16770
प्रस्तुति : दर्पण कला केन्द्र
कलाकार : रामायण चौधरी, सविता चौधरी, पूजा गिरी, चन्द्र प्रकाश एवं अतृप्त आनंद। विषय स्वच्छता अभियान।

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