भिलाई। राजलक्ष्मी उन 13 छात्राओं में से एक थी जिसने 1976 में इंजीनियरिंग कालेज का मुंह देखा था। उनके पिता आर. मुत्थुस्वामी चाहते थे कि उनकी बेटी इंजीनियर बने। लोग फब्तियां कसते किन्तु पिता का आशीर्वाद लेकर राजलक्ष्मी ने खुद को साबित करने का प्रण कर लिया था। आज वे इस क्षेत्र की उन दुर्लभ प्रतिभाओं में से हैं जिन्होंने न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी अपनी डिजाइनिंग क्षमता की धाक जमाई है। उन्हें राज्य स्तरीय इंजीनियर ऑफ द ईयर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। [More]राजलक्ष्मी ने बताया कि जब उन्होंने रायपुर के शासकीय इंजीनियरिंग कालेज (अब एनआईआईटी) में दाखिला लिया तो लोग हंसा करते थे पर पापा यही कहते थे कि बेटी तुम्हें न केवल इंजीनियर बनना है बल्कि बढिय़ा इंजीनियर बनना है। लोग कहा करते थे कि ये लड़कियां ब्रिज बनाएंगी तो वह ढह जाएंगी, सड़कें बनाएंगी तो टूट जाएंगी। लोगों को यह तक नहीं पता था कि वे केमिकल इंजीनियरिंग की छात्रा हैं। हालांकि बाद में इंजीनियरिंग का कोई भी क्षेत्र उनके लिए अछूता नहीं रहा।
डिग्री हासिल करने के बाद उन्होंने सिम्पलेक्स इंजीनियरिंग में काम शुरू किया। कंपनी के संस्थापक मूलचंद भाई शाह ने ही उनकी प्रतिभा को पहचाना और आगे बढ़ाया। उनकी टीम संयंत्र में जाती, ब्लास्ट फर्नेस की गर्मियां सहन करते हुए यंत्रों एवं उपकरणों को देखती और फिर लौटकर उसका डिजाइन तैयार करती। उन्होंने जर्मनी की एसएमएस डिमाग में भी काम किया। यहां रहकर उन्होंने चीन, हांगकांग, रशिया तथा यूक्रेन के लिए डिजाइन बनाए। वे प्लांट तक जातीं वहां पर बेसिक डिजाइन तैयार करने तक रुकतीं और फिर लौटकर उसके डिटेल पर काम करतीं। उनके मेन्टर मिस्टर शूमाकर उनका उत्साह बढ़ाते और नए नए क्षेत्र में अवसर देते। इसी अनुभव ने बाद में उन्हें अपनी फर्म लांच करने के लिए प्रेरित किया और उन्होंने 2002 में अमृता इंजीनियर्स लांच किया। अपने जीवन के संयोगों के बारे में वे बताती हैं कि उनका जन्म इंजीनियरिंग के पितामह श्री विश्वेश्वरैया के ठीक 100 साल बाद हुआ और इसके ठीक 50 साल बाद उनकी 150वीं जयंती पर उन्हें विश्वेश्वरैया सम्मान से नवाजा गया। इंजीनियर ऑफ द ईयर का यह पुरस्कार प्रैक्टिसिंग इंजीनियर्स वेलफेयर एसोसिएशन द्वारा दिया जाता है।