भिलाई। श्रीराधा-कृष्ण मंदिर नेहरू नगर में ‘नानी बाई रो मायरो’ की कथा सुनाने पहुंची कथाव्यास जया किशोरी कहती हैं कि रिश्तेदारियों में गरीबी का अकसर उपहास होता है किन्तु यह ठीक नहीं है। नानी बाई रो मायरो का प्रसंग इसी को स्पष्ट करता है। जब नानी बाई के ससुरालवालों को यह पता लगता है कि नानी बाई का पिता नरसी मेहता आ गया है तो उनकी गरीबी का उपहास करते हैं। [More]चार दिन तक तो उन्हें भोजन का ही न्यौता नहीं भेजा जाता। पांचवे दिन जब उन्हें आभास होता है कि इस घटना से किसी हादसे के होने की सूरत में उनकी गांव में किरकिरी हो सकती है तो वे उन्हें भोजन के लिए बुलाते हैं। नरसी मेहता कहते हैं कि ठाकुर जी अभी नहाए नहीं हैं, उन्हें भोग नहीं लगा है। वे कैसे आएं। तो उन्होंने स्नान आदि की सुविधा हवेली में ही करने के लिए कहा जाता है। वे वहां पहुंचते हैं तो माघ के महीने में उन्हें नहाने क लिए ठंडा पानी दिया जाता है। वे थोड़ा गर्म पानी मांगते हैं तो उन्हें खौलता हुआ पानी दे दिया जाता है। नरसी भगत ठाकुरजी को याद करते हैं। ठाकुरजी तुरंत उनकी सहायता करते हैं। माघ के महीने में सावन की झड़ी लगा देते हैं। लोग नरसी की भक्ति का लोहा मान जाते हैं।
पर इसके बाद जैसे ही उन्हें पंगत में भोजन के लिए बैठाया जाता है तो उन्हें ठंडी खिचड़ी परोसी जाती है। नरसी भक्त पुन: ठाकुर जी को याद करते हैं। वे कहते हैं कि ठाकुरजी पहला भोग तो आपही का लगेगा। यदि यह आपको मंजूर है तो हम भी इसे ही खा लेंगे। ठाकुरजी कृपा करते हैं और खिचड़ी गर्म हो जाती है। चावल खीर में तब्दील हो जाता है। नरसी और उनके सूरदास सपाड़ा मारकर खीर खाने लगते हैं। जब सपाड़ों की आवाज से लोगों का ध्यान उधर जाता है तो वे यह देखकर दंग रह जाते हैं कि वहां तो 56 भोग लगा हुआ है। वे इसे स्वयं देखते हैं और श्रीरंग जी को भी दिखाते हैं पर इसके बाद भी उनकी आंखें नहीं खुलतीं।
अंत में जब श्रीकृष्ण अपने भक्त की तरफ से स्वयं उपस्थित होकर नानीबाई को बहिन मानते हुए 56 करोड़ का मायरा भरते हैं तो लोग देखते रह जाते हैं।