नई दिल्ली। केंद्रीय विद्यालयों में तीसरी अनिवार्य भाषा के रूप में जर्मन भाषा की जगह संस्कृत भाषा लागू करने का फैसला प्रभावी रहेगा, लेकिन वर्तमान शैक्षिक सत्र में संस्कृत की परीक्षाएं नहीं होंगी। सरकार की तरफ से महान्यायवादी मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति अनिल आर. दवे तथा न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ की पीठ को बताया कि शैक्षिक सत्र के बीच में विषय बदले जाने के कारण छात्रों के प्रति न्यायालय की चिंता को ध्यान में रखते हुए सरकार ने वर्तमान शैक्षिक सत्र में संस्कृत की परीक्षा नहीं कराने का फैसला किया है। सरकार ने स्पष्ट किया कि जर्मन भाषा अब वैकल्पिक भाषा होगी। [More]
याचिकाकर्ता की वकील रीमा सिंह द्वारा सरकार के फैसले का विरोध करने की मांग पर न्यायमूर्ति दवे ने कहा, आपको क्या आपत्ति है? यदि मेरा बच्चा जर्मनी के अलावा संस्कृत भी पढ़ रहा है, तो एक पिता के रूप में मैं उसे स्वीकार करता हूं। महान्यायवादी ने जो कहा है, उसमें गलत क्या है। न्यायालय ने कहा कि इस बात पर क्या आपत्ति है, जब हमारे बच्चे जर्मन पढ़ते हुए बिना किसी तनाव के संस्कृत भाषा भी सीख रहे हों। हम सबके बच्चे हैं। चालू शैक्षिक सत्र में संस्कृत की परीक्षा न लेने का सरकार द्वारा फैसला न्यायालय की 28 नवंबर की उस प्रतिक्रिया के बाद आया है, जिसमें उसने कहा था कि केंद्रीय विद्यालय की कक्षा छह से लेकर आठ तक के छात्रों के लिए संस्कृत को तीसरी भाषा के रूप में लागू नहीं किया जाए, बल्कि इसे अतिरिक्त भाषा की तरह लिया जाए और वर्तमान शैक्षिक सत्र में जर्मन को ही तीसरी भाषा के रूप में ही बरकरार रखा जाए।