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दिल से करते हैं साजों का व्यापार – बचन सिंह

Jan 25, 2015

sargam musical stores, durgदुर्ग। पिछले साढ़े तीन दशक से भी अधिक समय से शहर के संगीतज्ञों की जरूरतों को पूरा करते आ रहे सरगम म्यूजिकल स्टोर्स का नाम आज हर जुबान पर है। जरूरत चाहे संगीत साधने की हो या फिर स्कूल, कालेज या मिलिट्री बैण्ड की, सरगम संगीत की हर जरूरत को पूरा करता आ रहा है। लोक वाद्यों से लेकर देश विदेश के वाद्ययंत्र तो यहां उपलब्ध हैं ही साथ ही उपलब्ध है इनके स्पेयर्स और मरम्मत की सेवा। सरदार बचन सिंह नागपाल कहते हैं कि वे साजों का कारोबार दिल से करते हैंं। आगे पढ़ेंबचन सिंह नागपाल का जन्म देहरादून में हुआ। वहां से वे लुधियाना चले आए। यहां उन्होंने एक म्यूजिकल इंस्ट्रूमेन्ट कंपनी में 5 साल तक शागिर्दी की। यहीं पर उन्होंने विभिन्न वाद्ययंत्रों को सुधारने तथा उन्हें ग्राहक के उपयोग के अनुकूल बनाने का प्रशिक्षण प्राप्त किया।
जल्द ही इस कला में वे पारंगत हो गए। 1980 में वे दुर्ग आए और यहां सरगम म्यूजिकल स्टोर की स्थापना की। आज यहां पारंपरिक वाद्ययंत्र हारमोनियम, तबला, मृदंग, झांझ, सितार, तानपुरा, गिटार से लेकर लोकवाद्य गुदुम बाजा, तुम्बी, ढोल, मोहरी, मांदर, डफड़ा, आदि सबकुछ उपलब्ध है। इसके साथ ही स्कूल, कालेज में लगने वाले ड्रम्स, मिलिट्री बैंड की तुरही, ड्रम्स, बास ड्रम, भोंपू का पूरा सेट उपलब्ध है। सरगम में आर्केस्ट्रा में लगने वाले सिंथेसाइजर, कीबोर्ड, बांगो, कांगो, आक्टोपैड आदि सभी वाद्ययंत्र उपलब्ध हैं।
सरदार बचन सिंह बताते हैं कि म्यूजिक की दुनिया बहुत विशाल और विस्तृत है। हालांकि स्पोट्र्स आइटन रखने वाले भी एक-आध म्यूजिकल इंस्ट्रूमेंट रख लेते हैं किन्तु यह रेंज का 2 फीसदी भी नहीं होता। सरगम अंचल का एकमात्र ऐसा स्टोर है जहां म्यूजिक से संबंधित लगभग सभी उपकरण उपलब्ध हैं।
कई राज्यों से आता है सामान – सरदार बचन सिंह ने बताया कि म्यूजिकल इंस्ट्रूमेन्ट्स अलग-अलग राज्यों में बनते हैं। सरगम म्यूजिकल स्टोर पूरे देश से इन्हें संग्रहित कर छत्तीसगढ़ के लोगों को उपलब्ध कराया जाता है। कुछ इंस्ट्रूमेन्ट्स जहां कोलकाता में अच्छे मिलते हैं वहीं कुछ इंस्ट्रूमेन्ट्स ऐसे भी होते हैं जो पंजाब या हिमाचल से आते हैं। इसी तरह कुछ ऐसे उपकरण हैं जिन्हें इम्पोर्ट करना पड़ता है। ऐसे इंस्ट्रूमेन्ट्स को मुम्बई या चेन्नई के जरिए मंगवाया जाता है। इसमें गिटार, सिंथेसाइजर जैसे उपकरण शामिल हैं। वे बताते हैं कि 8-10 शहरों से वाद्ययंत्रों को मंगवाते हैं।
रायपुर में खोला शोरूम – सरदार बचन सिंह ने बताया कि रायपुर के एमजी रोड पर एक साल पहले उन्होंने एक ब्रांच सरगम म्यूजिकल के नाम से प्रारंभ की है। यहां का कामकाज उनके ज्येेष्ठ पुत्र गुरप्रीत सिंह विक्की और सबसे छोटे बेटे गगनदीप सिंह संभालते हैं। रायपुर स्थित शाखा में भी सभी उपकरण उपलब्ध हैं। संधारण का काम भी वहां बखूबी किया जा रहा है।
भावना से बंधे होते हैं वाद्य – सरदार बचन सिंह बताते हैं कि कुछ वाद्ययंत्रों से लोगों का भावनात्मक जुड़ाव होता है। ऐसे लोग अपने पुराने वाद्य यंत्रों को तिलंजलि नहीं देते। वे किसी भी कीमत पर इनकी रिपेयरिंग कराकर इन्हें उपयोग में लाते रहना चाहते हैं। सरगम म्यूजिकल स्टोर ऐसे लोगों की भावनाओं की कद्र करता है। हम यथासंभव उनकी मदद करने की कोशिश करते हैं।

सस्ते से सस्ता-महंगे से महंगा
वाद्ययंत्रों की कीमत की चर्चा करते हुए वे कहते हैं कि इनकी रेंज बहुत विशाल होती है। कुछ वाद्ययंत्र तो लाखों रुपए के आते हैं। उनके यहां हारमोनियम 5000 रुपए से प्रारंभ हो जाता है। वहीं पंजाब व कोलकाता से आने वाले स्केल चेंजर हारमोनियम 40 हजार रुपए तक के आते हैं। इसी तरह गिटार जहां 2500 रुपए में भी आ जाता है वहीं इसकी कीमत 40000 से लेकर एक-डेढ़ लाख रुपए तक हो सकती है। इसमें स्पेनिश, हवाइयन सभी शामिल हैं।
सबसे ज्यादा मांग गिटार की
संगीत का शौक इन दिनों सिर चढ़कर बोल रहा है। युवा तो खासतौर पर म्यूजिक के दीवाने हैं। पहले जहां लोग हारमोनियम से ही म्यूजिक की शुरुआत करते थे वहीं अब गिटार का ज्यादा जोर है। गिटार का शौक रखने वालों में युवक और युवतियां दोनों शामिल हैं। हालांकि बहुत कम युवतियां ही इस शौक को आगे तक लेकर जाती हैं।

रिखी क्षत्रिय की सेवा का गर्व
प्रसिद्ध वाद्ययंत्र संग्राहक रिखी क्षत्रिय से जुड़ा होने को वे अपना सौभाग्य मानते हैं। वे कहते हैं कि उनके जैसा संगीत प्रेमी मैंने और कहीं नहीं देखा। उनके पास न केवल देश के दुर्लभ वाद्य यंत्रों को विशाल कलेक्शन है बल्कि वे उन्हें बजाकर दिखाने का भी माद्दा रखते हैं। अपने वाद्य यंत्रों को दुरुस्त कराने के लिए ही आरंभ में वे सरगम म्यूजिकल स्टोर के संपर्क में आए और तब से आज तक उनके बीच एक मजबूत रिश्ता बना हुआ है। उन्हें तब बहुत खुशी होती है जब वे श्री क्षत्रिय के किसी काम आ पाते हैं।
संगीत से खुद रहे दूर
सरदार बचन सिंह बताते हैं कि उन्होंने खुद को संगीतज्ञों की सेवा तक ही सीमित रखा। उनकी हर जरूरत पूरी करने की कोशिश की। हालांकि संगत आदि में कभी कभार हारमोनियम बजा लिया किन्तु संगीत को साधने का वक्त कभी नहीं मिला। हालांकि उनके बच्चों ने संगीत की थोड़ी बहुत साधना की है। वे बताते हैं कि उनके तीन बेटों में से दूसरे नंबर का बेटा करमवीर सिंह मैंडोलीन, गिटार तथा तबले का शौकीन है। उसने सीखा भी है और काफी हद तक इनपर उसका अधिकार भी है। पर संगीत जगत की सेवा का ऐसा शौक उसे लगा कि एमबीए करने के बाद भी उसने सरगम के ही काम को आगे बढ़ाने का फैसला किया। उनका यही बेटा आज भी दुर्ग स्थित सरगम म्यूजिकल स्टोर में उनका हाथ बंटाता है।

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