दुर्ग। शासकीय विश्वनाथ यादव तामस्कार स्नातकोत्तर स्वाशासी महाविद्यालय में एफिलिएशन यूनिवर्सिटी बनने का पूरा माद्दा है। इस महाविद्यालय ने समय के साथ चलना सीखा है। लगातार खुद को उन्नत करता आया है तथा आज प्रदेश के एक ऐसे महाविद्यालय के रूप में स्थापित है जिसे न केवल देश में बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी जाना जाता है, स्वीकार किया जाता है। यह कहना है महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ सुशील चंद्र तिवारी का। उन्होंने बताया कि आज इस महाविद्यालय में 14 अनुसंधान केन्द्र हैं, स्नातकोत्तर के 16 विभाग हैं। 107 शोधपत्र राष्ट्रीय शोध पत्रों में प्रकाशित हो चुके हैं जबकि 24 शोधपत्रों का प्रकाशन राष्ट्रीय स्तर के शोध पत्रों में हो चुका है। महाविद्यालय में फिलहाल 4500 विद्यार्थी अध्ययनरत हैं। आगे पढ़ें
चार वर्षों से ए ग्रेड
डॉ तिवारी ने बताया कि महाविद्यालय को 30 नवम्बर 2011 को नेशनल एसेसमेंट एंड एक्रेडिटेशन काउंसिल (नैक) द्वारा ‘एÓ ग्रेड दिया गया और तब से महाविद्यालय के पास यही ग्रेड है। इसके बाद महाविद्यालय ने इससे भी आगे जाने की पहल की और विश्वविद्यालय के रूप में स्थापित होने की इच्छा जताई। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने हमारा आग्रह स्वीकार कर लिया। अब बारी थी राज्य शासन की स्वीकृति की। कालांतिर में राज्य शासन ने भी स्वीकृति दे दी। महाविद्यालय को विश्वविद्यालय में तब्दील करने के लिए आवश्यक 55 करोड़ रुपए का अनुदान यूजीसी ने स्वीकृत भी कर दिया है। हमें पूरी उम्मीद है कि अगले सत्र से यह महाविद्यालय विश्वविद्यालय में तब्दील हो जाएगा।
कैसा होगा स्वरूप
डॉ तिवारी ने कहा कि महाविद्यालय के विश्वविद्यालय में परिवर्तित होने का मार्ग तो प्रशस्त हो गया है किन्तु अभी इसके स्वरूप को लेकर संशय है। विश्वविद्यालय दो तरह के होते हैं। पहला यूनिटरी और दूसरा एफिलिएशन देने में सक्षम। यूनिटरी यूनिवर्सिटी को ही पहले डीम्ड कहा जाता था जिसके पास अपने यहां की परीक्षाएं स्वयं संचालित करने का अधिकार होता है। वह डिग्री देने में सक्षम होता है। किन्तु हम महसूस करते हैं कि यदि हमें एफिलिएशन यूनिवर्सिटी का दर्जा दिया जाए तो न केवल राज्य के विद्यार्थियों को फायदा होगा बल्कि पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय का बोझ भी कम होगा। उन्होंने बताया कि रविवि में फिलहाल 236 महाविद्यालय हैं। इतने सारे कालेजों के लिए समय पर परीक्षाओं का आयोजन करना, रिजल्ट जारी करना और दावा आपत्ति का निवारण करना काफी कठिन होता है। यदि दुर्ग में एक और विश्वविद्यालय हो जाता है तो इसमें दुर्ग, राजनांदगांव, कवर्धा, बेमेतरा, बालोद आदि कम से पांच जिले के महाविद्यालयों को इससे जोड़ा जा सकेगा। इससे काम का बंटवारा होगा तथा उसकी गुणवत्ता बढ़ेगी।
थोड़ी सी हैं चुनौतियां
डॉ तिवारी ने बताया कि फिलहाल हमारे सामने कुछ छोटी चुनौतियां हैं किन्तु उच्च शिक्षा मंत्री प्रेमप्रकाश पाण्डेय, जो इसी कालेज के पूर्व छात्र भी हैं का स्नेह लगातार हमें मिल रहा है। इससे हमें ऐसा महसूस होता है कि इन्हें भी दूर कर लिया जाएगा। इसमें सबसे बड़ी चुनौती अतिरिक्त भूमि प्राप्त करने की है। यूजीसी नाम्र्स के मुताबिक कम से कम 25 एकड़ भूमि होनी चाहिए जबकि हमारे पास 17.5 एकड़ भूमि ही है। नए भवनों के लिए भी स्थान चाहिए होगा। ग्रामीण छात्र-छात्राओं के लिए अतिरिक्त हॉस्टल्स की व्यवस्था करनी होगी।
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