भिलाई। प्रसिद्ध पाश्र्वगायक, गीतकार, संगीतकार सुखविन्दर सिंग ने कहा कि फिल्म – ओह माई गॉड (ओएमजी) देखकर उनके तथा उनके परिवार के जीवन में बड़ा बदलाव आया है। हालांकि अब तक पीके देखने का मौका नहीं मिला है किन्तु वे इस फिल्म को भी जरूर देखेंगेे। उन्होंने कहा कि फिल्म काफी चर्चा में है। कई लोगों ने इसकी आलोचना की है तो कई लोग इसकी तारीफ भी कर रहे हैं। फिल्म ने बाक्स आफिस पर भी झंडे गाड़े हैं। सुखविन्दर होटल ग्रांड ढिल्लन में पत्रकारों से मुखातिब थे। उन्होंने कहा कि हालांकि उनके लिए थिएटर में जाकर फिल्म देखना शायद संभव न हो किन्तु इसका आफिशियल डाउनलोड जरूर देखना चाहेंगे। moreउन्होंने कहा कि वे पाइरेटेड फिल्म, वीडियो या ऑडियो नहीं देखते। क्योंकि इन सबको बनाने में काफी मेहनत लगी होती है, काफी पैसा लगा होता है, काफी वक्त लगा होता है। हो सकता है कोई फिल्म खूब चले और कोई उतनी न चले किन्तु इन सभी के पीछे मेहनत शिद्दत के साथ की गई होती है। चूंकि वे स्वयं एक कलाकार हैं इसलिए पाइरेसी के सख्त खिलाफ हैं और कम से कम खुद कभी पाइरेटेड फिल्म या वीडियो नहीं देखेंगे।
उन्होंने कहा कि इससे पहले एक फिल्म ओह माइ गॉड (ओमएमजी) आई थी। उन्होंने वह फिल्म देखी थी और इसका उनके और उनके परिवार के जीवन पर काफी असर पड़ा है। उनका परिवार शिवजी का भक्त है। प्रत्येक सोमवार को वे काफी दूध शिवलिंग पर चढ़ाया करते थे। ओमएमजी देखने के बाद चढ़ाए जाने वाले दूध की मात्रा बढ़ा दी गई किन्तु इस दूध को अब व्यर्थ नहीं जाने दिया जाता। पूरा परिवार उसी दूध का उपयोग करता है। इसके अलावा यही दूध बाल्टियों में लेकर वे गरीब बच्चों के बीच पहुंचते हैं तथा उन्हें पिला आते हैं। इस तरह से एक फिल्म ने उनकी सोच बदली। पीके में क्या है वे नहीं जानते किन्तु इसे एक बार देखेंगे जरूर।
मोस्ट एलिजिबल बैचेलर
सुखविन्दर ने आश्चर्य व्यक्त किया कि कोई उसके विवाह को लेकर सवाल नहीं कर रहा। फिर उन्होंने खुद ही कहा कि गीत संगीत से फुरसत ही नहीं मिली, इसलिए शादी नहीं की। उन्होंने कहा कि वे शादी जरूर करेंगे बल्कि करनी ही पड़ेगी। उन्होंने यह भी यकीन दिलाया कि वे सलमान की उम्र तक पहुंचने से पहले ही शादी करेंगे।
भिलाई से पुराना नाता
सुखविन्दर ने कहा कि भिलाई से उनका काफी पुराना और गहरा रिश्ता है। वे यहां कई बार आ चुके हैं। उन्होंने मोटरसाइकिल और स्कूटर पर इस शहर का चप्पा चप्पा छाना है। उन्हें यह भी पता है कि भिलाई में कहां क्या अच्छा मिलता है। होटल ग्रांड ढिल्लन के संचालक त्रिलोक सिंग ढिल्लन के साथ उनके पारिवारिक रिश्ते हैं। वे उनके यहां आते रहते हैं। इस बार भी वे ढिल्लन दंपति के विवाह वार्षिकी में सम्मिलित हुए जिसमें उन्होंने दोबारा शादी की। सुखविन्दर ने एक फरवरी को यंगिस्तान के मंच से अपनी नई विधा म्यूजिक सर्कस की प्रस्तुति भी देंगे। इसके बाद यही उनकी विधा होगी। उन्होंने उम्मीद जताई कि जल्द ही यह विधा और लोग भी अपनाएंगे तथा उसे आगे बढ़ाएंगे।
काम आ गई बचपन में सुनी कहानी
सुखविन्दर ने बताया कि लोग बचपन में नाना-नानी, दादा-दादी या बड़े बुजुर्गों से कहानी सुनना पसंद करते हैं। पर जब वे बड़े हो जाते हैं तो इन कहानियों से मिली सीख उनके काम आती है। तेलुगु, तमिल, पंजाबी, हिन्दी, अंग्रेजी समेत लगभग सात भाषाओं में गीत प्रस्तुत कर सुखविन्दर ने बताया कि जब उन्हें पहली बार तमिल गाने का ऑफर मिला तो वे सकपका गए। तब तो उन्हें यह भी नहीं पता था कि तमिल किसी व्यक्ति का नाम नहीं बल्कि तमिलनाडु नाम के एक राज्य की भाषा है। पहले तो वे हिचकिचाए किन्तु फिर हामी भर दी। दरअसल उन्हें बचपन में सुनी वह कहानी याद आ गई थी जिसमें महात्मा गांधी ने दो महीने में संस्कृत सीखने का प्रण किया था। अपनी नानी से सुना यह किस्सा सुनाते हुए सुखविन्दर ने कहा कि एक बार एक अंग्रेज मजिस्ट्रेट ने महात्मा गांधी से पूछा कि क्या आपको संस्कृत आती है? गांधी ने कहा – नहीं। इसपर अंग्रेज ने इसके लिए उन्हें फटकार लगाई थी। तब गांधी ने कहा था कि आप मुझे दो माह का समय दें, मैं संस्कृत में ही आपसे बातें करूंगा। इसके बाद देश सेवा से बचे क्षणों में वे सिर्फ संस्कृत में सोचते, संस्कृत में अपने आप से बतियाते और दो माह बाद वे पूरी तरह तैयार थे। बचपन में सुनी इसी कहानी से सीख लेते हुए उन्होंने तमिल गाने के लिए हां कह दिया और जब तमिल के मशहूर सिंगर्स ने उनकी प्रशंसा की तो उनका दिल बाग-बाग हो उठा।
संगीत की भाषा
एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि गायक कभी उस भाषा में नहीं गाता जिसमें उसे असुविधा होती हो। क्योंकि यदि गायक को असुविधा होगी तो श्रोताओं को भी असुविधा होगी। वैसे भी गीत की भाषा बहुत ज्यादा मायने नहीं रखती। एक बार संगीतकार ए.आर. रहमान ने उनसे एक गीत का अर्थ पूछा था। इसपर उन्होंने रहमान से गीत को गाकर सुनाने की इजाजत मांगी थी। इजाजत मिल गई और जब उन्होंने गीत रहमान साहब को गाकर सुनाया तो पूरा गीत उनकी समझ में आ गया। दरअसल गीत को समझने में उसका मूड और आर्टिस्ट के हाव-भाव का बड़ा योगदान होता है। कई बार सीक्वेंस ही सबकुछ बता देता है। उन्होंने कहा कि चार्ली चैपलिन ने कभी एक शब्द किसी भाषा में नहीं बोला किन्तु लोग उनके किरदारों को सहज ही समझ जाया करते थे।
संख्या याद नहीं
सुखी ने एक सवाल के जवाब में कहा कि न तो उनकी कोई पसंदीदा गीत है और न ही कोई गीत उन्हें कम या ज्यादा प्रिय है। वे अपने सभी गीतों से प्यार करते हैं। पर हां एक फिल्म अस्तित्व आई थी जिसमें तब्बू ने टाइटल सांग एनेक्ट किया था। इसका गीत चल-चल मेरे साथी चल… मेरे दिल के काफी करीब है। शायद यह कहीं न कहीं मुझसे कनेक्ट होती है।
काम और मस्ती साथ साथ नहीं
अपने काम को गंभीरता से लेने वाले सुखविन्दर ने कहा कि उनके स्वभाव में मस्ती है। बल्कि वे तो दिन भर मस्ती करते रहते हैं। जब कभी गम हावी होता है तो वो मस्ती डबल कर देते हैं और वह गम पर हावी हो जाता है। पर काम के समय वे पूरी तरह संजीदा होते हैं। उस समय उनके सामने सिर्फ एक ही लक्ष्य होता है। वे अपने काम को हंड्रेड परसेन्ट देते हैं। वे कहते हैं कि जब आप अपने काम को हंड्रेड परसेंट देते हो, जब सोते जागते केवल वही आपके खयालों में होता है तो क्रिएटिविटी अपने आप आने लगती है।