• Thu. May 2nd, 2024

Sunday Campus

Health & Education Together Build a Nation

बेइंतहा दर्द सहकर मिली है यह हंसी

Dec 26, 2014

Neeta Kambojभिलाई। आवाज में बच्चों जैसी चपलता और फूलों सा हंसता खिलखिलाता चेहरा देखकर इस बात का अंदाजा लगाना नामुमकिन है कि इस चेहरे के पीछे दर्द का एक पूरा समन्दर छिपा है। शायद यह एक कवि के लिए ही संभव है कि वह अपने जीवन के झंझावातों से भी ठीक उसी तरह ऊर्जा और प्रेरणा प्राप्त करे जिस तरह सागर की अतल गहराइयों में रहकर सीप मोती गढ़ लेता है। यहां हम बात कर रहे हैं नीता काम्बोज की। नीता ने न केवल राष्ट्रीय मंच पर अपनी मौलिक कविताओं के हस्ताक्षर किए हैं बल्कि अपने सामथ्र्य से ऊपर उठकर आज भी बेसहारा वृद्ध महिलाओं को आश्रय दे रही हैं। एक मां के रूप में, एक बेटी के रूप में उनकी भूमिका अनन्य है। आगे पढ़ें    (देखें वीडियो)उनके जन्मदिन पर हुई मुख्तसर सी मुलाकात पल भर में गहन आत्मीयता में बदल गई और हम उनके जीवन के उन सफों को पलटते चले गए जिन्हें वे काफी पीछे छोड़ आई थीं। जहां दर्ज थे वे अनुभव जिसमें तपकर उनका व्यक्तित्व विशाल से विशालतर होता चला गया। उन्होंने जीवन की कड़वाहटों को कभी खुद पर हावी नहीं होने दिया बल्कि उन्हें सहजता के साथ लेते हुए उनका विवेचन करती चली गईं। खिलखिलाते हुए वे कहती भी हैं –

25 दिसम्बर को जन्मी हूं, नक्षत्र था मूल,
अटलजी से कुछ गुण मिलते हैं, इसमें मेरी क्या भूल
नीता जी बताती हैं कि और बच्चों की तरह उनका बचपन भी साधारण ही था। पिता पहली पीढ़ी की भिलाइयन थे। उनका परिवार खुर्सीपार में रहता था। यह भिलाई का वह क्षेत्र है जिसने भिलाई को अनेक रत्न दिए हैं। नीता जी बताती हैं कि उनके पिता को नौकरी करना स्वीकार नहीं था इसलिए उन्होंने बेकरी का व्यवसाय प्रारंभ किया। माता जी को साहित्य से बेहद लगाव था। वे कविताएं भी करती थीं। इस तरह नीता को साहित्य विरसे में मिला। कालेज पहुंचने से पहले ही वे सैकड़ों साहित्यकारों और कवियों को न केवल पढ़ चुकी थीं बल्कि कविता करने भी लगी थीं। स्कूली शिक्षा खत्म करने के बाद उन्होंने भिलाई-3 के डॉ खूबचंद बघेल स्नातकोत्तर महाविद्यालय में दाखिला ले लिया। पर ग्रेजुएशन पूरा हो इससे पहले ही शादी हो गई। नीता बताती हैं कि उनकी प्रारंभिक कविताएं कालजयी रचनाकारों की कृतियों से प्रेरित रहीं किन्तु बाद में जैसे जैसे जीवन के खट्टे-मीठे अनुभव इसमें जुड़ते चले गए कविता ने अपनी दिशा बदली और वह समसामयिक विषयों से जुडऩे लगीं। विचारों की मौलिकता पुष्ट हुई तो कविताएं खूबसूरत तुकबंदी होने के बजाय लोगों से जुडऩे लगीं। भय से उपजी आक्रामकता वे कहती हैं कि अल्पायु में हुए विवाह से उनकी पढ़ाई को ब्रेक लग गया था। वैवाहिक जीवन ने कई खट्टे-मीठे अनुभव दिए। इसी से सीखा कि पुरुष नारी या शक्ति से भयभीत रहता है। इस भय को छिपाने के लिए ही वह आक्रामक हो जाता है। कुछ मुद्दों पर वह बात नहीं करना चाहता। कुछ चीजें वह छिपाना चाहता है। पर जब इसमें वह असफल होता है तो गुस्सा करने लगता है। यह भय से उपजी आक्रामकता है, इसे पुरुषवाद या पुरुष प्रधान कहना ठीक नहीं। वे कहती हैं कि जब रिश्ते बोझ बन जाएं और दोनों का व्यक्तित्व प्रभावित होने लगे तो रिश्तों को एक खूबसूरत मोड़ देकर छोड़ देना ही अच्छा होता है।
खीझ और अपूर्णता से उपजे अपराध
हिंसा और यौन अपराध को एक नई रौशनी में देखते हुए नीता कहती हैं कि स्त्री हो या पुरुष दोनों ही अपूर्ण होते हैं। ओशो कहते थे कि भूमिष्ट होने के बाद भी इंसान की संतान को 9 महीने अपने पैरों पर खड़ा होने में लगते हैं जबकि अन्य स्तनपाइयों के बच्चे जन्म लेने के कुछ ही देर बाद अपने पैरों पर खड़े हो जाते हैं। दरअसल इंसान का बच्चा समय से काफी पहले जन्म ले लेता है। यह अपूर्णता, दूसरों पर निर्भरता का उसका आरंभिक जीवन उसके अंतर्मन में कैद हो जाता है। अपनी कमजोरी, अपनी अक्षमता को छिपाने के लिए ही वह आक्रामक होता है।
वे कहती हैं, इंसान की सुप्त इच्छाएं अचानक जोर मारने लगती हैं और वह उसे रोक नहीं पाता। कभी संयुक्त परिवार लोगों को सहज सहजीवन के लिए प्रशिक्षित करता था किन्तु जैसे जैसे एकल परिवार और अकेलापन बढ़ रहा है, इस तरह के अपराध बढ़ रहे हैं। इसे रोकने के लिए हमें अपने परिवार को और वक्त देना होगा। अपने आचरण को शुद्ध रखना होगा क्योंकि बच्चे सुनकर नहीं बल्कि देखकर सीखते हैं।
सीता चाहिए तो राम बनना होगा
वे कहती हैं कि प्रत्येक पुरुष की इच्छा होती है कि उसकी कई गर्लफ्रेंड्स हों किन्तु वह अपनी गर्लफ्रेंड से अपेक्षा करता है वह केवल उसकी बनकर रहे। कविता की चंद पंक्तियों में वे कहती हैं
सती नारी की आकांक्षा तुम्हारी
तो सत्य को कौन सहन करेगा
और सभी सती हो जाएंगी तो
तुम्हारा मनोरंजन कौन करेगा..
अंत में वे कहती हैं –
नहीं चाहिए तुम्हें द्रौपदी, तो हमें भी नहीं श्याम चाहिए
चाहिए तुमको सीता, तो हमको भी तो राम चाहिए

Leave a Reply