भिलाई। आचार्य महाश्रमण के आज्ञानुवर्ती जैन मुनि रणजीत कुमार ने कहा है कि समाज संस्कार विहीन हो चुका है जिसकी वजह से जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में विकृतियां आ रही हैं। दिल्ली में, मध्यप्रदेश में, बिहार या यूपी में जो कुछ हो रहा है, उसमें भी विकृतियां ही उभर कर सामने आई हैं। मुनिश्री यहां नेहरू नगर में पोरवाल प्रेक्षागृह में संवाददाताओं से चर्चा कर रहे थे। सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने बताया कि जो जहां का रहने वाला है, उसका एक निश्चित भोजन पैटर्न होता है। जब व्यक्ति इसे छोड़कर दूसरों की भोजन शैली को अपनाने की कोशिश करता है तो विकृतियां आती हैं। उन्होंने कहा कि दक्षिण भारत में जहां जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा मांसाहारी है वहां से इस तरह की खबरें नहीं आतीं पर उत्तर भारत, जहां लोग मूलत: शाकाहारी हैं वहां तामसी भोजन और फास्ट फूड ने अपने पांव जमा लिये हैं। इसका नतीजा हम सभी देख रहे हैं। आगे पढ़ें..उन्होंने कहा कि सदियों से हमारे देश में यह कहा जाता रहा है कि जैसा खाओगे-वैसा बन जाओगे। हमारे मनीषियों को इसका ज्ञान काफी पहले से था। यही बात शराब पर भी लागू होती है। पश्चिम में या देश के आदिवासी इलाकों में शराब जीवन शैली का हिस्सा है। पर जब लोग नशा करने के लिए या पार्टी बाजी के लिए छिपकर अपराध बोध के साथ शराब का सेवन करते हैं वे समाज के लिए खतरा बन जाते हैं। शिक्षा में संस्कार की चर्चा करते हुए जैन मुनि रणजीत कुमार ने कहा कि भारतीय शिक्षा पद्धति में संस्कारों का बड़ा महत्व रहा है। पर अब शिक्षा केवल प्रतिस्पर्धा सिखा रही है। संस्कार या परोपकार का भाव विलोपित कर दिया गया है। संयुक्त परिवार टूट रहे हैं, एकल परिवार तेजी से बढ़ रहे हैं। इससे एक तरफ जहां जरूरतें बढ़ी हैं, वहीं दूसरी तरफ बच्चों को संस्कारित करने वाली पीढ़ी से भी नाता टूटा है। जिन घरों में माता-पिता दोनों नौकरियां करते हैं वहां बच्चे पूरी तरह से टीवी और इंटरनेट के हवाले हैं। वे वहां कुछ भी देख रहे हैं। कुछ भी सीख रहे हैं। मन में जिज्ञासाएं उत्पन्न हो रही हैं तो इंटरनेट पर ही उसके हल ढूंढ रहे हैं। जैन मुनि रणजीत कुमार ने समस्या को रेखांकित करते हुए कहा कि बच्चों की तरफ माता पिता या अभिभावक का ध्यान नहीं होना ही समस्याओं की जड़ है। बच्चे क्या पहन-ओढ़ रहे हैं, क्या खा-पी रहे हैं, क्या पढ़-सुन रहे हैं, कब सोते कब जागते हैं, इससे परिवार कट सा गया है। ऐसे में यदि बच्चे के मन में विकृतियां आ जाती हैं तो उसे दोष देने का कोई फायदा नहीं है।यौन हिंसा तथा बाल उत्पीडन की रोकथाम के लिए बने कड़े कानूनों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि डंडे के जोर पर व्यवस्था सुधारी नहीं जा सकती। इसका कोई लाभ होने की संभावना नहीं है। हमें समाज में ही परिवर्तन लाने होंगे तथा बच्चों की सही परवरिश पर ध्यान केंद्रित करना होगा। नेतृत्व को जिम्मेदार ठहराते हुए उन्होंने कहा कि नेतृत्व बलवान होगा तो जैसा वह चाहेगा वैसा करवाने में सफल होगा। यदि नेतृत्व में दम नहीं होगा तो सभी अपने मन की करेंगे और अव्यवस्था फैलती रहेगी।
मौजूदा शिक्षा प्रणाली पर प्रहार करते हुए उन्होंने कहा कि इसमें संस्कारों का अभाव है। नीति शिक्षा को भी हाशिए पर डाल दिया गया है। हम देश भर की यात्राएं करते हैं। रास्ते में या जहां भी हम जाते हैं, शिक्षकों, प्राध्यापकों तथा प्राचार्यों से संस्कारों की बातें करते हैं। शिक्षा प्रणाली तथा व्यवस्था में सुधार के लिए समझाइशें देते हैं। हम उम्मीद करते हैं कि भारत एक बार फिर अपने गौरवशाली अतीत की राहों पर लौटेगा और देश में अन चैन होगा। लोगों की अस्मिता सुरक्षित होगी।
पंजाबियों में ईश्वर के प्रति अटूट श्रद्धा
जैन मुनि रणजीत कुमार ने कहा कि अपनी यात्राओं के दौरान उन्होंने पंजाबियों को भक्ति मार्ग का श्रेष्ठ पथिक पाया है। जितनी श्रद्धा से वे अपने ईश्वर को याद करते हैं, जिस समर्पण के साथ वे सेवाभाव करते हैं, वह शेष भारत में दुर्लभ है। पंजाबियों का यह समर्पण, सरलता और सहृयता उन्हें प्रत्येक बार नए सिरे से प्रभावित करता है। इससे पूर्व युवा कर्मठ संत मुनि पद्म कुमार ने कहा कि महावीर जयंती का दिन एक साथ अनेक प्रकार के संदेश लेकर आता है जिसे स्वीकार कर लोग अपना जीवन बदल सकते हैं। इससे पूर्व तेरापंथ युवक परिषद, तेरापंथ महिला मंडल दुर्ग-भिलाई एवं दिम्बर जैन सभा नेहरू नगर द्वारा विशाल रैली निकाली गई। रायपुर एवं उड़ीसा से आए लोगों ने अपने अपने विचार व्यक्त किये।