दुर्ग। भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग अंतर्गत स्वशासी संस्थान विज्ञान प्रसार के सहयोग से छत्तीसगढ़ विज्ञान मंच द्वारा 22 से 25 फरवरी के मध्य आयोजित राज्य स्तरीय प्रकृति अध्ययन गतिविधि शिक्षक प्रशिक्षण कार्यशाला का दूसरे दिन प्रसिद्ध वनस्पति वैज्ञानिक व छत्तीसगढ़ बायो डाईवर्सिटी बोर्ड के सदस्य डॉ एम एल नायक ने छत्तीसगढ़ की जैव-विविधता विषय पर विस्तृत जानकारी देते हुए कहा कि विदेशों से किन्ही कारणों से प्रदेश में पंहुची पार्थेनियम (गाजर घास), यूपेटोरियम ओड़ोतटेररम (जहाज छेटा), अफ्रीकन मागुर (मछली) जैसी कई प्रजातियों से छत्तीसगढ़ की जैव-विविधता को खतरा उत्पन्न हो गया है। read more
उन्होंने आगे कहा, दहिमन, तेजराज जैसे प्रदेश के जंगलों में पाए जाने वाले पेड़ों की सख्या निरंतर कम होती जा रही है। बिना बीज के तेंदू का एक-मात्र पेड़ सरगुजा जिले के मैनपाट में बचा है। बैलाडीला में छत्तीसगढ़ का एक-मात्र रुद्राक्ष का पेड़ भी समाप्त हो चुका है।
गतिविधि सत्रों में प्रशिक्षक डा भव्या भार्गव, बी एल बलैय्या तथा अरुण भार्गव ने प्रकृति के अध्ययन हेतु विभिन्न सरल उपकरणों को बनाना सिखाया। कार्यशाला में प्रतिभागियों ने केंचुयों की गतिविधि को समझने के लिए ‘वर्मिकेरियमÓ, तालाब के कीड़े-मकोड़ों के अध्ययन के लिए ‘पोंडप्युअरÓ, चीटियों व कीड़े मकोड़ों के जीवन को समझने के लिए क्रमश: चींटीघर व टेटेरियम, कीटों को पकडऩे के लिए बटरफ्लाई नेट आदि सरल व सस्ते उपकरण बनाना सीखे। इसके साथ-साथ बीज अंकुरण की प्रक्रिया को समझाने के लिए ग्रीन हाउस तथा एक-बीजी एवं द्वी-बीजी पौधों के लिए लीफ प्रिंट बनाना भी सीखा।
छत्तीसगढ़ विज्ञान मंच के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो डी एन शर्मा के संयोजन में आयोजित इस कार्यशाला में छत्तीसगढ़ विज्ञान मंच के जयकरण सोनी व रंजिता खरे ने सक्रिय योगदान दिया। कार्यशाला के तीसरे दिन प्रतिभागियों को मैत्री बैग में नेचर वाक पर ले जाते हुए विविध प्रायोगिक गतिविधियां करवाई जावेंगी।
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