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माता-पिता और संतों से बढ़कर हैं शिक्षक

Feb 19, 2015

prof mm habardeभिलाई। छत्तीसगढ़ काउंसिल ऑफ साइंस एंड टेक्नोलॉजी (सीजीकॉस्ट) के डायरेक्टर जनरल प्रो. एमएम हम्बार्डे का मानना है कि एक छात्र के जीवन में माता-पिता और संत-महात्माओं से ज्यादा ऊंचा स्थान शिक्षक का होता है। वह शिक्षक द्वारा प्रदत्त जानकारी को प्रामाणिक मानता है और अन्य सभी स्रोतों से मिली जानकारी से ऊपर मानता है। इसलिए शिक्षक का दायित्व और भी बढ़ जाता है। वनांचलों में, जहां वैचारिक प्रदूषण से मुक्त बच्चे रहते हैं, उन्हें वैसा ही अप्रदूषित रखकर संस्कार देना महत्वपूर्ण है। read more  video
prof hambarde, bk tyagi, arun bhargava, dn sharma, bhavya bhargavaप्रो. हमबार्डे यहां अग्रसेन भवन में सीजीकॉस्ट एवं विज्ञान प्रसार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित आदिवासी अंचल के विज्ञान शिक्षकों की कार्यशाला के उद्घाटन सत्र को मुख्य अतिथि की आसंदी से संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि बचपन में कुछ-समय तक बच्चा अपने माता-पिता से संस्कार लेता है। जीवन में कुछ संस्कार वह साधु-संतों से भी प्राप्त करता है किन्तु सबसे ज्यादा प्रभावित उसे शिक्षक करता है। उन्होंने कहा कि सिर्फ जानकारी का हस्तांतरण ही शिक्षा नहीं है, जैसा कि आम तौर पर समझ लिया जाता है। जानकारी तो पुस्तकों या ऑडियो विजुअल एड से भी ली जा सकती है। शिक्षक नाम का जीवित व्यक्ति उसे अपनी वाणी से, अपने आचरण से संस्कारित करता है। उन्होंने कहा कि शिक्षक की छात्र के साथ जो क्रिया प्रतिक्रिया होती है, संवाद होता है, सम्पर्क होता है वह महत्वपूर्ण है। यहीं से शुरू होता है संस्कारों का आदान प्रदान।
शिक्षक जानकारियों का हस्तांतरण तो करता ही है, साथ ही वह बच्चे में अपने परिवेश को जानने और समझने की जिज्ञासा भी उत्पन्न करता है। वह उन्हें अपने आसपास उपलब्ध वस्तुओं को एक नई दृष्टि से देखने के लिए प्रेरित करता है। उसमें वैज्ञानिक सोच पैदा करता है। इसे और स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं कि हम प्रतिदिन अनेक लोगों से मिलते हैं। पर हम केवल उन्हीं लोगों के बारे में और अधिक जानने का प्रयत्न करते हैं जिनसे हमारा परिचय होता है। ऐसा हम उन लोगों के बारे में करते हैं जिनसे हमारा लगाव हो जाता है। इसी तरह वनांचल के लोग अपने परिवेश से प्यार करते हैं। पर यह प्यार अलग तरह का है। वह केवल उनकी पूजा करता है और उसे पवित्र मानता है। वह उसे स्वच्छ रखता है, उसे सज्जित करता है, उसकी सुरक्षा करता है। इस प्रेम को वैज्ञानिक सोच से जोडऩे की जरूरत है ताकि वह उसके बारे में और जानने, और जानने का प्रयत्न करे।
जानकारी और संस्कार के संबंधों को एक उदाहरण से स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि वनांचल के लोगों को जब यह जानकारी मिली कि आंवले का अच्छा पैसा मिल रहा है तो उन्होंने पेड़ों को नुकसान पहुंचाते हुए आंवले का संग्रहण कर लिया। इससे यह हुआ कि अगले साल जब आंवला संग्रहण का वक्त आया तो आंवले का एक भी पेड़ वहां साबुत नहीं मिला। यह ठीक वैसा ही था जैसे सोने के अंडे देने वाली मुर्गी को हलाल करना। यहीं से संस्कारों की भूमिका स्पष्ट हो जाती है। यदि जानकारी के साथ उन्हें आंवला वृक्ष के संरक्षण के लिए प्रेरित किया गया होता, तो ऐसी स्थिति नहीं बनती। इसलिए वनांचलों के शिक्षकों के लिए यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है कि वह बच्चों को परिवेश से जोड़कर शिक्षा प्रदान करें और संस्कारित भी करें।
tribal teachers workshopप्रो. हम्बार्डे ने ओज और तेज के संबंध को स्पष्ट करते हुए कहा कि किसी भी वस्तु या व्यक्ति की आंतरिक ऊर्जा उसका ओज है और जिस रूप में वह प्रस्फुटित होती है वह तेज है। सूर्य, चंद्रमा को हम देवता मानकर उनकी पूजा करते हैं। इनकी उपासना करते हैं। इसकी पद्धति भी निर्धारित है। हम सूर्य को जल चढ़ाते हैं, सूर्य नमस्कार करते हैं। पर यह जानना कि सूर्य से निकलने वाली किरणें हममें ओज का संचार करती हैं। यही विज्ञान है। परिवेश को इसी रूप में जोड़कर सोच को वैज्ञानिक बनाया जा सकता है। इसी तरह अपने परिवेश में मौजूद वनस्पति, जल, मिट्टी, पत्थर आदि के प्रति जिज्ञासा उत्पन्न करना ही वैज्ञानिक सोच है। उन्होंने उम्मीद जताई कि इस चार दिवसीय कार्यशाला में शिक्षक इसी वैज्ञानिक सोच से बच्चों को संस्कारित करने के गुर सीख पाएंगे।
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के निदेशक डॉ आर गोपीचन्द्रन ने कहा कि वर्तमान दौर में केवल प्रमाण पत्रों से करियर नहीं बनने वाला। हमें अपनी सोच को वैज्ञानिक बनाते हुए सतत् अनुसंधान करना होगा। इसीलिए देश भर में फैले साइंस क्लबों को एक नेटवर्क से जोड़ा जा रहा है। उन्होंने शिक्षकों के दो प्रकारों की चर्चा करते हुए कहा कि एक शिक्षक स्वयं को केवल सिलेबस पढ़ाने तक सीमित रखता है। वहीं दूसरा शिक्षक बच्चों में जिज्ञासा उत्पन्न करता है, उन्हें अपने सवालों के जवाब ढूंढना सिखाता है। वह दिल से शिक्षक होता है और इस कार्य में आनंद लेता है। उन्होंने अपने एक मित्र डॉ त्रिपाठी का उल्लेख करते हुए उन्होंने बताया कि बच्चों को पढ़ाने की उनमें इतनी तीव्र इच्छा थी कि उन्होंने महाविद्यालय के प्राध्यापक के पद से इस्तीफा दे दिया और वापस स्कूली बच्चों को पढ़ाने चले गए।
साइंस सेंटर भोपाल के वरिष्ठ वैज्ञानिक बी के त्यागी ने आधुनिक शिक्षा पद्धति जिज्ञासा एवं परियोजना आधारित है। इस कार्यशाला में आए वनांचल क्षेत्रों के शिक्षक इसी विधा में प्रशिक्षित होंगे। साइंस सेंटर के सचिव अरुण भार्गव ने भी अपने विचार रखे। डॉ भव्या भार्गव ने इस अवसर पर कार्यशाला की विषय वस्तु तथा उद्देश्य को रेखांकित किया। इस अवसर पर कल्याण महाविद्यालय एवं एमजे कालेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. हरिनारायण दुबे भी उपस्थित थे। अतिथियों ने नेचर आबजर्वेशन किट का भी विमोचन किया।
आरंभ में कार्यक्रम के सूत्रधार प्रो. डीएन शर्मा ने अतिथियों का परिचय प्रदान किया। उन्होंने कहा कि इतने बड़े वैज्ञानिकों को अपने बीच पाकर न केवल ये शिक्षक बल्कि छत्तीसगढ़ धन्य हो रहा है। उन्होंने बताया कि इस चार दिवसीय कार्यशाला के दौरान शिक्षकों को एक नेचर आबजर्वेशन किट भी प्रदान किया जाएगा। कार्यशाला के तीसरे दिन सभी प्रशिक्षणार्थियों को मैत्री बाग ले जाया जाएगा जहां वे नेचर वॉक के जरिए प्रकृति से जुडऩे का प्रत्यक्ष अनुभव प्राप्त करेंगे।

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