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दिल में उतर गए शहंशाह संन्यासी

Mar 3, 2015

swami vivekanandभिलाई। अद्वितीय, अद्भुत, अनुपम और प्रभावशाली। छत्तीसगढ़ी, हिन्दी और बांग्ला भाषा का अपूर्व मिश्रण। नाटक और नृत्य का सुन्दर मेल। दो दृश्यों के बीच नृत्य करते स्त्री-पुरुषों की टोली की ओट। सुन्दर शब्द, उच्चकोटि की भाषा, गुरू गंभीर स्वर, संक्षिप्त भजन। महज डेढ़ घंटे की प्रस्तुति में एक महामानव का पूरा जीवन। यह एक सपना ही था जो साकार हुआ नेहरू सांस्कृतिक सदन, सेक्टर-1 के मंच पर। read more
ramkrishna, vivekanandतुलना करना मुश्किल था – शहंशाह संन्यासी कौन – स्वामी विवेकानंद या इस प्रस्तुति के निर्देशक। एक महामानव के जीवन को उसकी सम्पूर्णता में चित्रित करने के लिए डेढ़ घंटा काफी कम मालूम होता है। पर इतने ही वक्त में निर्देशक रामहृदय तिवारी ने स्वामी विवेकानंद का जन्म वृत्तांत, किशोर विवेकानंद के मन में विचारों की उथल पुथल, श्रीरामकृष्ण परमहंस से उनकी पहली मुलाकात, परमहंस को भजन सुनाना, परमहंस का शिष्यत्व ग्रहण करना, परमहंस की शैय्या पर बिछौने के नीचे सिक्का रखकर उनकी परीक्षा लेना, मां काली से वरदान में बार-बार संन्यास और वैराग्य मांगना, परमहंस के रूग्ण शरीर की सेवा, परमहंस का देहत्याग, भारत भ्रमण, छुआछूत के खिलाफ उठ खड़ा होना, विवेकानन्द नामकरण, राजाओं का आतिथ्य, बनारस की नर्तकी के आगे नतमस्तक होना, शिकागो की धर्म महासभा में उद्बोधन, दो साल के विदेश भ्रमण के बाद भारत वापसी और अंत में देहत्याग जैसी विलक्षण और कालजयी घटनाओं को जीवंत कर दिया।
ramhriday tiwari, rawalmal jain mani, rajan maharaj, deepak chandrakarअद्भुत गति के साथ कथानक आगे बढ़ता रहा। प्रत्येक दृश्य के बाद नर्तक नर्तकियां समूह में मंच पर आतीं और यवनिका के रूप में मंच को आच्छादित कर देतीं। पीछे का दृश्य बदल जाता और वे नेपथ्य में चली जातीं। स्वामी विवेकानंद के भजन हों या करुणारस में सिक्त गणिका का ‘प्रभुजी मेरे अवगुण चित्त न धरो..’ गायन, स्वर माधुर्य की दृष्टि से अत्यंत उत्तम था। नेपथ्य से उभरते स्वर कभी स्वामीजी के कन्याकुमारी में समुद्रतट पर खड़े होने का आभास कराते तो कभी एक बेंच मात्र से रेलवे स्टेशन का आभास करा देते। शिकागो की धर्मसभा में जैसे ही स्वामीजी कहते – मेरे अमरीकी भाइयों और बहनों – नेपथ्य से उठती करतल ध्वनि प्रेक्षकों को शिकागो की धर्मसभा का अहसास करा जाती।
ऐसी अद्भुत प्रस्तुति दशकों बाद देखने को मिली। सेक्टर-1 स्थित नेहरू सांस्कृतिक सदन खचाखच भरा हुआ था। डेढ़ घंटे की इस प्रस्तुति के दौरान न किसी का फोन बजा, न कोई उठकर गया और न किसी ने प्रेक्षागृह में प्रवेश किया। प्रेक्षक मंत्रमुग्ध बैठे रहे। उनकी निगाहें मंच पर चस्पा रहीं और कान हर आहट को सुनने के लिए आतुर रहे। नाटक समाप्त होने के बाद कहीं जाकर उनकी तंद्रा भंग हुई और पूरा प्रेक्षागृह करतल ध्वनि से गूंज उठा। लोग अपने अपने स्थान पर खड़े होकर देर तक तालियां बजाते रहे। भावविभोर दर्शक और अतिथि मंच पर जा पहुंचे और लगभग एक घंटे तक इस प्रस्तुति से जुड़े प्रत्येक व्यक्ति को साधुवाद देते रहे।
लोकरंग अर्जुन्दा की इस प्रस्तुति के सभी कलाकार अर्जुन्दा के आसपास के गांव में रहते हैं। इन्हें संजोकर रखा है दीपक चंद्राकर ने जिनका परिवार दो पीढ़ियों से मंच को समर्पित है। इस नाटक को लिखा और निर्देशित किया है पं. हृदयनाथ तिवारी ने।
आरंभ में लोकरंग के प्रमुख दीपक चंद्राकर ने नाटक के लेखक-निर्देशक रामहृदय तिवारी को मानव रत्न सम्मान से विभूषित किया। श्री तिवारी ने अंधेरे के उस पार से लेकर मुर्गीवाला, हम क्यों नहीं गाते, अरण्यगाथा, राजा जिन्दा है जैसे कई हिन्दी नाटकों के अतिरिक्त लोरिक चंदा, कारी, घर कहां है, स्वराज, मैं छत्तीसगढ़ महतारी हूं जैसी कई यादगार लोकमंचीय प्रस्तुतियों का निर्देशन किया है। इस अवसर पर जैन पार्श्वतीर्थ नगपुरा के प्रमुख रावलमल जैन ‘मणि’ करेंगे एवं अभ्युदय संस्थान अछोटी के दार्शनिक संत श्रीराजन महाराज अतिथि के रूप में मौजूद थे।

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