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गणपति के आकार में छिपा है गूढ़ ज्ञान

Sep 9, 2016

raksha-singh-bhilaiडॉ रक्षा सिंह / भारतीय परिवेश में शिक्षकों का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रहा है। प्राचीन गुरूकुल परम्परा में गुरू का स्थान सर्वोच्च था। इस परम्परा में ज्ञान का क्रमश: स्थानांतरण होता था जिसमें वरिष्ठ छात्र शिक्षित होने के पश्चात् कनिष्ठ छात्रों को ज्ञान बांटते थे। आज गुरूकुल परम्परा तो नहीं है लेकिन उसकी विरासत समाज के लिए आज भी महत्वपूर्ण है।  समाज के उत्थान में गुरू की भूमिका अहम् होती है इसलिए गुरू को ब्रम्ह माना गया है। शिक्षक का परम कर्तव्य है कि वह मौलिक शिक्षा प्रदान करने के साथ-साथ अपने शिष्यों में ज्ञान का भी संचार करे जिससे ज्ञान के माध्यम से शिष्य जीवन की कठिनाईयों का सामना निडरतापूर्वक कर सकें।
भगवान गणेश बुद्धि एवं ज्ञान के देवता हैं अत: इस वर्ष गणेश चतुर्थी एवं शिक्षक दिवस एक ही दिन होना अत्यंत प्रासंगिक है।
गणेश जी का हर अंग शिक्षाप्रद है अत: गुरू को चाहिए कि वह गणेश जी के हर अंग से प्राप्त शिक्षा को आत्मसात करें एवं शिष्यों से भी उनका अनुसरण करायें।
1.     मुकुट (पगड़ी)  – मुकुट (पगड़ी) आत्मसम्मान का प्रतीक है। हमें ऐसे कार्य करना चाहिए जिससे हमारा शीश कभी न झुके बल्कि गर्व से सदैव ऊँचा रहे। हमें ऐसा कार्य नहीं करना चाहिए जिससे कष्ट हो एवं जो समाज के विरूद्ध हो।
2.    बड़ा मस्तक – बड़ा मस्तक ज्ञान के अपार भंडार एवं अपार स्मरण शक्ति का द्योतक है। गुरू के पास अथाह ज्ञान होना चाहिए एवं उसे धीर-गंभीर भी होना चाहिए ताकि हर अच्छी बात को समझे एवं बुरी बातों को अलग करें।
3.    बड़े कान – बड़े कान यह दर्शाते हैं कि गुरू को ध्यानपूर्वक बातें सुननी चाहिए ताकि अधिकाधिक विषयों को ग्रहण कर सके। शिष्यों को भी इस बात का अनुसरण करना चाहिए। इसका तात्पर्य यह है कि किसी निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए हर दृष्टिकोण से बातों पर गौर करना चाहिए ताकि निर्णय लेने में आसानी हो एवं ज्ञान भी प्राप्त हो। सूप जैसे कर्ण नकारात्मक बातों को छांटना भी समझाते है।
4.    छोटी आँख – सूक्ष्म दृष्टि एकाग्रचित्त एवं केन्द्रित होकर कार्य करने की शिक्षा देती है तथा यह भी बतलाती है कि अपने से सामने वाले को कभी छोटा नहीं समझना चाहिए। अपने आप में कभी भी अहम् की भावना नहीं होनी चाहिए। हर किसी में कोई न कोई गुण होता है वह सीखने की कोशिश करनी चाहिए।
5.    बड़ी नाक – अपने कार्य को करते वक्त यह ध्यान रखना चाहिए कि समाज पर क्या प्रभाव पड़ेगा। ऐसा कार्य करने की शिक्षा देनी चाहिए जिससे हम नाक ऊँची कर चल सकें। बड़ी नाक संवेदनशीलता तथा आसपास की घटनाओं की ग्राह्यता की प्रतीक है।
6.    छोटा मुँह – छोटा मुँह यह शिक्षा देता है कि हमेशा नापतौलकर बोलना चाहिए। ऐसी ही बातें सामने लानी चाहिए जो समाज एवं व्यक्ति के लिए हितकारी है। मुँह से निकला हुआ शब्द किसी को भी आहत न करें, इसका भी ध्यान होना चाहिए।
7.    एक दँत – एक दँत यह सिखाता है कि समाज के कल्याण के लिए त्याग करने से कभी भी पीछे नहीं हटना चाहिए। जब महाभारत की कथा लिखने के लिए महर्षि वेदव्यास जी को ऐसे आशुलिपिक की आवश्यकता थी जो बिना रूके एवं बिना थके अनवरत लिखता जाए तक गणेश जी ने अपना एक दांत तोड़कर उसका उपयोग लेखनी की तरह किया। यह त्याग उन्होंने समाज के कल्याण एवं उत्थान के लिए किया तथा एक पल के लिए भी अपनी वेदना एवं सुंदरता में कमी के बारे में नहीं सोचा। यह शिक्षा त्याग के लिए प्रेरित करती है।
8.    छोटा पैर – भारी भरकम शरीर का पूरा भार छोटे पैर पर होना यह दर्शाता है कि शिक्षक शिष्यों को प्रेरित करें कि हमेशा बड़े कार्य को करने के लिए छोटी टीम ही उपयोगी होती है। कभी भी इस बात से हतोत्साहित नहीं होना चाहिए कि बड़ा कार्य कम लोग कैसे कर पायेंगे। छोटी टीम ही योजना बनाकर सबको दिशा निर्देश देकर प्रत्येक कार्य सफलतापूर्वक सम्पन्न करवा सकती है।
9.    छोटा वाहन (मूषक) – मूषक दो बातों को सीखने के लिए प्रेरित करता है –
(1) इच्छाएं हमेशा छोटी एवं संयमित होनी चाहिए। ज्यादा इच्छाएं गलत रास्ते चुनने के लिए प्रेरित करती है।
(2) वाहन का चुनाव सहुलियत के अनुसार होना चाहिए ताकि कहीं आने जाने में अवरोधों का प्रभाव कम से कम हो सके। हमें जहां जाना हो वहां सुगमतापूर्वक जा सकें। ऐसा अहम् कि मैं बड़ा हूँ तो छोटी जगह कैसे जाऊँ, यह हितकारी नहीं होता।
10.    लम्बोदर – बड़ा उदर यह दर्शाता है कि हमें अच्छी एवं बुरी दोनों प्रकार की बातें समाहित करना चाहिए। शिक्षक को शिष्यों की दोनों बातें समाहित कर अच्छे कार्य के लिए प्रेरित करना चाहिए। अच्छे कार्य के लिए उत्साहवर्धन करना चाहिए ताकि बुरी बातें पीछे रह जाए और अच्छी बातें सामने आए।
11.    चन्द्रमा – सुन्दरता के घमंड में चन्द्रमा जब भगवान गणेश के आकार को देखकर हंस पड़े तो गणेश जी ने नाराज होकर श्राप दे दिया, परंतु क्षमा मांगने पर क्षमा कर दिया। जो इस बात का प्रतीक है कि दया और क्षमा करने का गुण प्रत्येक मनुष्य में होना चाहिए।
12.    माता-पिता – माता पिता को (पृथ्वी) संसार के समान पूज्य मानते हुए, पिता के     आदेश के अनुसार मां पार्वती एवं पिता शिव की परिक्रमा कर अथाह ज्ञान प्राप्त     किया। माता पिता को संसार गुरू मानना यह शिक्षा देता है कि हमें यह समझना चाहिए कि उनसे ऊपर कुछ नहीं है।
मूल बात यही है कि ज्ञान जहाँ से मिले उसका अर्जन करना चाहिए किन्तु ज्ञान के मद का त्याग करना चाहिए क्योंकि मद सृष्टि के विनाश का कारण बन सकता है।
शिक्षा नैतिकता है जो मनुष्य और समाज का निर्माण करती है। शिक्षा मनुष्यत्व की प्रदात्री है जो मनुष्य को पशुत्व से अलग करती है। विद्यार्थी कोरे कागज के समान होता है जिसपर कोई शिक्षक लेखनी से राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।
स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था – शिक्षा का लक्ष्य मानवीय मूल्यों को उभारना है।
प्राचार्य, श्री शंकराचार्य महाविद्यालय, जुनवानी, भिलाई

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