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चंपारण सत्याग्रह के 100 वर्ष : दुर्ग में याद किये गए गाँधी

Dec 20, 2017

दुर्ग. चंपारण सत्याग्रह का 100 वें वर्ष में गाँधी भवन भोपाल की छत्तीसगढ़ गांधी स्मृति यात्रा के दुर्ग में अंतिम पड़ाव में यात्रा के सहभागी गांधीवादी विचारक आर. के. पालीवाल तथा दयाराम नामदेव का दुर्ग के गांधीवादियों, प्राध्यापकों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों से भावभीना स्वागत किया.इस अवसर पर आयोजित परिचर्चा में गांधीजी के सानिध्य में 3 वर्षो तक वर्धा आश्रम में रहीं 100 वर्षीय सुभद्रा बाई चौबे का संस्मरण सुने गए और उनका सम्मान किया गया।दुर्ग. चंपारण सत्याग्रह के 100 वें वर्ष में गाँधी भवन भोपाल की छत्तीसगढ़ गांधी स्मृति यात्रा के दुर्ग में अंतिम पड़ाव में यात्रा के सहभागी गांधीवादी विचारक आर. के. पालीवाल तथा दयाराम नामदेव का दुर्ग के गांधीवादियों, प्राध्यापकों, साहित्यकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं व पत्रकारों से भावभीना स्वागत किया.इस अवसर पर आयोजित परिचर्चा में गांधीजी के सानिध्य में 3 वर्षो तक वर्धा आश्रम में रहीं 100 वर्षीय सुभद्रा बाई चौबे का संस्मरण सुने गए और उनका सम्मान किया गया।मध्यप्रदेश के प्रिंसिपल इनकम टैक्स कमिश्नर, साहित्यकार  व गांधीवादी विचारक आर. के. पालीवाल ने गांधी स्मृति यात्रा के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए बतलाया कि चंपारण सत्याग्रह के दौरान गांधीजी पुराने मध्यप्रदेश के 34 शहरो-ग्रामों  जिनमे छत्तीसगढ़ के कंदेल (धमतरी), रायपुर, बिलासपुर व दुर्ग शामिल हैं, स्वतंत्रता आन्दोलन के लिए जन जागरण हेतु आये थे, इन स्थानों में गांधी जी व उनके विचारों की स्मृति करना इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य है। उन्होंने कहा, “गाँधी अब विस्मृत हो रहे हैं, उनके विचार अब पुस्तकों तक सीमित हो गए है, नई पीढ़ी को गांधी का समग्र परिचय करने के प्रयास नही हो रहे हैं, गांधी के विचारों को व्यवहार में लाकर उन्हें मूर्त रूप देने में वर्तनान पीढ़ी असफल रही है।” गांधी भवन न्यास के सचिव व विनोबा के सहयोगी रहे दयाराम नामदेव ने सामाजिक जीवन मे गांधी की अनुपस्थिति को चिंताजनक बतलाते हुए कहा, “गाँधी को भूलने का खामियाजा भारत को अभी से भुगतना पढ रहा है, राम राज्य की अवधारणा से दूर पानी, जंगलों, पहाड़ों व ग्रामों पर कार्पोरेट का कब्ज़ा हो रहा है. ग्राम्य विकास की गांधी अवधारणा के अनुरूप ग्रामों के विकास से ही हर  ग्रामीण को विसंगतिमुक्त स्वाभिमान सुनिश्चित करने वाली सामाजिक-आर्थिक  व्यवस्था मिल सकती है।”

स्वाधीनता आंदोलन में सहभागी रहीं श्रीमती सुभद्रा बाई चौबे ने अपने 3 वर्ष के वर्धा आश्रम के संस्मरण सुनाए। उन्होंने स्वतंत्रता आन्दोलन में उनके पति स्वर्गीय कुन्ज बिहारी दुबे व उनकी सहभागिता के किस्से सुनकर सबको अचंभित किया.
साहित्कार विनोद साव ने हरिजन बस्ती में बेत्रल स्कूल में गांधी जी रात्रि विश्राम का किसा सुनाया. अरुण कसार ने स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जमना प्रसाद कसार द्वार लिखित पुस्तक ‘स्वाधीनता के सिपाहीÓ के उस अंश को पढ़ कर सुनाया, जिसमे गांधीजी के दुर्ग प्रवास का विवरण है. रवि श्रीवास्तव ने गांधी जी के राजिम प्रवास के दौरान हरिजन कोष के शुरुआत होने की चर्चा की., गुलबीर सिंह भाटिया ने गांधी जी के दुर्ग प्रवास से जुड़े प्रसंगों की चर्चा की। स्वतंत्रता संगम सेनानी उतर्धिकारी संघ के अध्यक्ष अशोक ताम्रकार ने गांधी जी के द्वारा उनके पिता श्री उदय प्रसाद ताम्रकर को लिखे गए पत्र का पाठ किया। राजनीती विगन के विशेषज्ञ डॉ डी एन सूर्यवंशी ने बस्तर के आदिवासियों में गांधी वाद के असर पर प्रकाश डाला. समाजशास्त्री डॉ जी पी शर्मा ने स्कूलों व महाविद्यालयों से गांधी साहित्य व अध्ययन की अनुपस्थिति पर दु:ख व्यक्त किया. साहित्यकार शरद कोकस ने स्कूली विद्यार्थियों में गांधी दर्शन को प्रोत्साहित की आवश्यकता बतलाते हुए इस हेतु कई सुझाव दिए. डॉ एम एस द्विवेदी ने गांधी की वर्तमान समय मे प्रासिंगकता पर केन्दित विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम के संयोजक व शिक्षाविद  डॉ डी एन शर्मा ने परिचर्चा का संचालन करते हुए कहा कि दुर्ग के जागरूक बुद्धिजीवी व सामाजिक कार्यकर्ता गांधी की स्मृति बनाये रखने के लिए गांधी की 150 वीं जयंती वर्ष में विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन का प्रयास करेंगे. सामाजिक कार्यकर्ता प्रीति अजय बेहरा ने श्रीमती सुभद्रा बाई चौबे का परिचय देते हुए गांधी जयंती को मनाये जाने के बदले संस्थाओं में छुट्टी मानाने की परम्परा को गलत बतलाया. नीलेश चौबे, दीपक चौबे, रमेश तिवारी, रुद्रनारायण सिन्हा, रघु पण्डा ने भी अपने विचार रखे।

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