जगदलपुर। बस्तर के चोकावाड़ा के वैद्यराज सुंदर सेना मुंह से सांप का जहर खींचकर पिछले 15 साल में 167 लोगों को नहीं जिंदगी दे चुके हैं। विष पुरुष के रूप में उनकी पूरे बस्तर में पहचान है। वे नि:शुल्क इलाज करते हैं।छत्तीसगढ़ और ओडिशा राज्य की सीमा पर स्थित ग्राम धनपुंजी में वन विभाग द्वारा स्थापित वन औषधालय में सुंदर सेना वर्ष 2002 से वैद्यराज के पद पर कार्यरत हैं। उन्हें 3000 रुपए मानदेय मिलता है। बस्तर के वनौषधियों की उन्हें अच्छी जानकारी है। यह हुनर उन्हें अपने गुरु मानसाय से मिला था। सर्दी-खांसी से लेकर कुष्ठ जैसी बीमारियों का इलाज वे वनौषधियों से करते हैं। सुंदर बताते हैं कि जब वे 15-20 साल के थे, तब से गुरु के आदेश पर कुछ ऐसी कड़वी वनौषधियों का नियमित सेवन करते रहे हैं जिसके चलते अब उन पर किसी भी सर्प के विष का असर नहीं होता। वे पिछले 25 साल से सपर्दंश पीड़ितों को नई जिंदगी दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि सपर्दंश में सबसे पहले डसे गए अंग के ठीक ऊपरी हिस्से को कसकर बांध दें। फिर पीड़ित को इलाज के लिए कहीं भी ले जाएं।
सुंदर बताते हैं कि सबसे पहले सर्प द्वारा डसे गए स्थान को गर्म पानी से धोते हैं, फिर लगातार मुंह से जहर चूसकर बाहर थूकते जाते हैं। इसके बाद वे मरीज को सिर्फ आराम करने की सलाह देते हैं। किसी प्रकार की दवा नहीं देते। इस सेवा के बदले में वे कोई शुल्क भी नहीं लेते। उन्होंने बताया कि उनके पास अन्य प्रांतों से भी पीड़ितों को लाया जाता है।
167 का निकाला जहर
सुंदर ने बताया कि वर्ष 2002 से 15 नवंबर 2017 तक वे 167 सपर्दंश पीड़ितों के शरीर से जहर निकाल चुके हैं। ऐसे पीड़ितों के नाम वन औषधालय के रजिस्टर में बाकायदा दर्ज भी हैं। उनके लिए यह संतोषजनक बात है कि उनके पास लाए गए किसी भी सपर्दंश पीड़ित की मौत जहर के कारण नहीं हुई। सांप का जहर चूसने के कारण ही लोग उन्हें बिस मनुक (विष पुरुष) कहने लगे हैं। उन्होंने बताया कि कई बार बेहोशी के कारण परिजन पीड़ित को नहीं ला पाते, ऐसे में लोग उन्हें पीड़ित तक ले जाते हैं।
क्या कहते हैं डॉक्टर
आमतौर पर 70 प्रतिशत सांप विषहीन होते हैं। 30 फीसदी सांप ही जहरीले होते हैं। अगर डसने के दिनों में सांप की ग्रंथी में जहर नहीं है, तो पीड़ित की मौत नहीं होती। सपर्दंश से पीड़ित 90 प्रतिशत लोग तो दहशत की वजह से मरते हैं।
– डॉ. देवेन्द्र नाग, सीएचएमओ जिला बस्तर