भिलाई। परम् पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने आज कहा कि काल की प्रतीक्षा की घडिय़ों को कम नहीं किया जा सकता। इसपर हमारा जोर नहीं चलता। इसलिए बेहतर है कि अपने जीवनकाल को अच्छे कार्यों में लगाएं और मनुष्य के लिए निर्धारित कर्तव्यों का पालन सुनिश्चित करें। संत शिरोमणि यहां रूआबांधा स्थित श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में पूजा अचर्ना के बाद भक्तों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि प्रतीक्षा करना किसी को अच्छा नहीं लगता। प्रतीक्षा की घडिय़ां जैसे जैसे बीतने लगती हैं, भारी होने लगती हैं। कुछ दिन कुछ मास की प्रतीक्षा जब घंटों और मिनटों की हो जाती है तो एक एक पल भारी पडऩे लगता है। इसी तरह जीवन का अंत भी निश्चित है। जैसे जैसे अंत करीब आता है, लोगों के मन में छटपटाहट बढऩे लगती है। भगवान की भक्ति में लीन होकर इसे कम किया जा सकता है। सदकार्यों में लिप्त होकर अपने जीवन को श्रेष्ठ बनाया जा सकता है।
आचार्यश्री ने कहा कि यात्रा में भी प्रतीक्षा करनी होती है। कभी वाहन की तो कभी गंतव्य पर पहुंचने की। जो लोग सक्षम होते हैं वे किसी वाहन की प्रतीक्षा नहीं करते बल्कि अपने वाहन से चल पड़ते हैं। लोग बेहतर वाहनों का उपयोग कर अपने गंतव्य तक पहुंचने के समय को कम करने में सफल भी होते हैं। पर काल के साथ ऐसा नहीं किया जा सकता। वह अपने समय पर ही आता है। इन घड़िय़ों को न कम किया जा सकता है और न बढ़ाया जा सकता है।
शिक्षा दान हमारा कत्र्तव्य : मुनिश्री ने कहा कि समाज में मोटे ताजे लोगों की कमी नहीं है। अच्छे कार्यों को समर्थ दानदाता मिल ही जाते हैं। उन्होंने चंद्रपुर में स्थापित स्कूल की चर्चा करते हुए कहा कि जब यह हिन्दी स्कूल स्थापित किया गया तो लोगों के मन में संशय था। पर आज देश के कोने कोने से लोग यहां अपनी कन्याओं को दान करने के लिए पहुंचते हैं। यहां प्रवेश के लिए कतारें लग जाती हैं। कभी किसी चीज का अभाव महसूस नहीं हुआ। शिक्षा दान समाज का कत्र्तव्य है, हम क्यों मांगें।
एक गढ़ हो जाएगा प्रदेश : आचार्यश्री ने भिलाई की बसाहट की तारीफ करते हुए कहा कि पेड़ पौधों की प्रचुरता लिए भिलाई बहुत सुन्दर है। जैसे जैसे हरियाली बढ़ती जाती है, तापमान कम होता जाता है। यह सकारात्मक है। उन्होंने कहा कि भिलाई में देश के कोने कोने से आकर लोगों ने अपना अपना काम प्रारंभ किया और एक सपने को साकार किया। एक भक्त ने जैसे ही भिलाई को मिनी इंडिया कहा तो आचार्यश्री ने उन्हें टोक दिया। उन्होंने कहा – इंडिया नहीं। हम यही कहेंगे कि सम्पूर्ण भारत वर्ष के लोगों का यहां वास है। उन्होंने कहा कि रायपुर की पट्टी खत्म होते होते भिलाई की पट्टी शुरू हो जाती है। भिलाई खत्म होते होते दुर्ग और दुर्ग खत्म होते ही राजनांदगांव की पट्टी शुरू हो जाती है। जगदलपुर वाले कहते हैं कि थोड़े दिनों में हम भी रायपुर के करीब तक आ जाएंगे। इस तरह से पूरा छत्तीसगढ़ एक गढ़ हो जाएगा।
समय को दी मात : पारसनाथ दिगम्बर जैन समिति रूआबांधा की प्रशंसा करते हुए उन्होंने कहा कि जब यह चैत्य बना तो छोटा सा था। पर यहां के समर्पित भक्तों ने इसे बहुत विशाल स्वरूप दे दिया। निर्माण कार्य समय से पूर्व पूरा कर यहां के लोगों ने समय को भी मात दे दी है।
दान सिर्फ सुपात्र को : आचार्यश्री ने कहा कि दान केवल सुपात्र को ही दिया जाना चाहिए। आप अच्छा काम करें तो दान दाताओं की कमी नहीं होगी। यहां भी हिन्दी स्कूल खोलें। न बच्चों की कमी होगी और न ही दानदाताओं की। शिक्षा का अर्थ केवल अक्षर ज्ञान कराना नहीं है। शिक्षा एक संकेत है जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण मनुष्य का निर्माण करना होना चाहिए।
वानप्रस्थ का करें उपाय : आचार्यश्री ने पारसनाथ दिगम्बर जैन समिति से कहा कि आपाधापी के जीवन से जब अवसर प्राप्त करने का समय आए तो लोगों को ऐसे स्थान पर चले जाना चाहिए जहां भक्ति और स्वाध्याय में स्वयं को लगा सकें। ऐसे स्थलों का निर्माण भी आवश्यक है।
हर जगह है बुंदेलखण्ड : आचार्यश्री ने कहा कि वे जहां भी जाते हैं वहां बुंदेलखण्ड को पाते हैं। जबलपुर जाएं, रायपुर जाएं, भिलाई आएं या जगदलपुर, नागपुर जाएं, हर जगह बुंदेलखण्डी लोग मिल जाते हैं। लगता है जैसे जैसे भारत का विस्ता हो रहा है वैसे वैसे बुंदेलखण्ड भी फैल रहा है।