भिलाई। रूआबांधा स्थित श्री पारसनाथ दिगम्बर जैन मंदिर में भक्तों को संबोधित करते हुए परम् पूज्य संत शिरोमणि आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने भिलाई के वातावरण की प्रशंसा करते हुए कहा कि इस क्षेत्र में भीषण गर्मी में भी ताप का अहसास नहीं होता क्योंकि यहां बड़े पैमाने पर वृक्ष लगाए गए हैं। इसी तरह लोगों को अपने भीतर भी प्रेम का पौधा लगाना चाहिए तथा उसका पालन पोषण करना चाहिए। इससे संकट और शोक के क्षणों में भी मन शांत बना रहेगा।आचार्यश्री ने कहा कि सांसारिक रास्तों पर आप कितना भी भागें कहीं नहीं पहुंचेंगे। कितने भी वेग से आप कहीं भी जाएं, लौटकर फिर वहीं आएंगे जहां से शुरू हुए थे। इसके विपरीत मोक्ष का मार्ग एक दम सीधा और सरल है। यह मार्ग छोटा भी है। भक्ति में लीन हो जाओ तो मोक्ष मिल जाएगा।
आचार्यश्री ने कहा कि तेज गति से चलने के लिए मनुष्य ने बहुत सारे आविष्कार किए। गाडिय़ों में बैठकर, हवा में उड़कर लोग तेजी से अपने गंतव्य की ओर चलते हैं और पहुंचते भी हैं। पर क्या वहीं उनका गंतव्य है? यदि वही गंतव्य होता तो लौटकर क्यों गर को आना होता? यह तो सांसारिक रास्ते हैं। सांसारिक रास्ते एक भूलभुलैया की तरह हैं। इसमें आप कितने भी वेग से यात्रा करो, घूम फिर कर वहीं लौटना होता है।
आचार्यश्री ने कहा कि मोक्ष का मार्ग सीधा और सरल है। बिना किसी स्वार्थ के भक्ति करनी है। स्वयं को भगवान के हाथों में सौंप देना है। जो कुछ भी हम कर रहे हैं या करने की सोच रहे हैं, उसे भगवान की इच्छा मानकर कत्र्तव्य की तरह पूरा करें। नफा नुकसान से खुद को परे रखें। इससे कषाय की हानि होगी और जीवन सुन्दर हो जाएगा।
कहानी और कथा
आचार्यश्री ने कहा कि दादा दादी कहानी सुनाते हैं। इन कहानियों में सबकुछ अच्छा अच्छा होता है। सबका अच्छा होता है। सुनकर सुकून मिलता है। कहानी शब्द की उत्पत्ति भी कह-नी से हुई है। जब यही कहानी किसी विशेष उद्देश्य को लेकर कही जाए, जिसमें जीवन जीने की कला सिखाई जाए तो वह कथा हो जाती है। कथा हमें जीवन जीने की राह दिखाती है। यह केवल मनोरंजन के लिए नहीं है।
तृष्णा कैसे मिटेगी
आचार्य श्री 108 विद्यासागर जी महाराज ने आज तृष्णा की भी चर्चा की। उन्होंने कहा कि मनुष्य के मन में तरह तरह की तृष्णा समय समय पर जागृत होती है। मनुष्य इन तृष्णाओं के पीछे भागने लगता है। इन्हें पूरा करने, इन्हें मूर्त रूप देने का प्रयास करता है। पर एक तृष्णा को पूरी कर लो तो दूसरी आकर खड़ी हो जाती है। यह एक अंतहीन सिलसिला है जिससे निकलना आसान नहीं है।
उन्होंने बताया कि तृष्णा मिटाने का एक ही तरीका है कि हम पीछे देखें और इतिहास को टटोलें। हमारे पूर्वजों और मनीषियों ने समय समय पर इसकी सुन्दर व्याख्या की है। उसका स्मरण करने से हमें अपने स्वभाव का शोधन करने का अवसर मिलेगा और कर्मों को कत्र्तव्य बोध के साथ करने की प्रेरणा मिलेगी। इससे तृष्णा मिट जाएगी।
आने दो और जाने दो
आचार्य भगवन ने कहा कि हम सबका जीवन इन दो भावों के साथ चलता है। एक भाव कहता है ‘आने दो, और आने दोÓ। दूसरा भाव कहता है, ‘जाने दो-और जाने दोÓ। यदि दोनों के बीच संतुलन बना रहा तो जीवन की गाड़ी आराम से चलती है। पर यदि सिर्फ ‘आने दो, आने दोÓ का भाव रहेगा तो यह सिलसिला ज्यादा नहीं चलने वाला। बेहतर हो कि हम जीवन में ‘जाने दोÓ वाले भाव को बढ़ाएं।
चुटकी लेते हुए आचार्यश्री ने कहा कि एक पिता अपने पुत्र से हमेशा कहता कि बड़े हो जाओ तब अपने मन की कर लेना। वह उसे धन नहीं देता। एक दिन पुत्र नाराज हो गया। उसने कहा कि ठीक है। आपका धन आपका ही रहेगा। जब आपका अंत होगा तो तिजोरी आपकी छाती पर रख देंगे। साथ ले जाना।
इनका रहा योगदान
ब्रह्मचारी सुनील भैय्या जी ने पूजा व्यवस्था का संचालन किया। आयोजन में श्री पारसनाथ दिगंबर जैन सेवा समिति के अध्यक्ष भूपेन्द्र जैन, वरिष्ठ उपाध्यक्ष राजेश जैन, महामंत्री राजीव जैन, उपाध्यक्ष पवन जैन, उपाध्यक्ष अजित जैन, कोषाध्यक्ष राहुल जैन, उपकोषाध्यक्ष ललित जैन एवं मंत्री अशोक जैन, राजेश जैन, राकेश जैन, शरद जैन, प्रमोद जैन, राजू जैन सहित समस्त सकल जैन समाज के लोगों ने योगदान किया। पूजा अर्चना में भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं।