दुर्ग। शासकीय डॉ. वा.वा. पाटणकर कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय में हिन्दी विभाग के तत्वाधान में ‘भारतीय साहित्य में आज के भारत का बिम्ब’ विषय पर विशेष व्याख्यान आयोजित किया गया। मुख्य वक्ता शासकीय दानवीर तुलाराम स्नातकोत्तर महाविद्यालय, उतई के प्रो. सियाराम शर्मा थे। उन्होंने अपनी बात तमिल के प्रसिद्ध कवि सुब्रमण्यम भारती के कथन से प्रारंभ करते हुए कहा कि भारत का चेहरा लगभग 18 भाषाओं का है पर शरीर एक ही है। इनकी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉ. शर्मा ने जोड़ा कि सबकी आत्मा भारतीयता ही है। मलयालम के कवि बल्लतोल ने भारतीयता को आत्मगौरव के रूप में रेखांकित किया। भारत के बिम्ब के आदि स्वप्नदर्शियों में कालिदास के मेघदूतम् से लेकर बंकिम चन्द्र के वन्दे मातरम् तक भारत के विराट बिम्ब को डॉ. शर्मा ने समझाया। उन्होंने बताया कि दुनिया का महान साहित्य जनता का और जनता की दृष्टि से लिखा हुआ साहित्य है। उन्होंने हिन्दी साहित्य के भारतेन्दु, उड़ीसा के सीताकान्त महापात्रा, फकीर मोहन सेनापति, बांग्ला के वंद्योपाध्याय कृत पथेर पंचाली, हिन्दुस्तानी के अल्लामा इकबाल, फैज अहमद फैज, मैथिलीशरण गुप्त का भारत-भारती के द्वारा भारत के छवि को सामने रखा। जिसमें भारत के स्वप्न के साथ-साथ कटु-यथार्थ का चित्रण किया गया है। आज के परिदृश्य पर रोशनी डालते हुए उन्होनें रणेन्द्र के ग्लोबल गाँव के देवता और वीरेन उंगवाक के ‘ये हमने कैसा समाज रच डाला’ के माध्यम से भूमंडलीकरण तथा नवउपनिवेषवाद की चुनौतियों को विस्तारपूर्वक समझाया।
महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ. सुशील चन्द्र तिवारी ने कहा कि हमारे देश की विविधतापूर्ण संस्कृति को भारतीय साहित्य समग्रता में प्रतिबिम्बित करती है। साहित्य के मूल में सबके हित और सहित की भावना मुख्य है। कार्यक्रम के संचालक डॉ. अम्बरीश त्रिपाठी ने आज के भारतीय साहित्य के समक्ष खड़ी चुनौतियों को सामने रखा। शोध छात्रा विजिया पटेल तथा एमए की छात्रायें कु. लकेश्वरी एवं दिपिका ने महत्वपूर्ण प्रश्नों को पूछकर इस संवाद को सार्थकता दी। हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. यशेश्वरी धु्रव ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ. ज्योति भरणे सहित स्नातकोत्तर की छात्रायें उपस्थित थी।