नई दिल्ली। प्रसिद्ध छाती रोग विशेषज्ञ एवं ऑल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेस (एम्स) नई दिल्ली के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा है कि आक्सीजन एवं रेमडेसिविर या अन्य स्टेरॉयड्स की आवश्यकता सभी मरीजों को नहीं होती। रेमडेसिविर का अंधाधुंध प्रयोग कोई लाभ पहुंचाने के बजाय जानलेवा साबित हो सकता है। उन्होंने कहा कि कोरोना के 85 से 90% मरीज घर पर रहकर ठीक हो सकते हैं।
डॉ गुलेरिया ने बताया कि कोरोना के 85 फीसदी मरीजों का इलाज घर पर ही आराम से किया जा सकता है। ऑक्सीजन सैचुरेशन को ठीक रखने के लिए सांस के व्यायायाम, पेट के बल लेटना जैसे उपाय किये जा सकते हैं। अधिकांश मरीजों को आइवरमेक्टिन या फैवीपिराविर जैसी किसी भी दवा की जरूरत नहीं होती।
रिपब्लिक वर्ल्ड को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने बताया कि 85 से 90% मरीजों को आक्सीजन की जरूरत ही नहीं होती। ऑक्सीजन सैचुरेशन थोड़ा भी कम होते ही लोग आतंकित हो रहे हैं और अस्पतालों की ओर दौड़ रहे हैं। कुछ लोगों ने ऑक्सीजन सिलिण्डरों की जमाखोरी तक शुरू कर दी है। थोड़े समय के लिए ऑक्सीजन लेवल का ऊपर नीचे होना स्वाभाविक है। घबराएं नहीं और अपने चिकित्सक की सलाह का पालन करें। लंबे समय तक सैचुरेशन कम रहने पर ही आपको अस्पताल में दाखिल होने या ऑक्सीजन सपोर्ट की जरूरत पड़ सकती है।
रेमडेसिविर के उपयोग को लेकर सावधान करते हुए उन्होंने बताया कि सबसे पहली बात तो यह गांठ बांध लेनी चाहिए कि इसकी जरूरत सभी मरीजों को नहीं होती। कोविड के केवल 15% मरीजों को ही इसकी जरूरत होती है। इस इंजेक्शन को लगाने में समय की अहम भूमिका है। जरूरत से पहले लगाया गया रेमडेसिविर का इंजेक्शन रोगी को लाभ कम और हानि ज्यादा पहुंचा सकता है। और अगर देर हो गई तो यह इंजेक्शन किसी काम का नहीं रहता।
मास्क के उपयोग पर उन्होंने कहा कि केवल बाहर निकलते वक्त ही नहीं बल्कि इसका उपयोग हर उस स्थान पर किया जाना चाहिए जहां खुली हवा नहीं है। यह आपका दफ्तर भी हो सकता है, और कैन्टीन या कांफ्रेन्स रूम भी।