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म्यूकॉर के 50 फीसद रोगियों की जान को खतरा – डॉ पल्लवी

Jun 9, 2021
Mucormycosis on the way to become a pandemic

दुर्ग। म्यूकॉर माइकोसिस के 50 फीसद से ज्यादा रोगियों को जान का जोखिम होता है। यह फंगस संक्रमण महामारी बनने की राह पर अग्रसर है। देश में अब तक म्यूकॉर संक्रमण के 28252 मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से 86 फीसद लोग कोविड संक्रमण से ठीक होकर घर लौटे थे जबकि 62.3 फीसद मरीजों को पहले से डायबिटीज की शिकायत थी। रोग को पहचानने में हुई देरी ही मौतों का सबसे बड़ा कारण थी।उक्त जानकारी चिरायु हॉस्पिटल रीवा की निदेशक डॉ पल्लवी श्रीवास्तव ने आज हेमचंद यादव विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित ऑनलाइन हेल्थ टॉक “मीट द डॉक्टर” में साझा किया। आयोजन का आज चौथा दिन था। कुलपति डॉ अरुणा पल्टा के सुझाव पर आयोजित इस व्याख्यान श्रृंखला को अच्छा प्रतिसाद मिल रहा है। प्रतिदिन 350 से अधिक प्रतिभागी जहां सीधे इस व्याख्यान से जुड़ रहे हैं वहीं बड़ी संख्या में लोग इसे यूट्यूब पर लाइव देख रहे हैं।
फंगस विशेषज्ञ डॉ पल्लवी ने कहा कि छत्तीसगढ़ में अब तक म्यूकॉर के 100 से ज्यादा मामले सामने आ चुके हैं। इनमें से सर्वाधिक 18 मामले दुर्ग जिले से सामने आए हैं। उन्होंने बताया कि कोविड तो पूरी दुनिया में है पर म्यूकॉर के मामले केवल भारत में ही देखने में आ रहे हैं। इसका एक बड़ा कारण भारत में मधुमेह पीड़ितों की भयावह होती संख्या भी है।
म्यूकॉर के कारणों को स्पष्ट करते हुए उन्होंने कहा कि म्यूकॉर कोई नया फंगस नहीं है। पर आम तौर पर यह मनुष्यों को संक्रमित नहीं करता। कोविड ट्रीटमेंट लंबा चलने पर रोगी की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत कम हो गई जो इस संक्रमण का एक प्रमुख कारण है। इसके अलावा बड़ी संख्या में लोगों ने घर पर या अनौपचारिक कोविड केन्द्रों में ऑक्सीजन सिलिंडर का उपयोग किया तथा ह्यूमिडिफायर में डाले गए पानी की शुद्धता का ध्यान नहीं रखा। भारत को वैसे भी विश्व का डायबिटीज कैपिटल कहा जाता है। स्टेरॉयड्स के उपयोग के बाद उन लोगों का भी ब्लड शुगर बढ़ गया जिन्हें डायबिटीज नहीं था। यह भी म्यूकॉर संक्रमण का एक बड़ा कारण था।
डॉ पल्लवी श्रीवास्तव ने बताया कि म्यूकॉर की ठीक-ठीक पहचान काफी कठिन है। इसलिए आरंभिक दौर में लापरवाही हुई पर अब इसे आसानी से नियंत्रित किया जाने लगा है। चूंकि यह संक्रमण तेजी से फैलता है इसलिए जल्द से जल्द इसका पकड़ में आना जरूरी है। उन्होंने बताया कि नाक भरा-भरा सा लगना, नाक के पीछे, सीने में या सिर में दर्द होना इसके आरंभिक लक्षण हैं। इसके साथ ही चेहरे के एक भाग में सूजन हो सकती है। नाक से यदि काले या लाल रंग का पानी आए तो यह म्यूकॉर की पुष्टि कर देता है। पर इनमें से एक भी लक्षण दिखाई देने पर तत्काल उपयुक्त चिकित्सक से सम्पर्क करना चाहिए।
उन्होंने बताया कि म्यूकॉर बासी ब्रेड, गीले जूतों, प्याज पर आम पाया जाने वाला फंगस है। आमतौर पर यह पहले नाक को संक्रमित करता है। यहां से ऊपर की ओर जाने पर यह आंख व दिमाग को अपनी चपेट में ले सकता है जबकि नीचे की ओर आने पर सबसे पहले मुंह को अपनी चपेट में लेता है। इसका असर तालू में, मसूढ़ों में देखा जा सकता है। उपचार में विलंब होने पर जबड़ों को काट कर हटाना पड़ सकता है। अतः सावधानी बरतना बेहद जरूरी है।
म्यूकॉर से बचाव के उपायों की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि डायबिटीज को नियंत्रण में रखना, घर पर ऑक्सीजन लेते समय ह्यूमिडिफायर में स्वच्छ पानी का उपयोग करना, दिन में दो बार ब्रश करना, एक बार माउथवॉश का उपयोग करना तथा निजी स्वच्छता का ध्यान रखना जरूरी है। कोई भी संदिग्ध लक्षण दिखाई देने पर तत्काल चिकित्सक की राय लेना जरूरी है।
कुलपति डॉ अरुणा पल्टा ने हेमचंद यादव विश्वविद्यालय की इस पहल को समर्थन देने के लिए व्याख्यान श्रृंखला को अपना समय देने वाले विशेषज्ञ चिकित्सकों के प्रति धन्यवाद ज्ञापन किया। उन्होंने कहा कि चिकित्सकों के इस समर्थन के कारण लोगों को घर बैठे ही अनेक प्रश्नों के जवाब आसानी से मिल गए। आरंभ में डॉ पल्लवी का परिचय हेमचंद विश्वविद्यालय के अधिष्ठाता छात्र कल्याण डॉ प्रशांत श्रीवास्तव ने दिया।

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