भिलाई। अपनी बौद्धिक संपदा को पहचानें तथा उसकी सुरक्षा करें। आधुनिक दुनिया में यही सबसे बड़ी पूंजी है। बौद्धिक संपदा की सुरक्षा के लिए कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेंट, डोमेन नेम, जैसे तरीकों का उपयोग किया जाता है। उक्त बातें ग्राफिक एरा हिल यूनिवर्सिटी, उत्तराखण्ड के फार्मेसी विभाग के अध्यक्ष प्रो. हिमांशु जोशी ने आज कही। वे एमजे कालेज द्वारा बौद्धिक संपदा पर आयोजित राष्ट्रीय वेबीनार को संबोधित कर रहे थे।
प्रो. जोशी ने कहा कि रचनात्मक प्रतिभा से उत्पन्न प्रत्येक वस्तु बौद्धिक संपदा है। ये विचार भी हो सकते हैं और सामान भी। इसकी कीमत आंकी जा सकती है। यह कविता, गीत, कहानी, उपन्यास, चित्रकारी, खोज, नवाचार, इंडस्ट्रियल डिजाइन, प्रोसेस, कुछ भी हो सकता है। व्यावसायिक उपयोग की केवल यही शर्त होती है कि उसे खरीदा, बेचा, लीज पर या किराए पर दिया जा सकता हो। उसके स्वामित्व का हस्तांतरण किया जा सकता हो।
विभिन्न सरल उदाहरणों के द्वारा अपनी बात को स्पष्ट करते हुए उन्होंने समय के साथ बदल रही ताकत की परिभाषा को रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि कभी जमीन, सोना या धन ही सबसे बड़ी संपत्ति होती थी। शारीरिक बल भी कभी ताकत होती थी। पर आज की दुनिया के सफल लोगों में डॉ एपीजे अब्दुल कलाम, सुन्दर पिच्चई, बिल गेट्स जैसे लोगों के नाम आते हैं। इन्होंने अपनी बुद्धि से मुकाम हासिल किए।
महाविद्यालय की निदेशक डॉ श्रीलेखा विरुलकर की प्रेरणा से आयोजित इस वेबिनार के आरंभ में प्राचार्य ने अतिथि वक्ता का परचिय दिया। ऑनलाइन आयोजित इस कार्यक्रम में सभी विभागों के अध्यक्ष, सहायक प्राध्यापक एवं विद्यार्थी बड़ी संख्या में उपस्थित रहे। प्रतिभागियों ने अनेक सवाल पूछकर अपनी जिज्ञासा को शांत किया।
वेबिनार के अंत में धन्यवाद ज्ञापन करते हुए प्राचार्य ने कहा कि भारत शोध के मामले में काफी आगे है पर अपनी बौद्धिक संपदा को सुरक्षित करने को लेकर वे उदासीन हैं। उन्होंने सभी शोध विद्यार्थियों से आग्रह किया कि अपने मौलिक कार्यों को पंजीयन के द्वारा सुरक्षित करें। भावी जीवन के लिए यह उनकी सबसे बड़ी पूंजी हो सकती है। कार्यक्रम का संचालन प्रतीक्षा फुलझेले ने किया।