भिलाई। स्वामी श्री स्वरूपानंद सरस्वती महाविद्यालय के बायोटेक एवं आईक्यूएसी द्वारा एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन ‘अजोला – एक उपयोगी बायोफर्टिलाईजर’ के रुप में उपयोग’ विषय पर किया गया। कार्यशाला में अजोला के उत्पादन की विधि को विस्तार पूर्वक समझाया गया। यह एक बेहद उपयोगी पशु आहार है।कार्यक्रम प्रभारी शिरिन अनवर सहायक प्राध्यापक बायोटेक ने बताया कि किस तरह कम संसाधनो से अजोला बायोफर्टिलाईजर का उत्पादन किया जा सकता है। अजोला दिखने में छोटा है परंतु यह बहुत उपयोगी है। इसका उपयोग दवाई की तरह, जल को स्वच्छ करने हेतु किया जा सकता है। यह एक सस्ता सुपाच्य एवं पौष्टिक पशु आहार है। अजोला वातावरण को कार्बन स्त्रोत से शुध्द करता है। इसमें आवश्यक विटामिन, अमीनो एसिड एवं खनिज लवण जैसे कैल्शियम, फासफोरस ,पोटेशियम, मैग्निशियम प्रचुर मात्रा में पाये जाते है। जैविक खाद के अलावा अजोला विभिन्न प्रकार से उपयोगी है जैसे पशुओ एवं मुर्गी पालन में इसका उपयोग किया जाता है।
महाविद्यालय के सीओओ डॉ. दीपक शर्मा ने कहा हमें कोविड-19 महामारी के कारण पौधे की आवश्यकता व महत्व का अहसास हुआ है हमे ऐसे कार्यक्रमों की आवश्यकता है।
महाविद्यालय की प्राचार्य डॉ. हंसा शुक्ला ने बायोटेक एवं आईक्यूएसी को कार्यशाला के सफल आयोजन व कार्यशाला के लिए सही विषय चुनाव करने पर बधाई देते हुए कहा अजोला बायाफर्टिलाईजर का महाविद्यालय परिसर में उत्पादन हेतु व्यवस्था की जायेगी व इसका उपयोग महाविद्यालय परिसर के पौधों पर अवश्य किया जायेगा।
कार्यशाला में मुख्य वक्ता डॉ. प्रदीप कगाने ने सभी विद्यार्थियोंए शिक्षकों को अजोला का महत्व बताया। अपने तीस वर्षो के शोध कार्य का अनुभव साझा किया व अजोला बायोफर्टिलाईजर बनाने की विधि बताई। उन्होंने बताया कि अजोला को विकसित करने हेतु पेड़ के नीचे छोट-छोटे टैंक बनायें। पॉच किलो मिट्टी में सौ ग्राम अजोला कल्चर का उपयोग करें। पानी की महत्ता एवं धूप की आवश्यकता को अपने कार्यस्थल के अनुरूप रख अधिक से अधिक मात्रा में अजोला को विकसित किया जा सकता है।
डॉ. शिवानी शर्मा विभागाध्यक्ष बायोटेक्नोलॉजी विभाग ने अतिथि व सभी प्राध्यापकों, प्रतिभागियों का अभार व्यक्त किया जिन्होंने मिलकर इस कार्यक्रम को सफल बनाया।
डॉ. शमा ए. बेग विभागाध्यक्ष माईक्रोबायोलॉजी ने कार्यशाला में उभरे बिंदुओं को प्रतिवेदन के रुप में प्रस्तुत किया। कार्यक्रम को सफल बनाने में एकता गुप्ता, मिनी अग्रवाल, आईशा खान, एम.एस.सी. माईक्रोबायोलॉजी विद्यार्थियों ने विशेष योगदान दिया।