भिलाई। घर पर पूजन के लिए गणेशजी की स्वनिर्मित प्रतिमा ही श्रेष्ठ होती है। इसका आकार इतना ही होना चाहिए कि वह उसे एक हथेली पर संभाला जा सके। उक्त बातें आज हस्तशिल्प निगम, इंदौर की पंजीकृत प्रशिक्षक तृप्ति मिश्रा ने राष्ट्रीय गणेश मूर्ति निर्माण कार्यशाला को संबोधित करते हुए व्यक्त किये। वे एमजे ग्रीन्स एवं शासकीय नवीन महाविद्यालय बोरी के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रही थीं।एमजे कालेज की आईक्यूएसी एवं शासकीय नवीन महाविद्यालय बोरी की आईक्यूएसी द्वारा एमओयू के तहत आयोजित यह पहली कार्यशाला थी। कार्यशाला में मिट्टी, क्ले अथवा पेपर मैशी से गणेश प्रतिमा को घर पर ही बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। पिछले 17 वर्षों से लोगों को निःशुल्क प्रशिक्षण दे रही तृप्ति मिश्रा ने बताया कि पर्यावरण की रक्षा करने का यह उनका अपना तरीका है।
उन्होंने बताया कि किस तरह शरीर, सिर, सूंड, कान तथा हाथ पैर आसानी से बनाए जा सकते हैं। बातों ही बातों में उन्होंने मूर्ति तैयार कर दी। उन्होंने कहा कि इस मूर्ति को पूजा के उपरांत किसी गमले में डालकर विसर्जित किया जा सकता है। इसके निर्माण में किसी तरह के हानिकारक रंग या रसायन का प्रयोग नहीं होता और यह पूरी तरह से बायो डिग्रेडेबल है। घर पर ही गमले में इसका विसर्जन कर हम इस मिट्टी को पैरों तले रौंदे जाने से भी बचा सकते हैं।
आरंभ में शिल्पकार तृप्ति का परिचय एमजे कालेज के शिक्षा संकाय की सहा. प्राध्यापक गायत्री गौतम ने दिया। शिक्षा संकाय की अध्यक्ष डॉ श्वेता भाटिया ने अपने संबोधन में उम्मीद जताई कि यह कार्यशाला लोगों को स्वनिर्मित मूर्तियों की पूजा के लिए प्रेरित करेगा जिससे पर्यावरण की सुरक्षा भी हो सकेगी। शासकीय नवीन महाविद्यालय की आईक्यूएसी प्रभारी डॉ मीना चक्रवर्ती ने भी उद्घाटन सत्र को संबोधित किया। कार्यशाला के अंत में एमजे कालेज की आईक्यूएसी प्रभारी अर्चना त्रिपाठी ने धन्यवाद ज्ञापन किया। इस कार्यशाला में 100 से अधिक प्रशिक्षु ऑनलाइन मोड में शामिल हुए।