भिलाई। उच्च जोखिम उठाते हुए हाइटेक सुपरस्पेशालिटी हॉस्पिटल के विशेषज्ञों ने एक 61 वर्षीय महिला के कूल्हे का जोड़ प्रत्यारोपित कर दिया। महिला के हृदय की स्थिति अत्यंत गंभीर था पर कूल्हे की टूटी हड्डी का इलाज भी तत्काल जरूरी था। यह एक कठिन निर्णय था पर अन्य विशेषज्ञों से सलाह मशविरा करने के बाद पहले कूल्हे का इलाज करने का फैसला किया गया। सर्जरी कामयाब रही।
मरीज शशि निगम को 10 मार्च को हाइटेक हॉस्पिटल लाया गया था। गाय की ठोकर लगने के कारण वे गिर पड़ी थीं और उनके कूल्हे की हड्डी टूट गई थी। उनका बीपी काफी बढ़ा हुआ था। जांच के दौरान यह भी सामने आया कि मरीज के दिल की स्थिति अत्यंत नाजुक है और वह क्षमता का केवल 20 फीसद भाग ही रक्त पंप कर पा रहा है। इसे इजेक्शन फैक्टर कहते हैं। इसके कारण हृदय के भीतर रक्त का दबाव 30 से बढ़कर 70 तक जा पहुंचा था। यह एक गंभीर स्थिति थी जिसमें मरीज को तत्काल बाइपास ग्राफ्ट (बाइपास सर्जरी) की जरूरत थी।
हाइटेक के कार्डियोलॉजिस्ट डॉ आकाश बख्शी ने बताया कि हृदय रोगों के प्रति लोगों की आम लापरवाही ही ऐसी स्थिति को जन्म देती है। मरीज को सितम्बर में हृदय संबंधी परेशानी हुई थी। यदि उसी समय इसका इलाज कर लिया गया होता तो स्थिति इतनी जटिल नहीं होती। मरीज की एंटीरियर डिसेंडिंग आर्टरी (एलएडी) में 90 प्रतिशत तथा सरकमफ्लेक्स (एलसीएक्स) और राइट कोरोनरी आर्टरी (आरसीए) में 100-100 प्रतिशत ब्लाकेज था। मरीज का किडनी फंक्शन भी ठीक नहीं था।
अब मुश्किल यह था कि पहले दिल का आपरेशन करें या कूल्हे का। दिल का आपरेशन पहले करने का मतलब था कूल्हे की सर्जरी को कम से कम 4-5 महीने के लिए टालना, जो कि संभव नहीं था। इसलिए हमने हृदय का उचित प्रबंधन करते हुए पहले कूल्हे की सर्जरी करने का कठिन निर्णय लिया। पहले कुछ दिन मरीज को दवाओं पर रखकर स्टेबिलाइज किया गया और फिर सर्जरी की गई।
हाइटेक के आर्थोपेडिक सर्जन डॉ दीपक सिन्हा ने बताया कि अब चुनौती यह थी कि हृदय पर कम से कम दबाव के बीच यह सर्जरी की जाए। हमने तेजी से अपना काम किया और एक घंटे से भी कम समय में मरीज की हेमी बाइपोलार आर्थ्रोप्लास्टी कर दी। इसमें कूल्हे के आधे जोड़ का प्रत्यारोपण किया जाता है। 16 मार्च को मरीज की सर्जरी कर दी गई। इसके चार दिन बाद मरीज उठकर खड़ी हो गई।
निष्चेतना विशेषज्ञ डॉ पल्लवी शेण्डे ने बताया कि हृदयरोगी की लंबी सर्जरी काफी मुश्किल हो सकती है। हमें काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। मरीज को स्टेबल बनाए रखने के लिए एक-एक मिनट किसी चुनौती से कम नहीं था। मरीज को कभी भी दिल का दौरा पड़ सकता था पर ईश्वर की कृपा से ऐसा कुछ नहीं हुआ। हमारी कोशिश सफल रही। इंटेंसिविस्ट डॉ सोनल वाजपेयी की मरीज के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका रही।