रायपुर। युवाओं में धारदार हथियार रखने का चलन बढ़ता जा रहा है। वे इसे ऑनलाइन स्टोर से मंगवा रहे हैं। मारपीट में फैंसी हथियारों के उपयोग ने पुलिस का ध्यान इस ओर आकृष्ट किया। जब पुलिस ने ऑनलाइन स्टोर से चाकू खरीदने वालों को धमकाते हुए चाकू थाने में जमा करवाने के लिए कहा तो 700 चाकू जमा कराए गए। इनकी वास्तविक संख्या इससे भी ज्यादा हो सकती है। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति और धारदार हथियारों की सहज उपलब्धता पुलिस के लिए सिरदर्द बन चुकी है।
रायपुर सहित प्रदेश के बड़े शहरों में नशीली गोलियों, गांजा, शराब और चाकूबाजी की घटनाएं बढ़ रही हैं। मनोचिकित्सकों और फोरेंसिक विशेषज्ञों का कहना है कि इनमें से अधिकांश मामलों में चाकू से एकाध वार नहीं किए गए बल्कि पीड़ित को चाकू से गोद दिया गया। इसके पीछे नशाखोरी का बड़ा योगदान है। नशा गुस्से को कई गुणा बढ़ा देता है और अपराधी अपने होश खो बैठता है।
चाकू बाजी की 90 फीसदी घटनाओं में आरोपी की उम्र 20 साल या उससे कम है। अधिकांश नाबालिग हैं। ज्यादातर घटनाओं को नशे की हालत में अंजाम दिया गया। पीड़ितों में दोस्त और परिवार के सदस्य भी शामिल हैं। ज्यादातर चाकूबाजी नशे में की गई। 80 फीसद वारदातों को शाम 6 से 12 के बीच अंजाम दिया गया।
भिलाई-दुर्ग एवं रायपुर के कुछ स्कूलों में समय-समय पर स्कूल बैगों की चेकिंग की जाती है। समय-समय पर बच्चों के स्कूल बैंग से नशे की गोलियां, गांजा पीने की चिलम, पॉकेट स्मोकिंग पाइप, बटनदार फोल्डिंग चाकू आदि बरामद होते रहे हैं। ऐसे मामलों में स्कूल पेरेन्ट्स को बुलाकर उन्हें हिदायत देते हैं, बच्चों का नाम स्कूल से काट देने की धमकी देते हैं। इसकी सूचना पुलिस को नहीं दी जाती।
मनोरोग विशेषज्ञों का कहना है कि फिल्मों में हथियारों के बेधड़क उपयोग का किशोर मन पर सीधा असर पड़ रहा है। नशे की हालत में हथियार उपलब्ध होने पर युवा उसका बेखौफ इस्तेमाल कर रहे हैं। उनमें बर्दाश्त कम हो रहा है।
फोरेंसिक साइंस एक्सपर्ट्स का मानना है कि चाकू से ताबड़तोड़ हमले के पीछे या तो बदले की भावना होती है या फिर नशे का हाथ। साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस अब्यूज के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। नशे की हालत में युवा हिंसक हो जाते हैं। वे परिवार के लोगों पर भी हिंसक हमले करते हैं।
वहीं पुलिस ने मामले की गेंद पेरेंट्स और टीचर्स के पाले में ठेल दिया है। पुलिस का मानना है कि पेरेन्ट्स बच्चों की सही निगरानी नहीं करते और स्कूल वालों को भी इससे कोई फर्क नहीं पड़ता दिखाई देता कि बच्चे क्या कर रहे हैं। बच्चों की सामान्य निगरानी से भी आसानी से उसके नशेड़ी होने का पता लगाया जा सकता है। बच्चों को मुंहमांगा पाकेट मनी देना, घर में पैसों को कहीं भी छोड़ देना भी इसकी एक वजह हो सकती है।