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11 वर्षीय बालक का फटा अपेंडिक्स, यह हो सकता था खतरा

Sep 23, 2022
Ruptured Appendix removed in Hitek Hospital

भिलाई। एक 11 वर्षीय बालक का अपेंडिक्स फट गया. अपेंडिक्स के फटने से पूरा उदर क्षेत्र संक्रमित हो सकता है. इसे पेरिटोनाइटिस कहते हैं. यदि संक्रमण रक्त में चला गया तो सेप्सिस जैसी जानलेवा स्थिति भी बन सकती है. बालक को तत्काल हाइटेक अस्पताल लाया गया जहां दूरबीन द्वारा उसकी सर्जरी की गई. अपेंडिक्स को हटा दिया गया और पूरे उदर की सफाई की गई. पूरी तरह ठीक होने के बाद उसे अस्पताल से छुट्टी दे दी गई.
11 वर्षीय आशुतोष को ग्राम टाठिया, पोस्ट डरगांव, धमधा से हाइटेक लाया गया था. गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ अशीष देवांगन ने बालक की जांच की. बालक को कुछ समय से पेट दर्द की शिकायत थी. कुछ दिन पहले उसे पेट में जोरों का दर्द उठा था. तब से उसे लगातार बुखार था. दस्त भी लग रहे थे. जांच करने पर पाया गया कि बालक का अपेंडिक्स फट चुका था और मवाद उदर में फैल गया था. यह एक गंभीर स्थिति होती है और इमरजेंसी में आपरेशन करना होता है. अपेंडिक्स बड़ी आंत के दाहिनी छोर से जुड़ी एक थैली जैसी संरचना होती है जिसे आंत्रपुच्छ भी कहा जाता है.
डॉ देवांगन ने बताया कि अपेंडिक्स के दर्द को पहचानना बहुत जरूरी है क्योंकि यह ज्यादा समय नहीं देता. अपेंडिक्स में सूजन या दर्द को अपेंडिसाइटिस कहते हैं. संक्रमण की स्थिति में यह 48 से 72 घंटे के बीच फट सकता है. ऐसी स्थिति में मामला बेहद पेचीदा हो जाता है और नौबत इमरजेंसी आपरेशन की आ जाती है. बालक को तत्काल एडमिट कर लिया गया. लैप्रोस्कोपिक सर्जन डॉ नवील कुमार शर्मा ने दूरबीन पद्धति से ही बालक की सर्जरी की. फटे हुए अपेंडिक्स को निकालने के साथ ही भीतर फैले मवाद को पूरी तरह हटाना एक बड़ी चुनौती थी. पर इसे भी सफलता के साथ संपन्न कर लिया गया.
डॉ नवील कुमार शर्मा एवं डॉ आशीष देवांगन ने बताया कि अपेंडिक्स का दर्द नाभी के पास से भी शुरू हो सकता है और पेट के दाहिनी तरफ नीचे भी. गर्भवतियों में यह दर्द कुछ ऊपर हो सकता है क्योंकि उस समय बड़ी आंत कुछ ऊपर सरक जाती है. संक्रमण की स्थिति में इसमें सूजन आ सकती है. इसके साथ ही मितली, डायरिया या कब्ज, डकार आदि की समस्या हो सकती है. भारत में इसके मामले तेजी से बढ़ रहे हैं. भोजन में रेशे की कमी, लंबे समय तक बने रहने वाला कब्ज, औषधियां इसकी वजह हो सकती हैं. जिन्हें अपेंडिसाइटिस हुआ हो, उनके बच्चों में भी यह खतरा ज्यादा होता है. आम तौर पर यह 10 से 30 वर्ष की आयु के बीच होता है. बालकों में खतरा बालिकाओं की तुलना में अधिक होता है.

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